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उत्तराखंड में आग: फंड कम, वन अधिकारी चुनाव ड्यूटी पर क्यों- SC

उत्तराखंड में आग: फंड कम, वन अधिकारी चुनाव ड्यूटी पर क्यों- SC

उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की भी आलोचना क्यों की? 

क्या उत्तराखंड के जंगलों में आग पर काबू पाने में सरकार की तैयारी बिल्कुल नहीं है? उत्तराखंड के जंगलों में आग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फंडिंग की कमी और गार्डों को चुनाव ड्यूटी में लगाने पर सवाल उठाए। इसने उत्तराखंड के साथ ही केंद्र सरकार से भी तीखे सवाल किए। 

राज्य के जंगलों में पिछले साल नवंबर से आग लगने की सैकड़ों घटनाएँ हुई हैं और इनपर काबू पाने में राज्य जूझ रहा है। आग से लगभग 1,145 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट मई की शुरुआत से उत्तराखंड में जंगल की आग को लेकर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाओं में कहा गया है कि राज्य में आग की कम से कम 910 घटनाएँ हुई हैं।

इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आग की घटनाओं के बीच वन अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी पर क्यों लगाया गया? उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान हो चुका है। इसके साथ ही अदालत ने फंड की कमी को लेकर भी केंद्र की मोदी सरकार की खिंचाई की। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने फंड की कमी को खेदजनक स्थिति बताते हुए इसकी निंदा की। इसने आग से निपटने के लिए राज्य को कथित तौर पर 10 करोड़ रुपये की मांग के मुकाबले केवल  3.15 करोड़ रुपये दिए जाने के फ़ैसले की आलोचना की।

एक्टिविस्टों ने जंगल की आग की गंभीरता को कम करके आंकने के लिए राज्य की आलोचना की और दावा किया कि उपलब्ध कुछ अग्निशामकों को अक्सर पूरे और सही उपकरणों के बिना आग बुझानी पड़ती है।

वन विभाग के अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी में फिर से लगाने पर सवाल पहले भी पूछे गए थे। 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा था कि वह जंगल की आग को नियंत्रित करने के लिए 'बारिश के देवताओं' पर निर्भर रहने के बजाय इसे पहले ही रोकने के कदम उठाए।

आलोचना झेल रही राज्य सरकार ने पिछली सुनवाई में कहा था कि मतदान केंद्रों पर तैनात वन अधिकारियों को उनकी प्राथमिक भूमिकाओं में वापस भेज दिया गया है।

राज्य के कानूनी प्रतिनिधि ने बुधवार को कहा, 'मुख्य सचिव ने हमें निर्देश दिया है कि अब किसी भी वन अधिकारी को चुनाव ड्यूटी पर न लगाया जाए। हम अब आदेश वापस ले लेंगे।'

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आश्चर्य जताते हुए कहा, 'यह एक खेदजनक स्थिति है। आप सिर्फ बहाने बना रहे हैं।'

यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने जंगल की आग से निपटने में विफलता पर राज्य की खिंचाई की है। पिछले सप्ताह अदालत ने आग बुझाने के लिए और अधिक प्रयास करने का निर्देश देने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई की थी। तब भी अदालत ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे।

राज्य सरकार ने दावा किया है कि कुल वन क्षेत्र का केवल 0.1 प्रतिशत आग से प्रभावित हुआ है। राज्य में वन क्षेत्र उत्तराखंड के भूमि क्षेत्र का अनुमानित 45 प्रतिशत है। इसने यह भी दावा किया है कि राज्य में जंगल की आग कोई अनसुनी घटना नहीं है, और इसके लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक योजनाएँ हैं।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा है कि उनकी सरकार स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसी आग लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट रेंज के जंगल में आग लगाने के आरोप में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया। आरोपियों की पहचान पीयूष सिंह, आयुष सिंह, राहुल सिंह और अंकित के रूप में हुई है।

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