भारतवर्ष को दुनिया एक अध्यात्मवादी देश के रूप में भी जानती है। निःसंदेह संतों-पीरों-फ़क़ीरों और अनेकानेक अध्यात्मवादी महापुरुषों की इस पावन धरा पर चारों ओर आस्था और विश्वास का समुद्र हिलोरें मारता रहता है। परन्तु यही आस्था और विश्वास जब तक संयमित रहता है, इसके परिणाम सुखद,संतोषजनक व सौहार्दपूर्ण रहते हैं तभी तक इन्हें आस्था और विश्वास के रूप में देखा जा सकता है परन्तु जब इसी 'आस्था और विश्वास' के नाम पर हिंसा, क्रूरता, पशुता, राक्षसी प्रवृति, झूठा भय यहाँ तक कि हत्या और मानव बलि तक की बातें होने लग जायें तो इसे 'अंधआस्था और अंधविश्वास' के सिवा और क्या कहा जाये। परन्तु यह हमारे देश का एक कटु सत्य है कि संसार के इतने आधुनिक,वैज्ञानिक एवं तर्कशील हो जाने के बावजूद हमारे देश का एक बड़ा वर्ग अभी भी तांत्रिकों, ज्योतिषियों, काला जादू, बंगाली जादू, इंद्र जाल, सिफ़ली,दुआ ताबीज़,कण्डा-चिल्ला जैसे अनेक व्यसनों में उलझा हुआ है।
आये दिन देश के किसी न किसी राज्य से अंधास्था व अंधविश्वास से जुड़ी दिल दहलाने वाली ख़बरें आती रहती हैं। कोई अपने ही बच्चे की बलि चढ़ाकर भगवान को ख़ुश कर रहा है तो किसी को अपनी ख़ुशहाली की ख़ातिर या अपनी कोई मुराद पूरी करने के लिये अपने पड़ोसी या रिश्तेदार के बच्चे की बलि चाहिये। कितना आश्चर्य है कि हमारे देश में क्या पढ़ा लिखा तो क्या अनपढ़ सभी के वाहनों के पहियों में उस समय ब्रेक लग जाता है जब कोई बिल्ली सामने से गुज़र जाती है। यह सभी सदियों पुराने उस सुने सुनाये अंधविश्वास के वाहक हैं जिसमें न जाने किसने और कब यह बताया होगा कि 'बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ होता है'। गत मात्र एक दशक से भी कम समय से न जाने किसके कहने व बताने पर या फिर एक दूसरे को देखकर तमाम युवतियां यहाँ तक कि अधेड़ महिलायें अपने पैरों में काला धागा बाँधने लगी हैं। इनमें अनपढ़ ही नहीं बल्कि स्वयं को शिक्षित बताने वाली युवतियां भी शामिल हैं। उम्मीद थी कि शायद कुछ दिनों बाद फ़ैशन का रूप धारण कर चुके इस नये नवेले अंधविश्वास से देश को मुक्ति मिल जायेगी। परन्तु अफ़सोस तो यह कि इस काले धागे को अब लड़कियों की ही तरह लड़कों ने भी अपनी टाँगों में बांधना शुरू कर दिया है।
छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले से पिछले दिनों अंधविश्वास से जुड़ी एक ऐसी अपराधपूर्ण ख़बर सामने आयी जिसे सुनकर रूह कांप गयी। प्राप्त समाचारों के अनुसार 25 वर्षीय रौनक सिंह छाबड़ा नामक एक युवक ने अपने 50 वर्षीय गुरु, बसंत साहू की पहले हत्या की और हत्या के बाद वह बड़ी निर्दयता से अपने गुरु का ख़ून भी पी गया। बाद में उसने गुरु बसंत साहू के शव को सन्नाटी जगह में ले जाकर जलाने की कोशिश की। पुलिस ने बसंत साहू की अधजली लाश बरामद करने के बाद जब तफ़्तीश के दौरान उस के शिष्य रौनक सिंह छाबड़ा से पूछताछ की तो उसी ने यह रहस्य खोला कि वह अपने गुरु से काला जादू की विद्या हासिल करना चाहता था। उसकी सोच थी कि गुरु की हत्या के बाद वह जल्द ही काला जादू सीख जायेगा इसीलिये प्रयोग के रूप में उसने इस वीभत्स काण्ड को अंजाम दिया। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जादू टोने के लिये काला जादू सीखने के नाम पर एक चेले द्वारा अपने गुरु की हत्या उस छत्तीसगढ़ राज्य में की गयी जहां पहले से ही छत्तीसगढ़ टोना प्रताङना निवारण अधिनियम 2005 मौजूद है जिसके अन्तर्गत ऐसी अंधविश्वास पूर्ण गतिविधियों को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश,बिहार,बंगाल,झारखण्ड,उड़ीसा व उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों से तो अक्सर ही कभी किसी की चुड़ैल के नाम पर हत्या कर दी जाती है तो किसी को रस्सी या लोहे की ज़ंजीरों से पेड़ों या खम्बों में बांधकर रखा जाता है। उसे भूखा प्यासा रखा जाता है और शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। 'अंधआस्था और अंधविश्वास' से जकड़े इसी मूढ़ समाज को लक्ष्य बनाकर पूरे देश में विभिन्न सार्वजनक स्थलों,दीवारों,बस व ट्रेन स्टॉप आदि पर यहाँ तक कि बसों व ट्रेनों के भीतर भी झाड़ फूक जादू टोना,इंद्र जाल, वशीकरण के तरीक़े आदि बताने वाले तमाम बकवास,झूठे व गुमराह करने वाले पोस्टर व हैंड बिल चिपके होते हैं।
इन पोस्टर्स में जो दावे किये जाते हैं उन्हें पढ़कर ही हंसी आती है। परन्तु अफ़सोस कि हमारा सीधा सादा परन्तु अंधआस्था और अंधविश्वास का शिकार कोई भी व्यक्ति इन झूठे विज्ञापनों के झांसे में आ जाता है और इन विज्ञापनों में दिये गये नंबरों पर स्वयं फ़ोन कर अपने नुक़सान,गुमराही यहाँ तक कि किसी बड़े से बड़े कुचक्र तक में उलझने के रास्ते स्वयं अख़्तियार कर लेता है। आज पूरे देश में लाखों ठग ऐसे ही शरीफ़ परन्तु अंधआस्था और अंधविश्वास के शिकार लोगों की जेबें काट कर अपना पालन पोषण कर रहे हैं। जिन्हें स्वयं अपने भविष्य का ज्ञान नहीं वे दूसरों का भविष्य बताते फिरते हैं। जो स्वयं अनेक पारिवारिक उलझनों व परेशानियों का शिकार हैं वे दूसरों के घरों में सुख शांति लाने का उपाय बताते फिर रहे हैं। पेट पालने के लिये जिन्हें स्वयं झूठ व पाखंड का सहारा लेना पड़ता है वे दूसरों को रोज़गार व नौकरी के उपाय बताते रहते हैं। इससे बड़ी हास्यास्पद बात और क्या हो सकती है।
परीक्षा के समय तमाम स्कूल कॉलेज के बच्चे मस्जिद-मंदिर-मज़ार-दरगाह-पीपल-बरगद आदि पर जाकर कहीं प्रशाद चढ़ाते हैं तो कहीं जल तो कहीं धागा लपेटते हैं। कहीं कहीं तो अपनी मांग किसी पर्ची में लिखकर चढ़ा देते हैं। ज़रा सोचिये कि यदि इन सब टोटकों से लोग परीक्षा पास करने लगें तो पढ़ाई के लिये परिश्रम करने की ज़रुरत ही क्या ? हाँ इन सब चक्करों में पड़ने से परीक्षार्थी का क़ीमती समय ज़रूर बर्बाद होता है।
आज हमारे देश में जय जवान जय किसान के साथ साथ जय विज्ञान और जय अनुसन्धान जैसे नारे भी जोड़ तो ज़रूर दिये गए हैं परन्तु इन पर देश अमल करे इसके पहले देश के लोगों में 'अंधआस्था और अंधविश्वास' के विरुद्ध चेतना जगाना भी ज़रूरी है। जब हमारे राजनेता स्वयं ही अंधआस्था और अंधविश्वास' को बढ़ावा देंगे,जब वे स्वयं नींबू-मिर्च लटकाकर 'चश्म-ए-बद दूर' करेंगे तो इस समाज को अँधेरे कुँए में गिरने से भला कौन बचा सकता है। सच तो यह है कि अन्धविश्वास ही अशिक्षित एवं मूढ़ समाज की सबसे बड़ी निशानी है।