सोशल मीडिया पर मौजूद अधिकांश लोगों का दिन कैसे शुरू होता है। वे सुबह उठते ही सबसे पहले अपना फ़ोन उठाकर यह चेक करते हैं कि उन्हें किसने वॉट्स ऐप किया है, फ़ेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम पर किसने क्या कमेंट किया है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि सोशल मीडिया पर लोग गाली-गलौज पर उतर आते हैं। ये ऐसे लोग हैं जो आपकी राय से इत्तेफ़ाक नहीं रखते और अपनी राय को आप पर थोपने पर आमादा रहते हैं।
पहले ऐसे लोग यह काम किसी फ़ेक आईडी के जरिये करते थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी हिम्मत इतनी बढ़ी कि वे ओरिजनल आईडी से सामने आने लगे और हर उस शख़्स को धमकाने लगे जो उनकी राय से इत्तेफ़ाक नहीं रखता था।
सोशल मीडिया पर दूसरों को धमकाने वाले लोगों का आतंक बढ़ता गया और परेशान होकर बहुत सारे लोगों ने इस प्लेटफ़ॉर्म को छोड़ दिया। क्योंकि यहां मुश्किल यही थी कि दबंगई करने वाले लोग एक ख़ास विचारधारा को पूरे देश के लोगों पर थोपने पर आमादा थे और आज भी आमादा हैं और इनके ख़िलाफ़ कोई शिकायत दर्ज नहीं होती और शिकायत दर्ज हो जाए तो कार्रवाई नहीं होती। ऐसी स्थिति में इन्हें जवाब देना मुश्किल हो गया और अंत में सोशल मीडिया को छोड़ना ही एक विकल्प था। ऐसे लोगों में टीवी अभिनेत्री शिल्पा शिंदे और फ़िल्मकार अनुराग कश्यप सहित सैकड़ों लोग शामिल हैं।
लेकिन अब ऐसे लोगों को अलर्ट हो जाना चाहिए क्योंकि देश की शीर्ष अदालत ने सरकार से कहा है कि वह सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख़्त दिशा-निर्देश बनाये।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई और कहा कि यह लगातार ख़तरनाक रूप लेता जा रहा है। अदालत ने केंद्र से कहा कि वह सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर सख़्त गाइडलाइन बनाए और इस बारे में तीन हफ़्ते में रिपोर्ट दे। अदालत सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक और वॉट्स एप की ओर से दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं के तहत एक मुद्दा सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से जोड़े जाने का भी था।
जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कुछ सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को लेकर चिंता ज़ाहिर की और कहा कि इन प्लेटफ़ॉर्म पर संदेश कहाँ से आ रहे हैं, यह पता कर पाना बेहद मुश्किल है। अदालत ने कहा कि न तो शीर्ष अदालत और न ही उच्च न्यायालय इस बारे में फ़ैसला करने में सक्षम हैं और यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह इसे लेकर सही दिशा-निर्देश लेकर आए।
अदालत ने इसे लेकर चिंता जताई कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग क़ानून व्यवस्था के लिए चुनौती बनता जा रहा है और इस ओर भी इशारा किया कि फ़ेसबुक और वॉट्स एप की भूमिका को तय किया जाना चाहिए जिससे इनकी जवाबदेही तय की जा सके।
सुनवाई के दौरान जस्टिस गुप्ता ने कहा कि वह ख़ुद स्मार्टफ़ोन छोड़कर फ़ीचर फ़ोन इस्तेमाल करने के बारे में सोच रहे थे। जस्टिस गुप्ता ने सुनवाई के दौरान एक घटना का ज़िक्र करते हुए कहा कि किस तरह वह एक प्रोफ़ेशनल की मदद से इंटरनेट पर एक पोस्ट पर पहुंच गए जहां से एके-47 ख़रीदी जा सकती थी।
अब सवाल यह है कि जब सोशल मीडिया के दुरुपयोग को लेकर पहले से ही क़ानून बना हुआ है तो फिर नए क़ानून की क्या ज़रूरत है। क्योंकि पुराने क़ानूनों के तहत ही कुछ साल पहले एक्टिविस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ़्तारी हुई थी और हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ मीम शेयर करने के मामले में बीजेपी की नेता प्रियंका शर्मा को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया लिया गया था। इसलिए पहले सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए कि वह पुराने क़ानूनों का सख़्ती से पालन सुनिश्चित करवाये, वरना अगर ट्रोल आर्मी इसी तरह लोगों को परेशान करती रही और इसी तरह लोग इनकी वजह से डिप्रेशन में जाते रहे तो फिर नये क़ानूनों की क्या ज़रूरत है।
अगर सरकार वास्तव में कोई सख़्त गाइडलाइंस लेकर आती है और सोशल मीडिया अकाउंट्स को आधार से जोड़ दिया जाता है तो क्या इससे सोशल मीडिया पर मौजूद ट्रोल आर्मी पर कुछ असर होगा। यह देखने वाली बात होगी।