मणिुपर हिंसा के बाद हालात अब कुछ बेहतर होने लगे हैं, लेकिन सवाल है कि हिंसा की असल वजह क्या है? क्या सिर्फ़ यह कि एक समुदाय को एसटी यानी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर अदालत का आदेश आया है? या फिर कुछ और भी वजहें हैं?
इन सवालों के जवाब पाने से पहले यह जान लें कि राज्य में पिछले दो-तीन दिनों में क्या-क्या घटनाक्रम घटे हैं। हजारों आदिवासियों ने बुधवार को राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में एक मार्च निकाला। इन जिलों में अधिकांश आदिवासी आबादी निवास करती है। यह मार्च इसलिए निकाला गया कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के प्रस्ताव का विरोध किया जाए। मेइती समुदाय की आबादी मणिपुर की कुल आबादी का लगभग 53% है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है।
बहरहाल, राज्य के कई जिलों में आदिवासी समूहों द्वारा रैलियां निकालने के बाद कानून व्यवस्था बिगड़ गई। इसके साथ ही मणिपुर सरकार ने राज्य में अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट को सस्पेंड कर दिया। बड़ी रैलियों पर प्रतिबंध के साथ-साथ राज्य के कई जिलों में रात का कर्फ्यू भी लगाया गया।
चुराचंदपुर जिले में अशांति के बाद, बुधवार को राज्य के सभी दस पहाड़ी जिलों में छात्र संगठन द्वारा बुलाए गए 'आदिवासी एकजुटता मार्च' में हजारों लोग शामिल हुए। यह मार्च अनुसूचित जनजाति में मेइती समुदाय को शामिल करने के विरोध में था। मणिपुर के ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन यानी ATSUM ने मार्च का आह्वान किया था। इसने कहा कि यह मेइती समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने के विरोध में असंतोष जताने के लिए आयोजित किया गया।
शुरुआती रिपोर्टों में भले ही कहा गया कि मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में हुई रैली के कारण हिंसा हुई, लेकिन मणिपुर के सबसे प्रभावशाली छात्र संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर यानी एटीएसयूएम का कुछ और ही आरोप है। इसका आरोप है कि कुछ उपद्रवियों द्वारा चुराचंदपुर में एंग्लो-कुकी वार मेमोरियल गेट के एक हिस्से को जलाए जाने के बाद झड़पें शुरू हुईं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एटीएसयूएम के पदाधिकारियों का दावा है कि मार्च शांतिपूर्वक ख़त्म हो गया था, लेकिन जब युद्ध स्मारक को जलाया गया तो इससे स्थिति और बिगड़ गई। इसी वजह से मेइती और अन्य आदिवासियों के बीच झड़पें हुईं। मेइती की कई संपत्तियों और वाहनों को निशाना बनाया गया।
इम्फाल और अन्य गैर-आदिवासी क्षेत्रों में चर्चों, आदिवासियों के आवासों और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया। इसी तरह की तोड़फोड़ और आगजनी उन इलाकों में हुई जहां मेइती अल्पसंख्यक हैं।
कहा जा रहा है कि हिंसा होने की तात्कालिक वजह भले ही ये दिख रही हो, लेकिन असली वजह तो काफ़ी लंबे समय से चल रहा था। इसका एक कारण तो राज्य की वैली और हिल क्षेत्र के बीच बड़ी खाई भी है।
मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है।
राज्य के वैली व हिल एरिया के प्रशासन के लिए शुरू से ही अलग-अलग नियम-क़ानून रहा है। कानून में प्रावधान था कि मैदानी इलाक़ों में रहने वाले लोग पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते। पहाड़ी क्षेत्र समिति को पहाड़ियों में रहने वाले राज्य के आदिवासी लोगों के हितों की रक्षा करने का काम सौंपा गया।
तनाव बढ़ने के दो बड़े कारण
लंबे समय से प्रशासन सामान्य रूप से और शांतिपूर्ण तरीक़े से चल रहा था, लेकिन इस बीच कुछ बदलावों ने समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया। दरअसल, हुआ यह कि इम्फाल घाटी में उपलब्ध भूमि और संसाधनों में कमी और पहाड़ी क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के कारण 12 साल पहले मेइती के लिए एसटी का दर्जा मांगने की मांग उठी थी। मामला मणिपुर हाई कोर्ट पहुँचा। इस साल 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को एसटी सूची में मेइती को शामिल करने पर विचार करने के लिए केंद्र को सिफारिशें देने और अगले चार सप्ताह के भीतर मामले पर विचार करने का निर्देश जारी किया था।
उच्च न्यायालय के आदेश ने मेइती और आदिवासी नागा और कुकी समुदायों के बीच पुराना विवाद खोल दिया। नागा व कुकी मुख्य रूप से ईसाई हैं और उन्हें लगा कि बहुसंख्यक समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं मिलना चाहिए क्योंकि इससे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के हितों को नुकसान होगा।
वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद 371सी और अन्य अधिसूचनाओं के प्रावधानों के अनुसार मेइती पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन नहीं खरीद सकते हैं। मेइती ज्यादातर हिंदू हैं और कुछ मेइती पंगल मुस्लिम भी हैं। मेइती मणिपुर में अन्य पिछड़ी जाति यानी ओबीसी में आते हैं।
संरक्षित वन में भूमि सर्वेक्षण
संरक्षित वनों में राज्य सरकार द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षण को लेकर कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है। हाल ही में राज्य सरकार ने चुराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया। आरोप है कि उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की राय लिए बिना और उन्हें बेदखल करने के इरादे से सर्वेक्षण किया गया। स्थानीय लोगों को डर था कि इस अभियान का उद्देश्य उन्हें जंगलों से बेदखल करना है, जहां वे सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं।
यही वजह है कि 27 अप्रैल को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के व्यायामशाला और खेल परिसर का उद्घाटन करने के लिए उनके दौरे से एक दिन पहले चुराचंदपुर में एक भीड़ ने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम स्थल में आग लगा दी थी। इससे भी दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था।