मणिपुर में कुकी और मेइती समुदायों के बीच जारी हिंसा के बीच देश भर के ईसाई संगठनों ने शांति की अपील की है। इसके साथ ही इसने कहा है कि ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है।
यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम ऑफ़ नॉर्थ ईस्ट इंडिया ने कहा कि विभिन्न समूहों के बीच एक शक्ति संघर्ष की वजह से हिंसा, आगजनी और जीवन की हानि हुई है। इसने रविवार को सभी चर्चों को 'शांति के लिए प्रार्थना करने के सामूहिक प्रयास' में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है।
इस बीच बेंगलुरु के मेट्रोपॉलिटन आर्कबिशप और भारत के कैथोलिक समुदाय के एक प्रमुख व्यक्ति रेवरेंड डॉ पीटर मचाडो ने 'ईसाइयों को निशाना बनाये जाने' पर चिंता जताई है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'गहरी चिंता की बात है कि हम उत्तर पूर्व में मणिपुर के शांतिपूर्ण राज्य में ईसाइयों को निशाना बनाए जाने और उत्पीड़न किए जाने के मामले को फिर से देख रहे हैं, जहां ईसाई आबादी 41% है। हमें रिपोर्ट मिली है कि 1974 में बने तीन गिरजाघरों और कुछ घरों में आग लगा दी गई है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।'
रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर की 'बड़ी ईसाई आबादी को असुरक्षित महसूस कराने' के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए आर्कबिशप ने कहा, 'सत्ताधारी बीजेपी सरकार ने हेल्पलाइन निर्देश जारी किए हैं, यह उन लोगों के लिए ख़तरे की गंभीरता को दिखाता है जिन्हें उनके धार्मिक विश्वासों के लिए निशाना बनाया जा रहा है। यह बताया गया है कि लगभग सत्रह चर्चों को या तो तोड़ा गया, नुक़सान पहुँचाया गया, या अपवित्र किया गया। कई अब भी जल रहे हैं। हम आशा और प्रार्थना करते हैं कि स्थिति को नियंत्रण में लाया जाएगा और मणिपुर के लोगों में शांति और विश्वास बहाल होगा।'
उन्होंने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना सत्ताधारी सरकार की जिम्मेदारी है, विशेष रूप से लोगों ने सुशासन के लिए अपनी क्षमता पर विश्वास करते हुए पार्टी को सत्ता सौंपी है।
इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ़ इंडिया के महासचिव रेवरेंड विजयेश लाल ने शुक्रवार को कहा कि वह चुराचंदपुर जिले के लोगों के संपर्क में हैं। उन्होंने कहा, 'मैंने आज रात भी कुछ लोगों से बात की और जिले में स्थिति गंभीर है। सेना की मौजूदगी के बावजूद आज भी चर्चों को जलाया गया है। चीजें धीमी हो गई हैं, लेकिन वे पूरी तरह से बंद नहीं हुई हैं। हम मणिपुर के लोगों के लिए बहुत चिंतित हैं, चाहे वे किसी भी जनजाति या समुदाय के हों। वहां के आम लोग परेशान हैं। न खाना, न पानी और न ही मूलभूत सुविधाएं। लोग अपने घर छोड़कर भाग गए हैं। अधिकारियों के लिए कानून और व्यवस्था बहाल करना जितना महत्वपूर्ण है, उनके लिए राहत देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।'
उन्होंने कहा है कि हम इसमें शामिल सभी पक्षों से संयम बरतने और मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करने का आह्वान करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हम मणिपुर के लोगों से उन ताकतों से बचने का आग्रह करते हैं जो विभाजन को भड़काती हैं और ध्रुवीकरण का कारण बनती हैं।
बता दें कि मणिपुर मुख्य तौर पर दो क्षेत्रों में बँटा हुआ है। एक तो है इंफाल घाटी और दूसरा हिल एरिया। इंफाल घाटी राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10 फ़ीसदी हिस्सा है जबकि हिल एरिया 90 फ़ीसदी हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी हिस्से में ही राज्य की विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें आती हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य तौर पर मेइती समुदाय के लोग रहते हैं।
दूसरी ओर, आदिवासियों की आबादी लगभग 40% है। वे मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं जो मणिपुर के लगभग 90% क्षेत्र में हैं। आदिवासियों में मुख्य रूप से नागा और कुकी शामिल हैं। आदिवासियों में अधिकतर ईसाई हैं जबकि मेइती में अधिकतर हिंदू। आदिवासी क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोगों को जमीन खरीदने की मनाही है।