भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा है कि देश के कल्याण के लिए 'फ्रीबीज' यानी 'रेवड़ी बांटने' के मुद्दे पर बहस ज़रूरी है। सीजेआई रमना ने कहा कि एक राजनेता द्वारा 'फ्रीबी' के रूप में किए गए वादे और 'कल्याण योजना' के बीच अंतर करने की ज़रूरत है।
चुनाव के दौरान 'फ्रीबी कल्चर' पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने यह टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या केंद्र द्वारा 'फ्रीबी' पर रोक लगाने वाला क़ानून न्यायिक जाँच के लिए खुला होगा। उन्होंने कहा, 'मान लीजिए कि केंद्र एक कानून बनाता है कि राज्य फ्रीबी नहीं दे सकते तो क्या ऐसा कानून न्यायिक जांच के लिए खुला रहेगा?'
इस महीने की शुरुआत में पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह राजनीतिक दलों को वादे करने से नहीं रोक सकता है और यह परिभाषित करना ज़रूरी है कि 'फ्रीबी' क्या है।
उसने पूछा था, 'क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा, पीने के पानी तक पहुँच और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स तक पहुंच को फ्रीबी माना जा सकता है?' तब शीर्ष अदालत बीजेपी नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उसमें राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले मतदाताओं को फ्रीबी का वादा करने से रोकने की मांग की गई थी।
बहरहाल, आज यानी मंगलवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने तमिलनाडु के वित्त मंत्री पलानीवेल थियागा राजन की टिप्पणी पर आपत्ति जताई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई रमना ने डीएमके सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन से कहा, 'मैं बहुत-सी बातें कहना चाहता हूँ, लेकिन मैं मुख्य न्यायाधीश के तौ पर आपकी पार्टी या मंत्री के बारे में बात नहीं करना चाहता हूँ।'
इससे पहले थियागा राजन ने 'रेवड़ी' संस्कृति पर अपने रुख को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा था और पूछा था कि किस आधार पर राज्य सरकारों को अपनी नीति बदलनी चाहिए।
सीजेआई रमना ने मंगलवार को कहा, 'मुझे नहीं लगता कि ज्ञान केवल एक व्यक्ति या एक विशेष पार्टी का होता है। हम भी ज़िम्मेदार हैं। बात करने का तरीक़ा, बयान देने का... यह मत सोचो कि हम उसे नज़रअंदाज़ कर रहे हैं, हम अपनी आँखें बंद कर रहे हैं।'
इस बीच, फ्रीबी पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, 'मैंने उन सभी साक्षात्कारों को देखा है जो तमिलनाडु के वित्त मंत्री ने दिए हैं और जिस तरह की भाषा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के लिए इस्तेमाल की है। मुझे लगता है कि यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है। उनका अपना डोमेन है। उन्हें इसका सम्मान करना चाहिए।'