+
बिहार में तेजस्वी लड़े तो खूब लेकिन जीत नाकाफी रही

बिहार में तेजस्वी लड़े तो खूब लेकिन जीत नाकाफी रही

लोकसभा चुनाव के लिए दो सौ से अधिक जनसभाएं करने वाले तेजस्वी यादव अपनी कोशिशें के अनुरूप राजद और इंडिया गठबंधन को कामयाबी नहीं दिला सके हालांकि एनडीए को बिहार में नौ सीटों का घाटा ज़रूर हुआ।

पिछले लोकसभा चुनाव में जीरो पर आउट होने वाले राजद ने इस बार चार सीटें हासिल तो कीं लेकिन 23 लोकसभा सीटों पर लड़ने के बाद यह परिणाम उसके लिए नाकाफी ही है। राजद के लिए संतोष की बात बस यह है कि उसका वोट प्रतिशत बेहतर हुआ है।

नीतीश कुमार के पलटी मारने के बाद जदयू का प्रदर्शन बहुत खराब होने का अनुमान लगाया जा रहा था लेकिन उसने 12 सीट जीतकर राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार की प्रासंगिकता को बरकरार रखा है। यह जरूर है कि पिछली बार जदयू को 16 लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली थी लेकिन चार सीट कम होने के बावजूद उसका महत्व इसलिए बढ़ गया क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की सीटें राष्ट्रीय स्तर पर काम हो गईं।

बिहार में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन शायद राष्ट्रीय स्तर पर उसके प्रदर्शन की तरह ही रहा है। भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे और सभी जगह जीत हासिल कर अपना स्ट्राइक रेट 100 प्रतिशत रखा था। इस बार भी भाजपा 17 सीटों पर लड़ी लेकिन उसने 12 सीटों पर ही कामयाबी हासिल की। भाजपा को जिन पांच सीटों पर घाटा उठाना पड़ा उसमें केंद्रीय मंत्री और आरा के सांसद आरके सिंह की सीट भी शामिल है। इसके अलावा पाटलिपुत्र से अनुभवी रामकृपाल यादव की भी हार हुई। अब एनडीए में बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर की स्थिति पर हैं।

स्ट्राइक रेट के हिसाब से 100 प्रतिशत प्रदर्शन करने वाली पार्टी चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) रही। कहने के तो जीतन राम मांझी की पार्टी हम (सेक्यूलर) का स्ट्राइक रेट भी 100 प्रतिशत रहा लेकिन ध्यान रहे कि वह अपनी पार्टी के अकेले उम्मीदवार थे। चिराग पासवान की यह कामयाबी इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाएगी कि उनके पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद उनकी पार्टी टूट गई थी और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को भारतीय जनता पार्टी ने महत्व दिया था जबकि चिराग खुद किनारे लग गए थे। माना जा रहा है कि इसके बावजूद चिराग पासवान ने जिस तरह खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया उसका अंततः उन्हें लाभ मिला।

उम्मीदों के लिहाज से देखा जाए तो सबसे बेहतर कामयाबी नीतीश कुमार की मानी जाएगी क्योंकि उनकी छवि को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था और यह कयास लगाया जा रहा था कि उनकी पार्टी के आधे उम्मीदवार हार जाएंगे। अब राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार का अपना कोर वोट यानी कुर्मी और अति पिछड़ा वर्ग का वोट बरकरार रहा है और इसका फायदा उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को हुआ है। 

यह भी माना जा रहा है कि नीतीश कुमार की पार्टी को 12 सीट मिलने के पीछे महिला मतदाताओं का बड़ा हाथ है। एक और महत्वपूर्ण बात यह बताई जा रही है कि शायद चिराग पासवान का जो आधार वोट है उसका लाभ नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवारों को मिला है और वह जीतने में कामयाब हुए हैं।

यह बात याद रखने की है कि चुनाव शुरू होने से कुछ ही महीने पहले नीतीश कुमार ‘इंडिया’ गठबंधन का सूत्रधार बने थे और भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए सभी पार्टियों को एकजुट कर रहे थे। ऐसा माना जा रहा था कि उनके पलटने से उनके उम्मीदवारों को नुकसान होगा लेकिन ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ताबड़तोड़ जनसभाओं के कारण भारतीय जनता पार्टी के कोर वोटरों ने नीतीश कुमार के उम्मीदवारों को भी ठीक-ठाक वोट दिया है।

इंडिया गठबंधन के लिहाज से देखा जाए तो सबसे अच्छा स्ट्राइक रेट भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (माले) का रहा है। उसके तीन उम्मीदवार मैदान में थे और उनमें से दो ने कामयाबी हासिल की। माले के एक उम्मीदवार सुदामा प्रसाद ने आरा से दिग्गज नेता और मंत्री आरके सिंह को हराने में कामयाबी हासिल की। माले की ओर से कामयाबी हासिल करने वाले दूसरे नेता राजा राम सिंह ने काराकाट से जीत हासिल की और वहां पूर्व मंत्री उपेंद्र कुशवाहा तीसरे स्थान पर रहे। हालांकि दो दूसरी कम्यूनिस्ट पार्टियां सीपीआई और सीपीएम एक-एक सीट पर चुनाव लड़ी और शून्य पर आउट हो गई।

बिहार में कांग्रेस के लिए थोड़ी संतोष की बात यह रही के पहले जहां उसके सिर्फ एक लोकसभा सदस्य थे अब दो हो गए हैं। किशनगंज से मोहम्मद जावेद ने लगातार दूसरी जीत हासिल की तो तारिक अनवर भी कटिहार से जीतकर कांग्रेस की गिनती बढ़ाई। बिहार में कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़े थे।

इंडिया गठबंधन में अंतिम समय में शामिल हुई मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) तीन सीट पर चुनाव लड़ी और सभी पर हार गई। यह तब हुआ जबकि मुकेश सहनी लगातार तेजस्वी यादव के साथ चुनाव प्रचार कर रहे थे।

कोशिशों के हिसाब से सबसे कमज़ोर रिजल्ट निश्चित रूप से आरजेडी का रहा जिसके नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन की बागडोर संभाल रखी थी। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद इस बात के लिए जरूर खुश होंगे कि उनकी बेटी मीसा भारती ने तीसरी कोशिश में रामकृपाल यादव को हराकर लोकसभा पहुंचने में कामयाबी हासिल की लेकिन पूर्णिया में पप्पू यादव के साथ तेजस्वी यादव ने जो रवैया अपनाया वह उनके लिए बहुत ही शर्मिंदगी की बात बन गई।

 - Satya Hindi

पप्पू यादव

पप्पू यादव ने चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद से मुलाकात की उसके बाद अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया लेकिन उन्हें पूर्णिया से कांग्रेस का टिकट नहीं मिल सका तो वह वहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और कामयाबी हासिल कर ली। राजद ने जदयू से आई बीमा भारती को पूर्णिया से टिकट दिया और तेजस्वी यादव ने इस सीट को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया लेकिन उनके लिए अफसोस की बात यह रही कि बीमा भारती की जमानत ज़ब्त हो गई और वह तीसरे स्थान पर रहीं। कई लोग मानते हैं कि पप्पू यादव के साथ राजद का यह रवैया उसके लिए अच्छा साबित नहीं हुआ।

इसी तरह यह माना जा रहा है कि हिना शहाब को सीवान से राजद के टिकट पर लड़ने के लिए राजी करने में नाकामी का नुकसान भी तेजस्वी यादव को हुआ है। हिना शहाब यह आरोप लगाती रही हैं कि राजद ने उनके स्वर्गीय पति पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को वह स्थान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे। खुद हेना शहाब को भी हाल में पार्टी में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं मिला। इसका असर सीवान और आसपास की लोकसभा सीटों पर मुसलमानों की राजद से दूरी के रूप में सामने आया। सारण से लालू प्रसाद की पुत्री रोहिणी आचार्य जितने कम मतों से हारी हैं, उसके लिए यह भी एक फैक्टर माना जा सकता है। 

राजद, कांग्रेस और वीआईपी की हार के लिए गलत उम्मीदवारों के चयन को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कांग्रेस और वीआईपी ने तो अंतिम समय में कई उम्मीदवारों का चयन किया।

राजद के लिए संतोष की बात यह है कि जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे 15.68% मत मिले थे वहीं इस बार उसने 22.5% मत हासिल किए हैं। बिहार की सभी पार्टियों में सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत आरजेडी का ही रहा। 17 सीटों पर लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी का वोट प्रतिशत 20.52 और 16 सीटों पर लड़ने वाले जदयू का वोट प्रतिशत 18.52 रहा। वोट प्रतिशत में सुधार अगले साल संभावित विधानसभा चुनाव में राजद को लाभ पहुंचा सकता है।

वैसे इस बार बिहार में कुल मिलाकर एनडीए को 45.52% वोट मिले और इंडिया या महागठबंधन को 36.47% वोट मिले। इंडिया गठबंधन इस बात से खुश हो सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह एनडीए से 22.49% कम वोट पा सका था, इस बार यह अंतर घटकर 9% रह गया।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें