किसान नेता, प्रदर्शन समर्थकों को NIA के समन से डराने की कोशिश?
पंजाब के किसान नेता और किसान आंदोलन के समर्थन करने वाले लोगों को एनआईए द्वारा समन क्या उन्हें डराने के लिए भेजा गया है? हाल तक बीजेपी के सहयोगी रहे शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने तो कम से कम ऐसा ही आरोप लगाया है।
दरअसल, देश में जारी किसान आंदोलन के बीच ही पंजाब के एक किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा, किसान आंदोलन के समर्थन करने वाले एक अभिनेता दीप सिद्धू सहित 40 लोगों को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी यानी एनआईए ने समन भेजा है। आतंकवाद विरोधी गतिविधियों को जाँचने के लिए गठित एनआईए के इस समन में उन्हें रविवार को दिल्ली के एनआईए कार्यालय में पेश होने को कहा गया है। प्रतिबंधित संगठन सिख फ़ॉर जस्टिस यानी एसएफजे से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए यह समन भेजा गया है।
हाल ही में किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले आढ़तियों, पंजाबी गायकों और किसान नेताओं पर आयकर विभाग (आईटी) की छापेमारी की ख़बरें आई थीं। उस मामले में भी उनकी तरफ़ से दबाव बनाने के लिए कार्रवाई करने का सरकार पर आरोप लगाया गया था। और अब एनआईए ने लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष बलदेव सिंह सिरसा को समन भेजा है। सिरसा किसान आंदोलन में खासे सक्रिय हैं।
सिरसा से कहा गया है कि वे नई दिल्ली में स्थित एनआईए के हेडक्वार्टर में 17 जनवरी को उपस्थित हों। सिरसा को यह समन सिख फ़ॉर जस्टिस (एसएफ़जे) के संयोजक गुरपतवंत सिंह पन्नू के ख़िलाफ़ दर्ज एक मामले में भेजा गया है।
पंजाबी अभिनेता दीप सिद्धू ने एनआईए के समने के बारे में फ़ेसबुक पर जानकारी दी। उन्होंने एनआईए के समन को साझा किया। पुलिस इंस्पेक्टर धीरज कुमार ने पत्र में कहा है, 'जबकि यह प्रतीत होता है कि आप (दीप सिद्धू) नीचे दिए गए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हैं, जिसकी मैं जाँच कर रहा हूँ... आपको मामले से संबंधित कुछ सवालों के जवाब देने के लिए 17 जनवरी को सुबह 10:00 बजे राष्ट्रीय जाँच एजेंसी सीजीओ कॉम्प्लेक्स, लोधी रोड, नई दिल्ली में में पेश होना होगा।'
एनआईए द्वारा समन भेजे जाने के मामले सामने आने के बाद सुखबीर सिंह बादल ने शनिवार को कहा, 'किसान नेता और किसान आंदोलन के समर्थकों को पूछताछ के लिए एनआईए और ईडी द्वारा बुलाने के केंद्र के डराने-धमकाने के प्रयासों की कड़ी निंदा करते हैं। वे देशद्रोही नहीं हैं। 9वीं बार वार्ता विफल होने के बाद यह बिल्कुल साफ़ है कि भारत सरकार केवल किसानों को परेशान करने की कोशिश कर रही है।'
Strongly condemn Centre's attempts to intimidate farmer leaders & supporters of #KisanAndolan by calling them for questioning by #NIA & ED. They aren't anti-nationals. And after failure of talks for the 9th time, it's absolutely clear that GOI is only trying to tire out farmers. pic.twitter.com/3x5T8VNdph
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) January 16, 2021
बता दें कि इससे पहले सिरसा ने शनिवार को इस तरह की रिपोर्ट आने पर ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह किसानों के आंदोलन को पटरी से उतारने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट के जरिये ऐसा करने की कोशिश की और अब वह एनआईए का इस्तेमाल कर रही है।
सिरसा ने कहा कि किसान आंदोलन से जुड़े कई लोगों को इस तरह के समन भेजे गए हैं और यह किसानों को डराने की कोशिश है। उन्होंने कहा, ‘हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हम नहीं झुकेंगे। एनआईए दिन-रात 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड को न होने देने की कोशिश में जुटी है।’
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत से कहा था कि सरकार को पता चला है कि दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों की घुसपैठ हो गई है।
एनआईए ने एसएफ़जे के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर में उस पर और कुछ अन्य खालिस्तान समर्थक संगठनों पर साज़िश रचने का आरोप लगाया है। एफ़आईआर में कहा गया है कि भारत सरकार के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए विदेशों से बहुत सारा पैसा इकट्ठा किया जा रहा है और अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी सहित कई देशों में भारतीय दूतावासों के बाहर प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं।
एफ़आईआर में यह भी कहा गया है इकट्ठा किए गए पैसे को गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के जरिये भारत में बैठे खालिस्तान समर्थकों को आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भेजा जा रहा है।
एफ़आईआर में दावा किया गया है कि एसएफ़जे और कुछ अन्य खालिस्तान समर्थक संगठन इस पूरी साज़िश में शामिल हैं और इसके लिए सोशल मीडिया पर लगातार अभियान चला रहे हैं। इसके अलावा ये संगठन युवाओं को अलग खालिस्तान राष्ट्र के लिए भड़का रहे हैं।
शुक्रवार को सरकार के साथ हुई नौवें दौर की बैठक के दौरान किसान नेताओं ने उनके आंदोलन का समर्थन करने वालों के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही छापेमारी और उनके ख़िलाफ़ यूएपीए जैसा कड़ा क़ानून लगाए जाने का मुद्दा उठाया था। इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि वह इस मामले को देखेगी।
मोदी सरकार पर आरोप लगता रहा है कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों और उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को चुप कराने के लिए देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करती है।