चीनी रक्षा मंत्रालय की ओर से यह दावा किए जाने के बाद कि भारत और चीन ने पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से अपने-अपने सैनिकों को वापस बुलाना शुरू कर दिया है, इस पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरूवार को संसद में बयान दिया है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि दोनों पक्ष अपनी सेनाओं की ओर से की जा रही गतिविधियों को स्थगित रखेंगे और पिछले साल के गतिरोध से पहले वाली स्थिति बहाल हो जाएगी। उन्होंने कहा कि चीन के साथ कई दौर की वार्ता के बाद भारत ने कुछ नहीं खोया है और कई मुद्दों पर अभी वार्ता की जानी है। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि दोनों ओर से सैनिकों को हटा लिया जाए।
रक्षा मंत्री ने कहा, “हमारी सेनाओं ने यह साबित करके दिखाया है कि वे भारत की एकता, अखंडता की रक्षा करने में सक्षम हैं। इस बात पर भी सहमति हो गयी है पैंगोग लेक से सेनाओं को हटाने के 48 घंटों के भीतर दोनों देशों की सेनाओं के सीनियर कमांडर्स के बीच बैठक हो और बाकी बचे मुद्दों का हल निकाला जाए।”
उन्होंने कहा, “चीन के साथ जो समझौता हुआ है उसके मुताबिक़ दोनों देश फ़ॉरवर्ड डिप्लायमेंट को हटाएंगे। जो भी निर्माण आदि अप्रैल, 2020 के बाद से पैंगोंग त्सो के नार्थ और साउथ ब्लॉक में हुआ है, उन्हें हटाया जाएगा।”
चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच कमांडर स्तर की नौवीं दौर की बातचीत में हुई सहमति के अनुसार यह क़दम उठाया जा रहा है। यह बातचीत चुशुल-मोल्दो के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के पार चीनी इलाक़े में हुई थी। दोनों सेनाओं के बीच 15 घंटे की बातचीत में यह तय हुआ था कि सैनिकों को सिलसिलेवार ढंग से वापस बुला लिया जाए।
इसके पहले भी चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के वरिष्ठ अधिकारी बातचीत में अपने सैनिकों को वापस बुलाने पर राजी हो गए थे, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ था।
पैंगोंग त्सो, गलवान घाटी समेत पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों ने अपने-अपने लगभग 40 हज़ार सैनिक तैनात कर रखे हैं। बीते महीने दोनों देशों ने अपने-अपने 10 हज़ार सैनिकों को वापस बुला लिया था। लेकिन ये अग्रिम पंक्ति के सैनिक नहीं थे, यानी एलएसी पर दोनों देशों के सैनिक पहले की तरह ही आमने-सामने खड़े थे।