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वित्त मंत्री ने क्यों दी कॉरपोरेट को छूट? 4 महीने में हुआ 17 खरब का नुक़सान

वित्त मंत्री ने क्यों दी कॉरपोरेट को छूट? 4 महीने में हुआ 17 खरब का नुक़सान

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कॉरोपोरेट जगत को करोें में छूट देने के पीछे क्या थी वजह? बजट से निराश शेयर बाजार को 17.60 खरब रुपये का नुक़सान हो चुका है। 

आख़िर क्या वजह थी कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट जगत को करों में ज़बरदस्त रियायत दी है। कॉरपोरेट जगत को दी गई छूटों की वजह से उन्हें सालाना 1.45 लाख करोड़ रुपए या फ़ायदा होगा। इस घोषणा का नतीजा यह हुआ कि शेयर बाज़ार में 10 साल की तेजी देखी गई, बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदनशील सूचकांक 1900 अंक तो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक निफ़्टी 1100 अंक उछला। नतीजा यह हुआ कि सेंसेक्स 37,000 तो निफ़्टी 11,000 अंक पार कर गया। 

नई सरकार के बजट से कॉरपोरेट जगत निराश था, शेयर बाज़ार बुरी तरह टूट रहा था और सूचकांक गोते लगा रहा था। 3 जून के बाद से अब तक शेयर बाज़ार के निवेशकों को लगभग 17.60 अरब रुपये का नुक़सान हो चुका था। अमेरिकी फ़ेडरल रिज़र्व में कटौती करने के अनुमान और घरेलू संस्थागत निवेशकों को घाटे की वजह से शुक्रवार को सेंसेक्स 470.41 अंक टूट कर 36,093.47 पर आ गया था। निफ़्टी 135.85 अंक गिर कर 10,704.80 पर पहुँच गया था। 

विश्लेषकों का कहना है कि बाज़ार से जुड़े लोगों को अर्थव्यवस्था को लेकर घनघोर निराशा थी, वे अपना हाथ खींच रहे थे, अपने पैसे निकाल रहे थे और इस वजह से शेयर बाज़ार बुरी तरह टूट रहा था। सरकार ने कर उगाही में 17.5 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद की थी, पर पहली छमाही में उसे सिर्फ़ 4.7 प्रतिशत ज़्यादा राजस्व ही मिला। 

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट में रियल इस्टेट पर चिंता जताई थी, इससे भी शेयर बाजार परेशान था। बैंक और वित्तीय संस्थानों से जुड़ी कंपनियों के सूचकांक निफ़्टी बैंकिंग में गिरावट हुई थी, यस बैंक का सबसे बुरा हाल हुआ था। विदेशी और घरेलू संस्थागत निवेशकों ने ज़ोरदार बिकवाली की थी, घरेलू संस्थागत निवेशकों ने तीन दिन में 1,850 करोड़ रुपये निकाल लिए थे। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन सारी बातों के ऊपर सरकार की ओर से किसी तरह का समर्थन नहीं मिलना था। सरकार अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ नहीं कर रही थी और निवेशकों को लग रहा था कि जब सरकार ही कुछ नहीं कर रही है तो उनके पास खुश होने को कुछ नहीं है।

इन स्थितियों की वजह से सरकार को लगा था कि उसे कुछ न कुछ करना ही होगा ताकि निवेशकों को थोड़ा बहुत भरोसा तो हो। सरकार विदेशी संस्थागत निवेशकों को खुश करना चाहती थी क्योंकि वे बड़ी मात्रा में पैसे निकाल रहे थे। ऐसे समय में प्रधानमंत्री अमेरिका जा रहे हैं और वहाँ उन्हें उद्योगपतियों को खुश करना है। 

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