साथ आए सपा और रालोद, मेरठ की रैली में जुटी भारी भीड़
सपा और रालोद ने मंगलवार को मेरठ में हुई पहली संयुक्त रैली में जबरदस्त भीड़ जुटाकर यह संदेश दे दिया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुक़ाबला जोरदार रहेगा। किसान आंदोलन से खासे प्रभावित इस इलाक़े में इस रैली के जरिये सपा और रालोद के मिलकर चुनाव लड़ने का एलान भी कर दिया गया। निश्चित रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी भी आने वाले दिनों में पूरी ताक़त झोंकती दिखाई देगी।
इस रैली में चौधरी चरण सिंह से लेकर डॉ. आंबेडकर जिंदाबाद के नारे भी खूब लगे।
इस रैली को परिवर्तन संदेश रैली का नाम दिया गया था। सपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव भी रालोद के साथ मिलकर लड़ा था लेकिन तब इस गठबंधन में बसपा भी शामिल थी।
बदल जाएंगे हालात?
कृषि कानून वापस लेने के बाद भाजपा को पश्चिम उत्तर प्रदेश में समीकरण बदलने और सब कुछ पहले जैसा बेहतर हो जाने की उम्मीद बंधी थी। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि साल भर तक बीजेपी और मोदी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध का झंडा उठाए बैठे किसान इतनी आसानी से बीजेपी के साथ आ जाएंगे।
2013 में मुज़फ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद यहां हिंदू मतों का जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ था और जाट मतदाता बीजेपी के साथ चले गए थे। इससे आरएलडी की कमर टूट गई थी। लेकिन किसान आंदोलन के दौरान हुई महापंचायतों में जाट और मुसलमान एक बार फिर साथ आए और यही बीजेपी के लिए चिंता की बात है। महापंचायतों में बड़ी संख्या में जाट और मुसलमान आरएलडी के झंडे के नीचे गोलबंद होते दिखाई दिए।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए सियासी रूप से बेहद उपजाऊ इलाक़ा रहा है। 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में उसने यहां शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन इस बार किसान आंदोलन की वजह से हालात बीजेपी के ख़िलाफ़ बन रहे थे।
अब जब सरकार ने कृषि क़ानूनों की वापसी का एलान कर दिया है तो सवाल यह है कि बीजेपी को क्या इससे कोई सियासी फ़ायदा हो सकता है या फिर वह डैमेज कंट्रोल कर सकती है। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और मुसलिम बाहुल्य इलाक़ों में बीजेपी के ख़िलाफ़ जो नाराज़गी थी, वह चुनाव आने तक कितनी दूर होगी, यह देखने वाली बात होगी।