सुप्रीम कोर्ट ने उन 8 जजों के नामों का आधिकारिक रूप से एलान कर दिया है, जिन्हें इस शीर्ष अदालत में जस्टिस के पद पर नियुक्त किया जाना है। सीजेआई एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाले कॉलिजियम ने इन नामों की सिफ़ारिश केंद्र सरकार को भेज दी है।
जिन जजों के नाम की सिफ़ारिश की गई है, उनमें से चार जज हाई कोर्ट्स में चीफ़ जस्टिस के रूप में काम कर रहे हैं। इनमें कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका, गुजरात हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ, सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी और तेलंगाना हाई कोर्ट की चीफ़ जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं।
इसके अलावा कर्नाटक हाई कोर्ट में जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, केरल हाई कोर्ट में जस्टिस सी.टी. रविकुमार, मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एम.एम. सुंदरेश, गुजरात हाई कोर्ट की जस्टिस बेला त्रिवेदी के नाम की भी कॉलिजियम ने सिफ़ारिश की है। बार से पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पी.एस. नरसिम्हा के नाम की सिफ़ारिश की गई है।
कॉलिजियम में सीजेआई रमना के अलावा, जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव का नाम शामिल है।
नाराज़ हुए थे सीजेआई
बुधवार को इस बारे में ख़बर छपने पर कि कॉलिजियम ने 8 जजों के नामों की सिफ़ारिश की है, सीजेआई नाराज़ हुए थे। लेकिन शाम होते-होते सुप्रीम कोर्ट ने नामों को लेकर तसवीर साफ कर दी।
सीजेआई रमना ने कहा था, “जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया बेहद पवित्र काम है और इसके साथ गरिमा भी जुड़ी हुई है। मीडिया के दोस्तों को यह समझना चहिए और इस प्रक्रिया की पवित्रता को स्वीकार करना चाहिए।”
सीजेआई ने कहा था, “इस तरह के भी उदाहरण हैं जब कई प्रतिभाएं इस तरह की रिपोर्टिंग और अनुमानों के चलते दम तोड़ गयीं। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं इससे बेहद परेशान हूं।”
क्या है कॉलिजियम?
कॉलिजियम शीर्ष न्यायपालिका में जजों को नियुक्त करने और प्रमोशन करने की सिफ़ारिश करने वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों की एक समिति है। यह समिति जजों की नियुक्तियों और उनके प्रमोशन की सिफ़ारिशों को केंद्र सरकार को भेजती है और सरकार इसे राष्ट्रपति को भेजती है। राष्ट्रपति के कार्यालय से अनुमति मिलने का नोटिफ़िकेशन जारी होने के बाद ही जजों की नियुक्ति होती है।जस्टिल क़ुरैशी का नाम नहीं
लेकिन इस बार भी जस्टिल अकील क़ुरैशी के नाम की सिफ़ारिश कॉलिजियम ने नहीं की है। सितंबर, 2019 में कॉलिजियम के फ़ैसले को लेकर विवाद हुआ था क्योंकि तब इसने केंद्र सरकार की आपत्ति पर गुजरात हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस अकील क़ुरैशी से जुड़ी अपनी ही सिफ़ारिश को पलट दिया था।
जस्टिस क़ुरैशी ने गुजरात हाई कोर्ट में रहते हुए कई अहम फ़ैसले सुनाए थे। उनमें से एक फ़ैसला गृह मंत्री अमित शाह से जुड़ा हुआ था। तब शोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस कुरैशी ने उन्हें दो दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया था। हालांकि बाद में अमित शाह को इस केस में बरी कर दिया गया था।
उस वक़्त गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष यतिन ओझा ने आरोप लगाया था कि संदेश यह दिया जा रहा है कि यदि आप सत्ताधारी पार्टी के ‘ख़िलाफ़’ फ़ैसले देंगे तो इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे।