बिहार में बीजेपी के ही सहयोगी जदयू के नेतृत्व वाली नीतीश कुमार सरकार द्वारा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास करने के बाद अब तमिलनाडु में भी इसकी तैयारी चल रही है। एआईएडीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी ने कहा है कि विधानसभा में एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाना विचाराधीन है। एआईएडीएमके भी बीजेपी की सहयोगी पार्टी है। पलानीसामी का बयान उनके पहले के रवैये से काफ़ी अलग है। वह राज्य में विपक्षी पार्टी डीएमके पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह लोगों को एनआरसी और नागरिकता क़ानून पर गुमराह कर रही है। यदि एआईएडीएमके इस पर प्रस्ताव लाती है तो बिहार के बाद यह दूसरा राज्य होगा जहाँ बीजेपी के सहयोगी दल ही इसके ख़िलाफ़ हों। अब तक विपक्षी दलों वाली पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसी राज्य सरकारें एनआरसी के ख़िलाफ़ खुलकर बोलती रही हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी की यह प्रतिक्रिया बिहार सरकार द्वारा एनआरसी पर ताज़ा फ़ैसला लिए जाने बाद आई है। नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया है। उन्होंने मोदी सरकार वाले एनपीआर यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को खारिज कर एनपीआर के 2010 वाले फ़ॉर्मेट को लागू करने का प्रस्ताव भी पारित किया है। इसी को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी से सवाल पूछा गया था कि क्या वह भी बिहार की राह पर चलेंगे क्योंकि हाल के दिनों में तमिलनाडु में नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर पर ज़बरदस्त प्रदर्शन हुए हैं। इस पर डीएमके पलानीसामी सरकार को घेरती रही है।
एनआरसी को लेकर सरकारों की ऐसी प्रतिक्रियाएँ तब आ रही हैं जब हाल में बीजेपी के कई नेताओं ने देश भर में तीखे विरोध के बीच यह कहना शुरू किया है कि एनआरसी लाने का कोई विचार नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद दिल्ली चुनाव से पहले कहा था कि एनआरसी लागू करने की कोई योजना नहीं है। हालाँकि उनका यह बयान गृह मंत्री अमित शाह के बयान के विपरीत था जिसमें वह बार-बार कहते रहे हैं कि पूरे देश में एनआरसी को लागू किया जाएगा। एनआरसी के बारे में अब गृह मंत्री अमित शाह का बयान आप ख़ुद ही पढ़िए। वह पहले ही कह चुके हैं कि 'आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले नागरिकता क़ानून आएगा, फिर एनआरसी आएगी'।
जब एनआरसी का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर का मामला सामने आ गया। जब यह कहा गया कि सरकार एनपीआर के माध्यम से एनआरसी लागू करने जा रही है तो बीजेपी ने इस बात को भी खारिज कर दिया। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार ही पहले कम से कम नौ बार कह चुकी है कि एनआरसी और एनपीआर जुड़े हुए हैं और एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए किया जाएगा। यही कारण है कि राज्य अब एनपीआर के पुराने फ़ॉर्मेट को लागू करने की बात कह रहे हैं जिसमें संबंधित नागरिक के माता-पिता के जन्म संबंधी कागजात देने की ज़रूरत नहीं होती थी। और यही कारण है कि अब भी एनआरसी का डर ख़त्म नहीं हो रहा है।
विपक्ष को तो छोड़िए, बीजेपी के सहयोगी दल ही एनआरसी और एनपीआर के विरोध में प्रस्ताव ला रहे हैं। हाल के दिनों में पूरे देश में जो नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन चल रहे हैं उसमें भी एनआरसी और एनपीआर का विरोध किया जा रहा है। तमिलनाडु में इसको लेकर ज़बरदस्त प्रदर्शन हुए हैं।