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‘किसानों को प्रदर्शन का हक़ लेकिन सड़कों को हमेशा के लिए बंद नहीं कर सकते’

‘किसानों को प्रदर्शन का हक़ लेकिन सड़कों को हमेशा के लिए बंद नहीं कर सकते’

किसान संगठन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली के बॉर्डर्स पर बीते 11 महीनों से धरना दे रहे हैं। 

केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने गुरूवार को कहा है कि किसानों को आंदोलन करने का हक़ है लेकिन सड़कों को अनिश्चित काल तक के लिए बंद करके नहीं रखा जा सकता है। 

बता दें कि किसान संगठन कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने की मांग को लेकर दिल्ली के बॉर्डर्स पर बीते 11 महीनों से धरना दे रहे हैं। 

अदालत प्रदर्शनकारियों को सड़कों से हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने जवाब देने के लिए किसान संगठनों को तीन हफ़्ते का वक़्त दिया है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 7 दिसंबर को होगी। 

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ में चल रहे धरने को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की टिप्पणी में कहा था कि सड़कों को अनिश्चित काल के लिये बंद नहीं किया जा सकता है। 

नोएडा के रहने वाले याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से अपील की थी कि एनसीआर के इलाक़े में सड़कों पर बैठे प्रदर्शनकारियों को हटाया जाए। 

अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा, “आख़िरकार कोई न कोई रास्ता ढूंढना ही होगा। हम उनके प्रदर्शन के हक़ के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन सड़कों को बंद नहीं किया जा सकता।” 

अदालत ने इस महीने की शुरुआत में भी कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों पर सख़्ती दिखाई थी। शीर्ष अदालत ने सवाल किया था कि जब कृषि क़ानूनों को अदालत में चुनौती दी गई है तो किसान आख़िर प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं। 

अदालत ने कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि जब कृषि क़ानूनों को लेकर अदालत में फ़ैसला लिया जा रहा है, ऐसी स्थिति में किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है या नहीं। 

इससे पहले भी शीर्ष अदालत ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने देने की किसान संगठनों की मांग को लेकर उन्हें आड़े हाथों लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से कहा था कि उन्होंने पूरे शहर का गला घोट दिया है और अब वे शहर के अंदर आना चाहते हैं? 

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