शिवसेना केस- अयोग्यता पर स्पीकर अनिश्चितकाल तक देरी नहीं कर सकते: SC
सुप्रीम कोर्ट ने उन विधायकों की अयोग्यता पर फैसला देने में देरी को लेकर महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर को कड़ी फटकार लगाई है, जो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना छोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बाग़ी गुट के साथ गठबंधन कर गए थे। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे समूहों से जुड़े मामले में सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने कहा कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को अनिश्चितकाल तक विलंबित नहीं कर सकते हैं और कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए।
अदालत ने नार्वेकर को चेतावनी दी कि वह ज़िम्मेदारी से भागते नहीं रह सकते हैं और यह जानना चाहा कि अदालत के 11 मई के फ़ैसले के बाद क्या कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में उन्हें सही समय के भीतर याचिकाओं पर फैसला देने के लिए कहा था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने नार्वेकर की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा- 'मिस्टर एसजी, उन्हें निर्णय लेना है। वह ऐसा नहीं कर सकते। अदालत के 11 मई के फ़ैसले के बाद स्पीकर ने क्या किया?'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ शिवसेना (उद्धव ठाकरे) पार्टी के सांसद सुनील प्रभु द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बागी शिवसेना के विधायकों के ख़िलाफ़ लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय लेने का निर्देश देने की माँग की गई थी।
पीठ ने कहा कि छप्पन विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ दायर कुल चौंतीस याचिकाएं लंबित हैं। पीठ ने निर्देश दिया कि याचिकाओं को एक सप्ताह की अवधि के भीतर अध्यक्ष के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिस पर अध्यक्ष को रिकॉर्ड पूरा करने और सुनवाई के लिए समय निर्धारित करने के लिए प्रक्रियात्मक निर्देश जारी करना होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 11 मई के फ़ैसले के बाद स्पीकर को कई आवेदन भेजे गए थे। चूँकि कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए वर्तमान रिट याचिका 4 जुलाई को दायर की गई और 14 जुलाई को नोटिस जारी किया गया। सिब्बल ने कहा कि स्पीकर ने उसके बाद भी कुछ नहीं किया। जब याचिका को 18 सितंबर को सूचीबद्ध करने के लिए दिखाया गया, तो स्पीकर ने मामले को 14 सितंबर को सूचीबद्ध किया, जिस तारीख पर उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने एनेक्चर दाखिल नहीं किए हैं। सिब्बल ने कहा कि अध्यक्ष ने बिना कोई विशेष तारीख़ बताए मामले को सही समय पर सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि शिंदे गुट के विधायकों ने सैकड़ों पन्नों का जवाब दाखिल किया है।
सिब्बल ने पूरी प्रक्रिया को तमाशा करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट से स्पीकर को विशिष्ट निर्देश जारी करने का आग्रह किया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सिब्बल ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत किसी मामले का फ़ैसला करते समय स्पीकर एक ट्रिब्यूनल के रूप में कार्य करता है और सुप्रीम कोर्ट एक ट्रिब्यूनल को परमादेश जारी कर सकता है। उन्होंने न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन द्वारा लिखे गए फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें दसवीं अनुसूची के तहत एक मामले पर निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष के लिए तीन महीने की समयसीमा तय की गई थी।
एसजी तुषार मेहता ने सिब्बल की दलीलों पर यह कहकर आपत्ति जताई कि वह एक संवैधानिक प्राधिकार का उपहास कर रहे हैं।
एसजी ने कहा, 'एक बात न भूलें- स्पीकर एक संवैधानिक पदाधिकारी हैं... हम अन्य संवैधानिक निकाय के सामने उनका उपहास नहीं उड़ा सकते। हो सकता है कि हम उन्हें पसंद न करें लेकिन हम इससे इस तरह नहीं निपटते हैं।'
हालाँकि, सीजेआई ने कहा, 'ऐसा लगता है कि कुछ भी नहीं हुआ है। आप यह नहीं कह सकते कि मैं इसे उचित समय पर सुनूंगा। आपको तारीखें देते रहना होगा।' इस पर एसजी ने पूछा कि क्या कोई स्पीकर अपने दिन-प्रतिदिन के कामकाज का विवरण अदालत को सौंप सकता है। जवाब में सीजेआई ने कहा, 'वह दसवीं अनुसूची के तहत एक न्यायाधिकरण है। एक न्यायाधिकरण के रूप में वह इस अदालत के अधिकार क्षेत्र के तहत उत्तरदायी है... स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट की गरिमा का पालन करना होगा।'
शिंदे पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल और महेश जेठमलानी ने देरी के लिए उद्धव समूह को दोषी ठहराया क्योंकि वे समय पर दस्तावेज दाखिल करने में विफल रहे। सिब्बल ने कहा कि प्रक्रिया के नियमों के अनुसार, एनेक्चर उपलब्ध कराना अध्यक्ष का काम है। उन्होंने तर्क दिया कि शिंदे पक्ष ने अपने जवाबों में कभी भी इस बात पर आपत्ति नहीं जताई कि एनेक्चर नहीं दिया गया।
आख़िर में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कार्यवाही के समापन के लिए एक निश्चित समयसीमा की मांग करते हुए मामले को दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया। सीजेआई ने कहा, 'हम इसे दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करेंगे। हमें बताएँ कि मामला कैसे आगे बढ़ रहा है। यह मामला अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता।'