केंद्रीय एजेंसियों के छापों से इस समय समूचा विपक्ष परेशान है, आज सोमवार 24 अप्रैल को उसकी आंच तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके तक पहुंच गई। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को भी केंद्रीय एजेंसियों ने इसी तरह छापे मारकर घेरने की शुरुआत की थी। आयकर विभाग ने सोमवार की सुबह तमिलनाडु में जी-स्क्वायर रिलेशंस के परिसरों में छापेमारी की। जी स्क्वायर तमिलनाडु की बड़ी रियल एस्टेट कंपनी है। कंपनी कथित तौर पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके परिवार के सदस्यों से जुड़ी मानी जाती है। आयकर अधिकारी स्टालिन के दामाद सबरीसन के ऑडिटर के आवास में भी तलाशी ले रहे हैं।
आयकर विभाग ने कंपनी के कर्नाटक, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु समेत कई दफ्तरों में एक साथ 75 से अधिक स्थानों पर छापेमारी की। 75 जगहों में से अकेले चेन्नई में ही 50 ठिकानों पर छापेमारी की गई।
बीते दिनों तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई ने कुछ दस्तावेज दिखाए थे, जिसके अनुसार कंपनी में स्टालिन परिवार शामिल है। इस दौरान यह भी आरोप लगाया था कि कंपनी को डीएमके सरकार के समय खूब बढ़ावा मिला। इसके बदले स्टालिन के बेटे और वर्तमान मंत्री उदयनिधि स्टालिन और उनके दामाद सबरीसन ने आय से कहीं अधिक संपत्ति अर्जित की है।
आरोप है कि जब स्टालिन अपने पिता करुणानिधि के मंत्रिमंडल में उप-मुख्यमंत्री थे, तब भी जी-स्क्वायर को खूब समर्थन मिला था। बीजेपी नेता अन्नामलाई ने आरोप लगाया है कि पैसे की हेराफेरी में न सिर्फ मौजूदा डीएमके सरकार शामिल है, बल्कि एम करुणानिधि सरकार के समय भी इसमें गड़बड़ी हुई थी।
इसी कंपनी में एक औ शेयरधारक कार्तिक अन्ना नगर डीएमके विधायक एमके मोहन के बेटे हैं। छापे के दौरान आयकर विभाग की टीम उनके उनके घर पर भी पहुंची।
डीएमके नेताओं पर हो रही छापेमारी के दौरान पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस दौरान सैकड़ों कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए और नारेबाजी की। डीएमके कैडर ने डीएमके नेता के बेटे के घर पर आईटी की छापेमारी के बाद विरोध कर रहे हैं।
यह छापेमारी ऐसे समय हो रही है जब एमके स्टालिन आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता के बड़े पैरोकार बनकर उभरे हैं। पिछले महीने चेन्नई में उनके जन्मदिन पर आयोजित रैली के बाद यह चर्चा उभरी थी कि भारत का प्रधानमंत्री दक्षिण भारत से क्यों नहीं हो सकता है। इसको तब और ज्यादा हवा मिली जब नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुख अब्दुल्ला ने उनको प्रधानमंत्री बनाए जाने का समर्थन किया था।