गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को शिकायत करने वाले बीजेपी विधायक और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है। गुजरात हाई कोर्ट ने आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सज़ा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। राहुल को 'मोदी उपनाम' टिप्पणी के लिए सूरत अदालत द्वारा दो साल जेल की सजा सुनाई गई थी।
हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार के अलावा मामले में शिकायतकर्ता भाजपा के सूरत पश्चिम विधायक पूर्णेश मोदी को भी नोटिस दिया। मामले की अब अगली सुनवाई 4 अगस्त को तय की गई।
सूरत के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने 23 मार्च को राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 499 और 500 तहत आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी। राहुल ने यह टिप्पणी कर्नाटक में एक चुनावी रैली में की थी। चुनावी रैलियों और सभाओं में अक्सर नेता विरोधी दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ कई बार विवादित टिप्पणी कर बैठते हैं या फिर सीमा को लांघ जाते हैं। कुछ ऐसी ही टिप्पणी राहुल गांधी ने कर दी थी।
राहुल ने कर्नाटक के कोलार में 13 अप्रैल 2019 को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कह दिया था, 'क्यों सभी चोरों का समान सरनेम मोदी ही होता है? चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो या नरेंद्र मोदी? सारे चोरों के नाम में मोदी क्यों जुड़ा हुआ है।'
राहुल के इस बयान का बीजेपी समर्थकों ने काफ़ी विरोध किया था। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने याचिका दायर की थी। मानहानि मामले में निचली अदालत के फैसले के बाद राहुल गांधी को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। वह 2019 में केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे।
राहुल गांधी को झटका देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने 7 जुलाई को दोषसिद्धि पर रोक लगाने की उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि 'राजनीति में शुद्धता' समय की ज़रूरत है।
बता दें कि इससे पहले राहुल गांधी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया था और अदालत से इस पर तत्काल सुनवाई करने का आग्रह किया था।
15 जुलाई को दायर अपनी अपील में राहुल गांधी ने कहा है कि अगर फ़ैसले पर रोक नहीं लगाई गई तो इससे बोलने, अभिव्यक्ति, विचार की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया जाएगा।
उन्होंने तर्क दिया कि यदि उच्च न्यायालय के फ़ैसले पर रोक नहीं लगाई गई तो यह लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यवस्थित, बार-बार कमजोर करने और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का गला घोंटने वाला होगा जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा। इसके बाद सीजेआई चंद्रचूड़ इस पर शुक्रवार को सुनवाई करने के लिए सहमत हो गए थे।