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सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6 ए को सही ठहराया

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6 ए को सही ठहराया

नागरिकता कानून (सीए) की धारा 6 ए के जरिये असम समझौता हुआ था। धारा 6 ए दरअसल, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करती है। इसे अदालत में चुनौती दी गई थी। चीफ जस्टिस की बेंच के 4 जजों ने इसे सही ठहराया, जबकि एकमात्र जस्टिस परदीवाला इससे सहमत नहीं थे।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले से नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में लाये गए इस संशोधन के माध्यम से यह समझौता लागू हुआ था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने बहुमत से फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 12 दिसंबर को चार दिनों तक अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान, कपिल सिब्बल और अन्य की दलीलें सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। संवैधानिक बेंच ने धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली 17 याचिकाओं पर सुनवाई की थी। लोगों की नागरिकता के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में शामिल किया गया था। जिसे असम समझौते के तहत कवर किया गया था।

अदालत के फैसले का अर्थ क्या है

अदालत के फैसले का मतलब है कि 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच बांग्लादेश से आए अनिवासी भारतीय नागरिकता के पात्र हैं। जिन लोगों को इसके तहत नागरिकता मिली है, उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी।"

धारा 6 ए असम के सामने आने वाली एक अनोखी समस्या का "राजनीतिक समाधान" था क्योंकि शरणार्थियों की आमद ने इसकी संस्कृति और जनसांख्यिकी को खतरे में डाल दिया था।


-चीफ जस्टिस, सुप्रीम कोर्ट 17 अक्टूबर 2024 सोर्सः लाइव लॉ

उन्होंने कहा कि "केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ा सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि यह असम के लिए अद्वितीय था। असम में आने वाले प्रवासियों की संख्या और संस्कृति आदि पर उनका प्रभाव असम में अधिक है। चीफ जस्टिस ने कहा, असम में 40 लाख प्रवासी पश्चिम बंगाल के 57 लाख से अधिक हैं क्योंकि असम में भूमि क्षेत्र पश्चिम बंगाल की तुलना में कम है।

आदेश में कहा गया है कि जो लोग 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले, 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से असम आए थे, और तब से पूर्वोत्तर राज्य के निवासी हैं, उन्हें यह करना होगा। भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत खुद को रजिस्टर्ड करना होगा।

इसके प्रावधानों के तहत असम में रहने वाले प्रवासियों, विशेषकर बांग्लादेश के लोगों को नागरिकता देने की कट-ऑफ तारीख 25 मार्च, 1971 तय की गई थी।

यह आदेश उस याचिका पर आया जिसमें दलील दी गई थी कि बांग्लादेशी शरणार्थियों के आने से असम के जनसांख्यिकीय संतुलन पर असर पड़ा है। इसमें कहा गया कि नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की आमद के जवाब में केंद्र और असम आंदोलन के प्रतिनिधियों के बीच 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। मानवीय उपाय के रूप में, 25 मार्च 1971 से पहले आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देने के लिए नागरिकता अधिनियम में धारा 6 ए जोड़ी गई थी, लेकिन मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र का यह तर्क सही है कि असम में अनियंत्रित इमीग्रेशन ने इसकी संस्कृति को प्रभावित किया है और अवैध इमीग्रेशन को रोकना सरकार का कर्तव्य है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "शर्तों को पूरा करने पर कट-ऑफ तिथियों के बीच नागरिकता दी जा सकती है। 25 मार्च 1971 के बाद प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान नहीं की जा सकती है।"

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