सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में जारी पाबंदियों को लेकर फ़ैसला सुना दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि लोगों के अधिकारों की रक्षा करना बेहद ज़रूरी है। कोर्ट ने कहा कि कश्मीर में लंबे समय तक हिंसा हुई है और हम कोशिश करेंगे कि सुरक्षा के मुद्दे पर मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के बीच तालमेल बना रहे। कोर्ट ने कहा है कि कश्मीर की राजनीति में दख़ल देना हमारा काम नहीं है।
कोर्ट ने कहा, ‘बिना वजह इंटरनेट पर रोक नहीं लगाई जा सकती। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक व्यवस्था का बेहद अहम अंग है। इंटरनेट इस्तेमाल करने की आज़ादी लोगों का मूलभूत अधिकार है। इंटरनेट बंद करने की न्यायिक समीक्षा की जाएगी।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर में लगाये गये प्रतिबंध से जुड़े सभी आदेशों की एक हफ़्ते में समीक्षा करे। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट को अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं किया जा सकता है।
जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से ही कई पाबंदियां लागू हैं। इन्हें लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। ये याचिकाएं कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद समेत कई अन्य नेताओं ने दायर की थीं। जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी, जस्टिस बी. आर. गवई की बेंच ने याचिकाओं पर फ़ैसला सुनाया है।
तीन जजों की बेंच ने अपने फ़ैसले में कहा कि कश्मीर में इंटरनेट को बंद करने और धारा 144 लागू करने के फ़ैसले की समीक्षा हो। अदालत ने कहा कि पाबंदी से संबंधित आदेशों की समीक्षा के लिए एक कमेटी बने और यह एक हफ़्ते में अपनी रिपोर्ट दे। कोर्ट ने कहा कि व्यापार और ई-बैंकिंग सेवाओं के लिए इंटरनेट को शुरू किया जाए और कश्मीर में प्रतिबंध से जुड़े सभी फ़ैसलों को सार्वजनिक किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध लगाना ताक़त का दुरुपयोग है। अदालत ने कहा कि सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ असंतोष या असहमति की अभिव्यक्ति इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाये जाने का कारण नहीं हो सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से लेकर बाक़ी सभी फ़ैसलों को सार्वजनिक किया जाए जिससे इन्हें क़ानूनी चुनौती दी जा सके।
कोर्ट का यह फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब 15 देशों के राजदूत जम्मू-कश्मीर के हालात का जायजा लेने के लिए राज्य के दौरे पर हैं। ये राजदूत गुरुवार को ही श्रीनगर पहुंच गए थे। इनमें बांग्लादेश, वियतनाम, नार्वे, मालदीव, दक्षिण कोरिया, मोरोक्को, नाइजीरिया आदि देशों के भी राजनयिक शामिल हैं। ये राज्य में राजनीतिक दलों के नेताओं और अन्य लोगों से मुलाक़ात कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने जताई थी चिंता
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता जताई थी। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनचसीआर) ने भारत से कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर की जनता के तमाम अधिकारों को बहाल करे। यूएनएचसीआर ने एक बयान जारी कर कहा था कि हम इस पर बहुत चिंतित हैं कि भारत-प्रशासित कश्मीर के लोग अभी भी ज़्यादातर मानवाधिकारों से वंचित हैं।
केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाने के फ़ैसले से पहले राज्य में बड़ी संख्या में जवानों को तैनात कर दिया था। इसके बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को हिरासत में ले लिया था और अभी तक ये तीनों प्रमुख नेता नज़रबंद हैं।
इस बीच, केंद्र सरकार से प्रतिबंध हटाने को लेकर देश भर से लोगों ने खत लिखे। प्रबुद्ध नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकार, अकादमिक जगत के लोग, राजनेता और कई दूसरे वर्ग के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ख़त लिख कर कहा था कि कश्मीर की स्थिति अस्वीकार्य है। इससे पहले केरल हाई कोर्ट ने भी एक फ़ैसला दिया था और कहा था कि इंटरनेट मौलिक अधिकार है।