राजनीतिक दलों की ओर से मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए चुनाव से पहले बांटे जाने वाले 'मुफ्त उपहारों' को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि यह एक गंभीर मुद्दा है और इसका बजट नियमित बजट से ज्यादा हो रहा है।
अदालत ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा और उनसे 4 हफ्ते के भीतर इस मामले में अपना जवाब देने के लिए कहा।
सीजेआई जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इस मामले में बीजेपी के नेता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई की। याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है और राज्य कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं।
याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को निर्देश दिए जाएं कि ऐसे राजनीतिक दल जो जनता के पैसे से बेवजह के मुफ्त उपहार बांटते हैं उनके चुनाव चिन्ह को सीज कर दिया जाना चाहिए और उनका पंजीकरण ख़त्म कर दिया जाए।
भारत में चुनाव से पहले मतदाताओं को रिझाने के लिए कई राज्यों में राजनीतिक दल जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं और चुनाव के बाद इन्हें पूरा करना उनकी मजबूरी बन जाता है।
दक्षिण में तो एक वक्त में लोगों को टेलीविजन सहित दूसरी जरूरी चीजें दी गई थीं। आम आदमी पार्टी ने भी हाल में चुनावी राज्य पंजाब और उत्तराखंड में हर वयस्क महिला को हर महीने 1000 रुपये देने का वादा किया है।
कई राजनीतिक दल 300 यूनिट फ्री बिजली देने का भी वादा जनता से कर रहे हैं। निश्चित रूप से इस तरह के वादों का असर राज्य के खजाने पर पड़ता है और राज्य कंगाल हो जाते हैं।