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यूपी चुनाव- सपा-आरएलडी में गठबंधन, सीट बंटवारा भी तय: रिपोर्ट

यूपी चुनाव- सपा-आरएलडी में गठबंधन, सीट बंटवारा भी तय: रिपोर्ट

कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद भले ही आरएलडी का गठबंधन बीजेपी के साथ होने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन गठबंधन सपा के साथ हो जाने की ख़बर है। जानिए, कितनी सीटों पर बनी सहमति और क्या हैं इसके मायने। 

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले सपा और आरएलडी के बीच गठबंधन होने के साथ ही सीट बँटवारे पर भी सहमति बन गई है। हालाँकि दोनों दलों ने इसकी घोषणा अभी तक नहीं की है, लेकिन रिपोर्ट है कि आरएलडी 36 सीटों पर चुनाव लड़ने को राज़ी है। 

दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर काफ़ी पहले से रिपोर्टें आ रही थीं, लेकिन ख़बर थी कि सीटों के बँटवारे को लेकर दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बन पा रही थी। इस बीच क़रीब 20 दिन पहले कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के बीच लखनऊ एयरपोर्ट पर मुलाक़ात हुई तो गठबंधन को लेकर नया कयास लगाया जाने लगा। फिर बहस इस बात पर होने लगी कि कहीं आरएलडी का गठबंधन कांग्रेस के साथ तो नहीं होगा। फिर तीनों कृषि क़ानूनों की घोषणा के बाद तो इस पर कयास लगाए जाने लगे कि कहीं आरएलडी का गठबंधन बीजेपी के साथ न हो जाए।

लेकिन इन कयासों के बीच ही अब साफ़ हो गया है कि आरएलडी का गठबंधन किसके साथ होगा। ईटी ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि सपा से तय समझौते के अनुसार रालोद को 36 सीटें दी गई हैं। इनमें से ज़्यादातर सीटें पश्चिमी यूपी में होंगी। ऐसी भी संभावना है कि सपा नेता रालोद के चुनाव चिह्न पर दो से तीन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी इस महीने के अंत में एक संवाददाता सम्मेलन में सीट बंटवारे के फार्मूले की घोषणा कर सकते हैं।

लेकिन यह समझौता इतना आसान भी नहीं था। सीट बंटवारे को लेकर काफी लंबे समय तक दोनों दलों के बीच वार्ता चली। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि आरएलडी ने शुरू में 62 सीटों की मांग की थी लेकिन सपा 30 से ज़्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी। माना जाता है कि पिछले हफ़्ते अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने काफी देर तक फोन पर बात की और आख़िर में 36 सीटों पर समझौता हुआ। 

आरएलडी मुख्य तौर पर मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, बुलंदशहर, मथुरा, अलीगढ़ और कुछ अन्य ज़िलों में चुनाव लड़ेगा। पश्चिम यूपी में ही इसकी मौजूदगी है। रिपोर्ट है कि उसे पूर्वी यूपी में भी एक या दो सीटें मिलेंगी। ऐसा इसलिए कि पार्टी के कुछ नेताओं ने इसकी मांग की है।

मौजूदा समय में दोनों दलों की जो भी स्थिति दिखती हो, लेकिन इससे पिछले चुनाव में दोनों दलों की स्थिति काफी ख़राब रही थी। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सपा के 49 विधायक हैं जबकि आरएलडी का एक भी विधायक नहीं है। हालाँकि आरएलडी ने पिछले चुनाव यानी 2017 के चुनाव में एक सीट जीती थी, लेकिन उनके विधायक बीजेपी में शामिल हो गए।

वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 136 विधानसभा सीटें हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस क्षेत्र में जबरदस्त जीत हासिल की थी और 136 में से 109 सीटें जीती थीं। हालांकि इसके बाद से बीजेपी की स्थिति कमजोर होती जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें बीजेपी ने जीती जबकि 2014 में इसने 23 सीटें जीती थीं। अब तो चुनावी सर्वे भी बीजेपी की स्थिति पहले से कमजोर होने की ओर इशारा करने लगे हैं।

समझा जाता है कि बीजेपी और संघ के आंतरिक सर्वे में भी उत्तर प्रदेश में बीजेपी की ख़राब स्थिति का पता चला है। कहा जा रहा है कि इसके बाद ही तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की गई है। 

तो सवाल है कि क्या बीजेपी को इससे फ़ायदा होगा? आख़िरी क्षण में क़ानूनों को वापस लेने का कितना चुनावी फ़ायदा होगा, यह तो चुनाव परिणाम बताएँगे, लेकिन आरएलडी और सपा के साथ आने से भी इसके संकेत मिलते हैं। 

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