पाँच राज्यों में चुनावी हलचल के बीच अब एक अप्रैल से नये चुनावी बॉन्ड यानी इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह सोमवार को फ़ैसला दिया है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने की चुनाव सुधार के लिए काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठन एडीएआर की याचिक पर कोर्ट ने यह फ़ैसला दिया है।
एडीआर यानी एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स ने क़रीब एक पखवाड़ा पहले ही चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर तुरन्त रोक लगाने का आदेश देने की गुहार सुप्रीम कोर्ट से की थी। इसने अदालत में दायर याचिका में कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक नहीं लगी तो पाँच राज्यों में चुनाव के ठीक पहले फ़र्जी यानी शेल कंपनियों के ज़रिए राजनीतिक पार्टियों को पैसे दिए जाएँगे।
सुप्रीम कोर्ट ने एडीआर की दलील नहीं मानी। अदालत ने चुनाव आयोग की उस दलील को तवज्जो दी जिसमें इसने कहा कि आयोग ने इस बॉन्ड को इसलिए मंजूरी दी क्योंकि इसके बिना राजनीतिक दल नकदी रुपयों में लेनदेन करते। हालाँकि इसके साथ ही चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि वह चुनावी बॉन्ड के लेनदेन में और अधिक पारदर्शिता लाने का पक्षधर है।
कोर्ट ने आज कहा, '2018 में शुरू की गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना और बांड बिना किसी बाधा के बेचे गए हैं। हमें मौजूदा परिस्थितियों में इसके जारी करते रहने देने पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं दिखता है।'
एडीआर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने चुनावी बांड के ख़िलाफ़ तर्क दिया था कि यह सत्तारूढ़ पार्टी के लिए चंदे की आड़ में रिश्वत प्राप्त करने के उपकरण में बदल गया है। उन्होंने इसके बारे में भारतीय रिजर्व बैंक की गलतफहमी का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने कहा है कि बॉन्ड की यह प्रणाली वित्तीय घोटाले के लिए एक प्रकार का हथियार या माध्यम है।
प्रशांत भूषण ने यह भी कहा कि चुनावी बॉन्ड वास्तव में काले धन के प्रति सरकार के वास्तविक नज़रिये के सबूत को दिखाते हैं, क्योंकि इसका आधिकारिक रुख इसके विपरीत है।
बता दें कि जब से राजनीतिक चंदे के एक उपकरण के तौर पर चुनावी बॉन्ड को पेश किया गया है तब से इसकी आलोचना की जाती रही है। यह कहा जाता रहा है कि इस चुनावी बॉन्ड से काला धन दलों के पास पहुँच सकता है। इससे पूरी प्रक्रिया में अपारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है। ऐसा इसलिए कि अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन जैसे देशों में राजनीतिक चंदा देने वाले को अपनी पहचान को सार्वजनिक करना होता है, लेकिन भारत में नहीं। भारत की जन प्रतिनिधि क़ानून की धारा 29 सी के अनुसार, 20,000 रुपये से ज़्यादा चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। लेकिन, वित्तीय अधिनियम 2017 के क्लॉज़ 135 और 136 के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड को इसके बाहर रखा गया है।
जानिए, क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड...
इलेक्टोरल बॉन्ड दरअसल एक तरह का फ़ाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट यानी वित्तीय साधन है, जिससे कोई किसी दल को चंदा दे सकता है।- यह प्रॉमिसरी नोट की तरह होता है और बियरर चेक की तरह इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी, जो पार्टी इसे बैंक में जमा करा देगी, उसके खाते में ही यह पैसा जमा कर दिया जाएगा।
- इलेक्टोरल बॉन्ड्स 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये का लिया जा सकता है।
- इसे कोई भी नागरिक या कंपनी स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है, उसे अपने प्रमाणित खाते से इसका भुगतान करना होगा।
- लेकिन उसका नाम-पता कहीं दर्ज़ नहीं होगा। वह किस पार्टी को यह बॉन्ड दे रहा है, इसका कहीं कोई उल्लेख नहीं होगा।
- यह 15 दिनों तक वैध रहेगा। हर साल जनवरी, अप्रैल, जून और अक्टूबर में बैंक इसे देना शुरू करेगा और 30 दिनों तक दे सकेगा।