+
भागवत रामचरितमानस से विवादित टिप्पणी हटाकर दिखाएँ: मौर्य

भागवत रामचरितमानस से विवादित टिप्पणी हटाकर दिखाएँ: मौर्य

जाति व्यवस्था को लेकर मोहन भागवत के बयान से क्या स्वामी प्रसाद मौर्य को ताक़त मिली है? जानिए उन्होंने खुद को शूद्र बताते हुए भागवत को क्या चुनौती दे दी।

रामचरितमानस पर टिप्पणी के बाद भारतीय जनता पार्टी और हिन्दू धर्माचार्यों के निशाने पर आए समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बयान से नयी संजीवनी मिली है। भागवत के जाति व्यवस्था वाले बयान के बाद अब मौर्य ने धर्माचार्यों को चुनौती दी है। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी कहा है कि उन्हें बताना चाहिए कि जाति-वर्ण को लेकर क्या वस्तुस्थिति है।

लखनऊ में स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर से रामचरितमानस से दलितों, महिलाओं और पिछड़ों को लेकर लिखी बातों को निकालने की मांग की। उन्होंने कहा कि वो शूद्र हैं इसलिए उनके खिलाफ फरमान जारी कर दिया गया जबकि भागवत की कही बातों पर लोग चुप हैं। सपा नेता ने कहा कि संघ प्रमुख ने महिलाओं, आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को गाली देने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों की कलई खोल दी है। अब तो कम से कम रामचरितमानस से आपत्तिजनक टिप्पणी हटाने के लिए आगे आएँ।

‘लीपापोती नहीं, टिप्पणी हटवाएं भागवत’

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि अगर भागवत का यह बयान मजबूरी का नहीं है तो साहस दिखाते हुए केंद्र सरकार को कहकर रामचरितमानस से जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर नीच अधम कहने और महिलाओं, आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को प्रताड़ित, अपमानित करने वाली टिप्पणियों को हटवाएँ। उन्होंने संघ प्रमुख से कहा कि महज बयान देकर लीपापोती करने से बात बनने वाली नहीं है। भागवत के बयान से मौर्य को संजीवनी मिली है जो लगातार हिंदूवादी संगठनों से लेकर खुद अपनी ही पार्टी के कई नेताओं के निशाने पर थे।

‘शूद्र हूं इसलिए मेरा हाथ-पैर, सर काटने का फरमान’

मौर्य ने कहा कि मानस की कुछ चौपाइयां, जिनमें जाति विशेष को नीच कहा गया, महिलाओं को तो नीच से भी नीच बताया गया, उस अंश को निकालने की मांग की तो धर्माचार्य ने बजाय विचार करने के, मेरा सिर काटने, हाथ-पैर, नाक, कान और हाथ काटने की सुपारी देना शुरू कर दिया। उन्होंने धर्माचार्यों से कहा कि चूँकि वह शूद्र जाति में पैदा हुए हैं इसलिए उनके ख़िलाफ़ इस तरह का फरमान जारी किया गया। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि क्या धर्माचार्यों में हिम्मत है कि वो आरएसएस प्रमुख भागवत जी के बारे में भी ऐसा कह सकें। उन्होंने कहा कि हम सभी संविधान से संचालित होते हैं जिसके अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि जाति, वर्ण, लिंग व जन्मस्थान के नाम पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। लिहाजा सभी धर्माचार्यों को संविधान के निर्देशों के सम्मान में आगे आना चाहिए।

‘भागवत के बयान के बाद अक्ल ठिकाने आनी चाहिए’

मौर्य ने कहा कि भागवत के बयान के बाद इस तरह के तत्वों की अक्ल ठिकाने आ जानी चाहिए जो आपत्तिजनक टिप्पणी हटाने की मांग पर विचार के बजाय अपराधी और आतंकवादियों की भाषा बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह उन लोगों की स्वाभाविक सोच हो सकती है। इसी सोच के चलते बाबा साहेब को कहना प़ड़ा था कि मैं हिन्दू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ पर इसमें मरूँगा नहीं। बाबा सहेब आंबेडकर ने दस लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। उन्होंने कहा कि यदि चाहते हैं कि हिन्दू धर्म सुरक्षित रहे तो धर्माचार्य सामने आएँ। मानव कल्याण के विरोध में जो भी कथन हों उसको हटाने का काम करें। भागवत जी के इस बयान के बाद न केवल मानस बल्कि वेद-पुराण व अन्य सभी पुस्तकें बहस के दायरे में आएंगी।

‘हनुमान गढ़ी महंत ने दिया था सर काटने का फरमान’

रामचरितमानस को दकियानूसी ग्रंथ मानते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा थी इसे या तो प्रतिबंधित करना चहिए या विवादित चौपाइयों को हटाया जाना चाहिए। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उनका समर्थन करते हुए चौपाइयों को आपत्तिजनक माना था। मौर्य के इस बयान के बाद अयोध्या की हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास ने उनका सर काटने का फरमान सुनाया था। राजू दास ने कहा था कि मौर्य का सर काटने वाले को वो अपनी ओर से 21 लाख रुपये का पुरस्कार देंगे। मौर्य के समर्थन में जहाँ पिछड़ी जातियों के कई संगठन सामने आए थे वहीं हिन्दूवादी संस्थाओं ने उनके ख़िलाफ़ कारवाई की मांग की थी। लखनऊ में रामचरित मानस की प्रतियाँ जलाने वालों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज हुई थी और दो लोगों पर एनएसए लगाया गया है।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें