तेलंगाना पुलिस प्रमुख डीजीपी अंजनी कुमार को इसलिए निलंबित कर दिया गया है कि मतगणना के दौरान उन्होंने तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी से मुलाक़ात की थी। रेवंत रेड्डी भी चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य में कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में है। मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि परिणाम आने से पहले ही यानी मतगणना के दौरान सरकारी अधिकारी की ऐसी मुलाकात चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन होता है। इसी को लेकर डीजीपी पर कार्रवाई की गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग ने तेलंगाना के मुख्य सचिव ए शांति कुमारी को पत्र भेजकर तेलंगाना के डीजीपी को निलंबित करने की सिफारिश की है।
भारत के चुनाव आयोग ने रविवार को तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक अंजनी कुमार पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए कार्रवाई की है। तेलंगाना के पुलिस प्रमुख अंजनी कुमार ने राज्य पुलिस के नोडल अधिकारी संजय जैन के साथ परिणाम घोषित होने से पहले तेलंगाना विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार अनुमुला रेवंत रेड्डी से मुलाकात की थी।
एएनआई द्वारा साझा किए गए वीडियो में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को फूलों के गुलदस्ते के साथ रेड्डी का स्वागत करते देखा जा सकता है।
कांग्रेस के स्टार प्रचारक रेवंत रेड्डी ने सीधे तौर पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री और बीआरएस सुप्रीमो के. चंद्रशेखर राव से मुकाबला किया और उन्हें कड़ी चुनौती दी। कांग्रेस तेलंगाना में अपनी पहली सरकार बनाने की स्थिति में है। माना जा रहा कि रेवंत रेड्डी कांग्रेस की ओर से सीएम उम्मीदवार हो सकते हैं।
तेलंगाना के मंत्री और मुख्यमंत्री केसीआर के बेटे केटी रामा राव ने चुनाव में हार मान ली है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी वापसी करेगी।
उन्होंने कहा कि वह दुखी नहीं हैं लेकिन निश्चित रूप से निराश हैं क्योंकि नतीजा हमारे अनुरूप नहीं है। बीआरएस नेता ने कहा कि वह इस हार से सीखेंगे। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, 'जनादेश जीतने पर कांग्रेस पार्टी को बधाई। आपको शुभकामनाएं।'
तेलंगाना के 2014 में अस्तित्व में आने के बाद से बीआरएस ही सत्ता में रही है। इस बार कांग्रेस ने बीआरएस को सत्ता से बाहर कर दिया है। 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा के लिए बहुमत का आंकड़ा 60 है और कांग्रेस पार्टी इससे ज़्यादा सीटें पाती हुई दिख रही है।
तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम अब बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर दिया गया है। इसने अलग राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था। 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद इसे एक दशक तक लोगों का निर्विवाद समर्थन मिला।
कहा जा रहा है कि केसीआर की हार की सबसे बड़ी वजहों में एंटी-इंकंबेंसी और केसीआर और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे। इससे भी बड़ा झटका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस टिप्पणी से लगा जब उन्होंने कहा कि केसीआर ने एनडीए में शामिल होने की कोशिश की थी। कांग्रेस ने लगातार यह प्रचार किया कि बीजेपी और बीआरएस मिली हुई हैं।
केसीआर ने हाल में राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएँ दिखाई हैं। 2019 के आम चुनाव से पहले उन्होंने विभिन्न विपक्षी नेताओं से मुलाकात की थी जिसमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ओडिशा सीएम नवीन पटनायक भी शामिल थे। वह एक गठबंधन तैयार करने की कोशिश में थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
समझा जाता है कि राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के रूप में ही उन्होंने अपनी पार्टी टीआरएस का नाम बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति कर दिया था। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में उनको तेलंगाना में ही बड़ा झटका लगा है।