बच्चों में कोरोना वायरस से जुड़ी दुर्लभ बीमारी के संकेत, अब इससे कैसे निपटेंगे?
न तो कोरोना के जल्द ख़त्म होने की संभावना है और न ही इसके लिए दवा बनी है। इसके बावजूद दुनिया के कई देशों की तरह भारत में भी लॉकडाउन में ढील दी जा रही है और कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस के साथ ही जीना सीखना होगा। लेकिन उस स्थिति में क्या होगा जब इस वायरस के कारण बच्चों में दुर्लभ बीमारी होने के संकेत मिले? तो क्या आने वाली पीढ़ियों को भी वायरस से जुड़ी इस दुर्लभ बीमारी के साथ रहने की आदत डालनी होगी?
यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि कोरोना वायरस के फिर से तेज़ी से फैलने की आशंकाओं के बीच ही भारत में रेड ज़ोन को छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। कोरोना महामारी के कारण लंबे समय तक लॉकडाउन में रहे दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन को हटाया गया है तो कई देशों में मामूली ढील दी गई है। हालाँकि कहीं पर भी कोरोना वायरस ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन कई देश वायरस को फैलने से रोकने और अर्थव्यवस्था को भी धीरे-धीरे पटरी पर लाने के बीच संतुलन लाने की कोशिश में हैं। नीदरलैंड्स और वियतनाम जैसे देशों में बच्चों के लिए स्कूल खोल दिए गए तो फ़्रांस, बेल्जियम, स्पेन जैसे देशों में आंशिक रूप से लॉकडाउन को खोला गया और लोगों को बाहर जाने की अनुमति दी गई। हालाँकि भारत में स्कूल नहीं खोले गए हैं, लेकिन धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। ऐसे में क्या डॉक्टरों का यह शोध भारत सहित दुनिया भर के देशों के लिए चेतावनी है?
एक शोध में इटली के डॉक्टरों ने पाया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में कावासाकी जैसी दुर्लभ बीमारियाँ पाई गई हैं। कावासाकी बीमारी एक दुर्लभ स्थिति है जो आमतौर पर पाँच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है। इसके कारण ब्लड वसेल्स यानी रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाता है। डॉक्टरों ने पाया है कि उत्तरी इटली क्षेत्र के बर्गामो में बच्चों में कावासाकी जैसी बीमारी के 30 गुना ज़्यादा मामले बढ़ गये। उत्तरी इटली का यह क्षेत्र कोरोना से सबसे ज़्यादा प्रभावित था।
उत्तरी इटली के उसी क्षेत्र पर डॉक्टरों ने अध्ययन किया है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार इटली के उस क्षेत्र में पिछले पाँच सालों में इस साल फ़रवरी के मध्य तक सिर्फ़ 19 बच्चे कावासाकी जैसी बीमारी से ग्रसित पाए गए थे। लेकिन इस साल 18 फ़रवरी से 20 अप्रैल तक हॉस्पिटलों में 10 ऐसे मामले आ गए हैं। इन 10 में से आठ बच्चों में कोरोना वायरस की भी पुष्टि हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस महामारी के दौरान आए ऐसे बीमार बच्चों में दूसरी दिक्कतें बढ़ी हुई थीं। कोरोना संक्रमण के दौरान आए कावासाकी जैसी बीमारी से ग्रसित बच्चों की स्थिति कोरोना संक्रमण से पहले आए ऐसे बच्चों की स्थिति से ज़्यादा गंभीर थी। हालाँकि किसी बच्चे की मरने की रिपोर्ट नहीं है।
लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टरों के हवाले से कहा गया है कि कोरोना महामारी से जुड़ी हुई कावासाकी जैसी बीमारी गंभीर रूप में और ज़्यादा आई हैं। इसमें चेतावनी दी गई है कि कोरोना महामारी से प्रभावित दूसरे देशों में भी कावासाकी जैसी बीमारी का प्रकोप होने की आशंका है।
बर्गामो के अस्पताल पापा गियोवन्नी XXII के डॉक्टरों ने लिखा, 'हमारा मानना है कि ये निष्कर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। कोरोना वायरस और कावासाकी जैसी बीमारी के बीच संबंध को ध्यान में रखा जाना चाहिए, जब बाल चिकित्सा आबादी के लिए सामाजिक सुदृढ़ीकरण नीतियों पर विचार किया जा रहा हो।'
रिपोर्ट में डॉक्टरों ने यह भी लिखा है कि कावासाकी जैसी बीमारी एक दुर्लभ स्थिति है, हालाँकि यह शायद कोरोना वायरस के संपर्क में आने वाले 1000 बच्चों में से एक से ज़्यादा को प्रभावित नहीं करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अनुमान उस क्षेत्र में आए सीमित आँकड़ों पर आधारित है।
बता दें कि बच्चों में कावासाकी जैसी दुर्लभ बीमारी न्यूयॉर्क और दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड में भी पायी गई है। हालाँकि, डॉक्टरों की रिपोर्ट में यह भी साफ़-साफ़ कहा गया है कि यह सीमित आँकड़ों पर आधारित है और इसे पक्के तौर पर कहने के लिए बड़े स्तर पर शोध करना होगा।