सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी संशोधन क़ानून की वैधता को मंजूरी दी 

11:42 am Feb 10, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न निरोधी) क़ानून, 2018 को मंजूरी दे दी है। अदालत ने इस क़ानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इस मामले में अब शिकायत के बाद तुरंत एफ़आईआर भी होगी और गिरफ़्तारी भी। एससी-एसटी समुदाय के लोगों के उत्पीड़न के अभियुक्त को अब अग्रिम जमानत भी नहीं मिलेगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2018 में एससी/एसटी क़ानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए थे। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा था कि एससी/एसटी अत्याचार निरोधक क़ानून यानी एससी/एसटी क़ानून में बिना जाँच के एफ़आईआर दर्ज नहीं होगी और एफ़आईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा। सात दिनों के भीतर शुरुआती जाँच ज़रूर पूरी हो जानी चाहिए। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी है तो उसकी गिरफ़्तारी के लिए उसे नियुक्त करने वाले अधिकारी की सहमति ज़रूरी होगी। अगर अभियुक्त सरकारी कर्मचारी नहीं है तो गिरफ़्तारी के लिए एसएसपी की सहमति ज़रूरी होगी। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दायर की थी। 

कोर्ट के पहले के फ़ैसले के बाद एससी/एसटी क़ानून को कमज़ोर किए जाने का आरोप लगाया गया था। इस पर हंगामा, प्रदर्शन हुआ था और जमकर राजनीति भी हुई थी। लोकसभा चुनाव 2019 को नजदीक देखकर मोदी सरकार ने संसद में नया क़ानून बनाया था और सुप्रीम कोर्ट में फ़ैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका लगाई थी। इसके बाद कोर्ट ने अपने फ़ैसले को पलट दिया था। 

एससी/एसटी क़ानून के आलोचक इसके दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं। समर्थक कहते हैं कि यह क़ानून दलितों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल होने वाले जातिसूचक शब्दों और हज़ारों सालों से चले आ रहे ज़ुल्म को रोकने में मदद करता है।

दरअसल, एससी/एसटी क़ानून का यह मामला तब आया था जब सुप्रीम कोर्ट डॉक्टर सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और एएनआर मामले की सुनवाई कर रहा था। यह मामला महाराष्ट्र का है जहाँ अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ इस क़ानून के अंतर्गत मामला दर्ज कराया था। ग़ैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके ख़िलाफ़ टिप्पणी की थी। जब मामले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाज़त माँगी तो इजाज़त नहीं दी गई। इस पर उनके खिलाफ़ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया। इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुँचा था।