कृषि क़ानूनों के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी की आलोचना पर अदालत ने नाराज़गी जताई है। अदालत ने कहा है कि इस कमेटी के पास कृषि क़ानूनों के बारे में फैसला करने की कोई ताक़त नहीं है, ऐसे में किसी तरह के पक्षपात का सवाल कहां उठता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जब 4 सदस्यों की इस कमेटी का गठन किया था तभी से किसान संगठनों ने इसे लेकर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे। कमेटी अपनी पहली बैठक 19 जनवरी को कर चुकी है और उसे दो महीने के भीतर अदालत को रिपोर्ट सौंपनी है।
अदालत बुधवार को किसान आंदोलन को लेकर दायर तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। किसान महापंचायत की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने अदालत से कहा कि किसानों की ओर से इस कमेटी को फिर से गठित करने की मांग रखी गई है। इस पर सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि वह कमेटी की आलोचना करने और इसकी छवि ख़राब करने से बेहद निराश हैं।
उन्होंने किसान महापंचायत के अधिवक्ता से कहा, ‘आप कमेटी को बदलना चाहते हैं। इसके पीछे क्या आधार है। कमेटी में शामिल लोग खेती को अच्छे से समझते हैं और आप उनकी आलोचना कर रहे हैं।’
किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो-
सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘हमने कमेटी को यह अधिकार दिया है कि वह सभी पक्षों को सुने और हमें रिपोर्ट सौंपे। ऐसे में किसी तरह के पक्षपात का सवाल कहां उठता है। लोगों की छवि ख़राब न की जाए।’
किसान महापंचायत के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि इसके एक सदस्य भूपिंदर सिंह मान कमेटी को छोड़ चुके हैं।
इस पर सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘आप बिना सोचे-विचारे किसी की भी आलोचना कर देते हैं। किसी ने अगर अपनी राय दी है तो क्या वह अयोग्य हो गया। भूपिंदर सिंह मान ने क़ानूनों में बदलाव करने के लिए कहा था। आप कह रहे हैं कि वह क़ानूनों के समर्थन में हैं।’ सीजेआई ने आगे कहा कि लोगों की अपनी राय होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हमने जनता और किसानों के हित में इस मसले पर सुनवाई की है। अगर आप पेश नहीं होना चाहते हैं तो मत होइए। हम इस मसले का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं।’ अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि वह इस कमेटी के पुनर्गठन को लेकर अपना जवाब दाखिल करे।
मान ने दिया था इस्तीफ़ा
किसान संगठनों द्वारा कमेटी के सदस्यों की आलोचना करने के बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने कमेटी से इस्तीफ़ा दे दिया था। मान के अलावा इसमें इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के पूर्व निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनावत शामिल हैं।
इस कमेटी को लेकर प्रदर्शनकारियों और कई विपक्षी दलों जिनमें कांग्रेस और अकाली दल भी शामिल हैं, उनका कहना था कि इसमें शामिल सभी सदस्य मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों का समर्थन कर चुके हैं। इससे पहले कृषि क़ानूनों के मसले पर जारी गतिरोध को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन क़ानूनों पर रोक लगा दी थी।
ट्रैक्टर परेड पर पुलिस फ़ैसला ले: कोर्ट
सुनवाई के दौरान अदालत ने दिल्ली पुलिस से कहा कि वह 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड को लेकर दायर अपनी याचिका को वापस ले ले। दिल्ली पुलिस ने याचिका में किसान ट्रैक्टर परेड पर रोक लगाने की मांग की थी। पुलिस का कहना था कि परेड होने से गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन में अड़चन आएगी और इससे दुनिया भर में देश की छवि ख़राब होगी।
अदालत ने कहा है कि पुलिस को ही इस बारे में फ़ैसला करना होगा कि परेड की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं। अदालत ने कहा कि पुलिस के पास इस बारे में फ़ैसला लेने का पूरा अधिकार है और वह इस मामले में दख़ल नहीं दे सकती।
सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यम की बेंच ने कहा कि दिल्ली पुलिस के पास क़ानून के तहत पूरी ताक़त है। बेंच ने अटार्नी जनरल से कहा कि हम आपको बता चुके हैं कि पुलिस को ही इस बारे में फ़ैसला लेना होगा और हम कोई आदेश पास नहीं करेंगे।