देश के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी पाया गया है। भूषण के जिन दो ट्वीट्स को लेकर उन्हें अवमानना का दोषी पाया गया है, सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इन्हीं ट्वीट्स के स्क्रीनशॉट को री-ट्वीट करना शुरू कर दिया है। ऐसा करके उन्होंने शीर्ष अदालत के इस फ़ैसले से नाइत्तेफ़ाकी का इजहार किया है।
फ़ैसला आने के बाद कई बुद्धिजीवियों ने कहा है कि प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी ठहराकर शीर्ष अदालत ने अपनी गरिमा को गिराया है।
क्या कहा था ट्वीट्स में
भूषण ने अपने एक ट्वीट में पिछले चार सीजेआई का ज़िक्र किया था और कहा था, ‘जब भविष्य के इतिहासकार पिछले 6 वर्षों को देखेंगे कि औपचारिक आपातकाल के बिना भी भारत में लोकतंत्र कैसे नष्ट कर दिया गया है तो वे विशेष रूप से इस विनाश में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को चिह्नित करेंगे और विशेष रूप से पिछले 4 सीजेआई की।'
उनका दूसरा ट्वीट सीजेआई एस.ए. बोबडे को लेकर था जिसमें वह नागपुर में एक हार्ले डेविडसन सुपरबाइक पर बैठे हुए दिखे थे। इस ट्वीट में भूषण ने कहा था कि सीजेआई बीजेपी नेता की 50 लाख की मोटरसाइकिल चला रहे हैं और उन्होंने मास्क या हेलमेट भी नहीं पहना है और सुप्रीम कोर्ट को लॉकडाउन के मोड में रखा हुआ है और लोगों को न्याय नहीं मिल पा रहा है।
प्रशांत भूषण को अवमानना का नोटिस दिए जाने के बाद हुई सुनवाइयों में उन्होंने अपनी दलीलों में अपने दोनों ट्वीट्स का समर्थन करते हुए कहा था कि उनके ये विचार पिछले छह सालों में हुई घटनाओं की अभिव्यक्ति हैं।
भूषण ने कहा था, ‘यह अवमानना नहीं हो सकती। अगर सुप्रीम कोर्ट मेरे ट्वीट्स को अवमानना मानता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर बिना कारण का प्रतिबंध होगा और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को भी रोकने की तरह होगा।’
अपने 132 पेज के जवाबी एफ़िडेविट में प्रशांत भूषण ने कई केसों का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि पिछले चार सीजेआई के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक मूल्यों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कानून के शासन की रक्षा के अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहा है। यानी भूषण ने अपनी बात को दोहराया था। भूषण ने यह भी कहा था कि सीजेआई सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं।
हालांकि उन्होंने सीजेआई के मोटरसाइकिल पर बैठे हुए जिस फ़ोटो को ट्वीट किया था, ट्वीट में कही गई बातों के एक हिस्से के लिए अफसोस जताया था। भूषण ने कहा था कि उन्होंने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि वह बाइक स्टैंड मोड में थी।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि उनकी यह टिप्पणी केवल मुख्य न्यायाधीश पर व्यक्तिगत टिप्पणी न होकर इस पद पर बैठे हुए व्यक्ति पर की गयी टिप्पणी है जो भारत की न्यायिक व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए शख्स भी हैं। भूषण के पहले ट्वीट के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि यह ट्वीट प्रकाशित होने के साथ ही करोड़ों लोगों तक गया, जिसने उनके बीच न्यायपालिका पर विश्वास खत्म करने की कोशिश की है।
प्रशांत भूषण की खुलकर हिमायत कर रहे व इस मसले पर काफी मुखर स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने लिखा है कि सत्य सूली पर चढ़ेगा, यह सुकरात काल है!
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने बेहद कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ताकत का क्रूर प्रदर्शन है।
देश के प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘द हिंदू’ के संपादक एन. राम ने कहा कि यह हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए काला दिन है। जाने-माने इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी इसे लेकर ट्वीट किया और फ़ैसले वाले दिन को भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिन बताया। गुहा ने कहा कि इस क़दम से सुप्रीम कोर्ट ने ख़ुद का और देश का क़द नीचे किया है।
न्यूज़ वेबसाइट ‘द प्रिंट’ के संपादक शेखर गुप्ता ने कहा है कि अदालत के इस आदेश के लिए यही कहा जा सकता है कि यह प्रतिष्ठित संस्था ख़ुद को नीचा दिखा रही है।
वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को छोटा करने की कोशिश में बहुत बड़ा बना दिया है।
असहमति रखने वाले राष्ट्रविरोधी नहीं
ट्विटर पर कुछ लोग यह सवाल भी खड़ा कर रहे हैं कि अदालत का फ़ैसला सर्वोपरि है और इससे असहमति रखने वाले संविधान के विरोधी हैं। लेकिन समय-समय पर शीर्ष अदालत के न्यायधीशों द्वारा असहमति को बेहद ज़रूरी बताया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘असहमति लोकतंत्र के लिए सेफ़्टी वॉल्व है। अगर आप इस सेफ़्टी वॉल्व को नहीं रहने देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएगा।' उन्होने यह भी कहा था कि असहमति रखने वालों को राष्ट्रविरोधी या लोकतंत्र विरोधी बताना संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता पर चोट करता है।
चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेन्स
यहां यह भी याद रखना ज़रूरी होगा कि जनवरी, 2018 में शायद आज़ादी के बाद यह पहला मौक़ा था, जब सुप्रीम कोर्ट के ही चार सिटिंग मुख्य न्यायधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर कहा था कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट को बचाया जाना ज़रूरी है और उन्होंने एक तरह से तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी और उनके कामकाज पर सवाल उठाए थे। इसका सीधा मतलब यह है कि सुप्रीम कोर्ट से असहमति रखी जा सकती है।