पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जासूसी कराने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मीडिया में छपी ख़बरें सहीं हैं तो ये गंभीर आरोप हैं। लेकिन उसने इस मामले में सरकार को अभी नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए अगले मंगलवार को फिर सुनवाई करने को कहा है। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे याचिका की एक कॉपी सरकार को दें।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमना और जस्टिस सूर्यकांत की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने पेगासस सॉफ़्टवेअर मामले की सुनवाई गुरुवार को की।
बता दें कि फ्रांसीसी मीडिया ग़ैर-सरकारी संगठन फॉरबिडेन स्टोरीज़ ने स्पाइवेअर पेगासस बनाने वाली इज़रायली कंपनी एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस को हासिल किया तो पाया कि उसमें 10 देशों के 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों के फ़ोन नंबर हैं।
इनमें से 300 भारतीय हैं। इस संगठन ने 16 मीडिया कंपनियों के साथ मिल कर इस पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय मीडिया कंपनी 'द वायर' भी शामिल है।
'द वायर' ने कहा है कि एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस में रजिस्ट्री के दो लोग एन. के गांधी और टी. आई. राजपूत के फ़ोन नंबर भी शामिल थे। जब इनके फ़ोन नंबर एनएसओ की इस सूची में जोड़े गए तो वे दोनों सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री के रिट याचिका सेक्शन में थे।
एम. एल. शर्मा, राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटस, पत्रकार एन. राम और शशि कुमार, जगदीप चोक्कर, नरेंद्र मिश्रा, पत्रकार रूपेश सिंह, परंजय गुहाठाकुरता, एस. एन. एम. आब्दी और एडिटर्स गिल्ड की ओर से दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के खंडपीठ ने सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमना ने कहा,
“
यह आश्चर्य की बात है कि पेगासस सॉफ़्टवेअर से जासूसी का मुद्दा 2019 में सामने आया और किसी ने इस बारे में सत्यापन योग्य सामग्री एकत्र करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की।
जस्टिस एन. वी. रमना, मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट
उन्होंने कहा कि ज़्यादातर जनहित याचिकाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के समाचार पत्रों की कटिंग पर आधारित हैं। मुख्य न्यायाधीश रमना ने एम. एल. शर्मा से कहा, "आपकी याचिका में अखबारों की कटिंग के अलावा क्या डिटेल है? आप चाहते हैं कि सारी जाँच हम करें और तथ्य जुटाएँ। यह जनहित याचिका दाखिल करने का कोई तरीका नहीं है।"
रमना ने कहा,
“
आप आईटी और टेलीग्राफ़िक अधिनियम के प्रावधानों को अच्छी तरह जानते हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने शिकायत दर्ज करने का कोई प्रयास नहीं किया। ये चीजें हमें परेशान कर रही हैं।
जस्टिस एन. वी. रमना, मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हम यह नहीं कह सकते कि इस मामले में बिल्कुल कोई सामग्री नहीं है, हम सबको समाचार पत्रों की रिपोर्ट और प्रतिष्ठित पत्रकारों की सामग्री नहीं कहना चाहते हैं। जिन लोगों ने याचिका दायर की उनमें से कुछ ने दावा किया कि उनके फोन हैक हो गए हैं। लेकिन उन्होंने आपराधिक मामले दर्ज नहीं कराए हैं।"
मुख्य न्यायाधीश ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि जिन लोगों को याचिका दायर करनी चाहिए थी वे अधिक जानकार और साधन संपन्न हैं। उन्हें अधिक सामग्री डालने के लिए अधिक मेहनत करनी चाहिए थी।
क्या कहा कपिल सिब्बल ने?
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पेगासस सॉफ़्टवेअर सिर्फ सरकार खरीद सकती है और एक की कीमत 55 हज़ार डॉलर है। सरकार ने इस पर कितने पैसे खर्च किए, यह पता चलना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने 121 लोगों की जासूसी पेगासस से कराने की बात से इनकार नहीं किया है। सिब्बल ने कहा,
“
यदि सरकार को यह पता था कि एनएसओ के इस स्पाइवेअर के ज़रिए कोई जासूसी कर रहा है तो उसने इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की, उसने क्यों एफ़आईआर दर्ज नहीं कराया?
कपिल सिब्बल, वकील, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान
सिब्बल ने कहा कि यह नागरिकों की स्वतंत्रता का मामला है, इस पर सरकार चुप क्यों रही?
नागरिक के ख़िलाफ़ राज्य का युद्ध?
जगदीप चोक्कर की पैरवी करते हुए वकील श्याम दीवान ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह सोशल मीडिया पर चल रहा मामला नहीं है, फ्रांस और अमेरिका की सरकारों ने इस पर इज़रायल को चेतावनी दी थी।
दीवान ने कहा,
“
किसी नागरिक के फ़ोन में स्पाइवेअर लगा देना उसके ख़िलाफ़ राज्य का युद्ध है, यह असंवैधानिक है।
श्याम दीवान, वकील
पत्रकार एस. एन. एम. आब्दी की पैरवी करते हुए वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह किसी एक नागरिक से जुड़ा मामला नहीं है, यह व्यापक पैमाने पर हुआ है। इस मामले में तो ख़ुद सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए थी।
क्या है अर्जी में?
पत्रकार परंजय गुहाठाकुरता ने अपनी अर्जी में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह जाँच से जुड़ी सभी सामग्री सार्वजनिक करने का निर्देश केन्द्र सरकार को दे।
गुहाठाकुरता ने याचिका में कहा है कि पेगासस की मौजूदगी का भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने न्यायालय से स्पाईवेयर या मैलवेयर के उपयोग को ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है।
क्या पेगासस सॉफ़्टवेअर से जासूसी कराने के मामले में मोदी सरकार वाकई फँस गई है? देखें, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का यह वीडियो।