दिल्ली में अधिकारियों के तबादले और पोस्टिंग से जुड़े केंद्र सरकार के अध्यादेश पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस पर दो हफ्ते में जवाब देने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में इस अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई हुई। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ इस मामले में सुनवाई कर रही है। इस पर बहस करते हुए दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग की थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इस पर नोटिस जारी कर रहे हैं। उन्होंने विस्तार से सुनवाई की जरूरत बताते हुए इस मामले पर दो हफ्ते बाद सुनवाई की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल के वकील के अनुरोध पर उन्हें भी मामले में पक्ष बनाया है।
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अध्यादेश के बाद नई व्यवस्था में दो अधिकारी मिलकर मुख्यमंत्री की बात को भी काट सकते हैं। उसके बाद वह मामला उपराज्यपाल को भेज दिया जाएगा,जो कि दिल्ली में सुपर सीएम जैसे हैं। सिंघवी ने कहा कि इसी अध्यादेश के आधार पर 471 लोगों को उनके पदों से हटा दिया गया है। इन लोगों में से कई तो ऑक्सफोर्ड जैसे विश्विद्यालय से शिक्षित हैं। इस पर भी सुनवाई होनी चाहिए।
इस पर केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि इन पदों पर केवल गलत तरीके से लोग नियुक्त किए गए थे। विधायकों के पति-पत्नी,आप पार्टी के कार्यकर्ताओं को गलत तरीके से काम पर लगाया गया था। इस पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई नहीं होनी चाहिए। जो प्रभावित हैं, वह हाईकोर्ट जा सकते हैं। ये मांग याचिका में नहीं है। यहां पर नई बात कही जा रही है। ।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम इन 437 सलाहकारों को हटाने के संबंध में केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए समय देंगे। उन्होंने कहा कि हम इन लोगों को नौकरी से हटाने के मामले पर 17 जुलाई 2023 को सुनवाई करेंगे। वहीं अध्यादेश पर 2 हफ्ते बाद सुनवाई होगी