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आज़मगढ़ और रामपुर में क्यों हार गई सपा?

आज़मगढ़ और रामपुर में क्यों हार गई सपा?

विधानसभा, विधान परिषद के चुनाव में हार के बाद सपा को एक बार फिर हार मिली है और इस बार यह हार उसे अपने घर में मिली है। क्या सपा इस हार से उबर पाएगी?

उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को आज़मगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में हार से तगड़ा झटका लगा है। यह दोनों ही सीटें सपा का गढ़ थीं और क्रमशः पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और पार्टी के बड़े नेता आज़म ख़ान के इस्तीफे से खाली हुई थीं।

चुनाव प्रचार के दौरान यह माना जा रहा था कि सपा इन दोनों सीटों को जीत लेगी लेकिन उसे दोनों ही सीटों पर शिकस्त मिली है। लेकिन इसकी प्रमुख वजह क्या है।

अखिलेश की गैर हाज़िरी

आज़मगढ़, रामपुर के उपचुनाव के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रचार में नहीं उतरे। जबकि बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित सरकार व संगठन के तमाम दिग्गजों ने पूरी ताकत झोंकी।

आज़मगढ़ में सपा की हार की एक अहम वजह बसपा का जोरदार प्रदर्शन भी रहा। आज़मगढ़ सीट पर बसपा के उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने 2,66,210 वोट हासिल किए और सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव की हार उनकी अहम भूमिका रही। 

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बीजेपी के उम्मीदवार और भोजपुरी सिनेमा के जाने-पहचाने चेहरे दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सपा उम्मीदवार और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को 8,679 वोटों से हराया। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने निरहुआ को यहां बहुत बड़े अंतर से मात दी थी।

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की प्रचंड लहर के बाद भी सपा ने आज़मगढ़ सीट बरकरार रखी थी। 

2022 के विधानसभा चुनाव में भी आज़मगढ़ सीट के तहत आने वाली पांचों विधानसभा सीटों पर सपा को जीत मिली थी। लेकिन बावजूद इसके इस बार यहां सपा उम्मीदवार को हार मिली है।

आज़मगढ़ में दलित, मुसलिम और यादव मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। लेकिन बसपा उम्मीदवार को मिले वोटों से पता चलता है कि दलितों और मुसलिमों के मतों में बीएसपी ने जबरदस्त सेंध लगाई है।

धर्मेंद यादव बाहरी?

हर की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि सपा नेतृत्व ने आज़मगढ़ सीट पर मुसलिम और यादव मतों को एकजुट करने के लिए ठोस कोशिश नहीं की। बसपा के उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली इस लोकसभा सीट के अंदर आने वाली मुबारकपुर विधानसभा सीट से 2 बार विधायक रहे हैं और इस इलाके में काफी लोकप्रिय भी हैं। धर्मेंद्र यादव को यहां पर बाहरी उम्मीदवार बताया जा रहा था जबकि गुड्डू जमाली यहां के स्थानीय नेता हैं और इसका फायदा उन्हें मिला है।

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रामपुर: आज़म विरोधियों को किया एकजुट

बात करें रामपुर सीट की तो इस सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा को हार मिली थी लेकिन 2019 में आज़म ख़ान यहां से जीते थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में रामपुर लोकसभा सीट के अंदर आने वाली 5 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी। 

बीजेपी ने इस बार यहां जबरदस्त चुनाव प्रचार तो किया ही आज़म ख़ान के विरोधी नेताओं को भी एकजुट कर अपने साथ ले लिया। आज़म ख़ान के विरोधी नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां, पूर्व विधायक अफरोज अली खां, जिला पंचायत सदस्य हुसैन चिंटू, खलील अहमद, रियासत अली भी खुलकर बीजेपी का प्रचार कर रहे थे। यहां पर कई मुसलिम बहुल गांवों में भी बीजेपी को अच्छे वोट मिले हैं।

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कम मतदान

योगी आदित्यनाथ सरकार के 16 मंत्री रामपुर सीट पर चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे। इस सीट पर कुल मतदाताओं में से लगभग 52 फीसद मुसलिम मतदाता हैं। रामपुर सीट पर सपा की हार की एक अहम वजह कम हुआ मतदान भी है। 

2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 63.19 फीसद मतदान हुआ था जबकि इस बार 41.39 फीसद मतदान हुआ। यहां बीजेपी के उम्मीदवार घनश्याम लोधी पुराने नेता हैं और सपा-बसपा में भी रह चुके हैं। वह आज़म ख़ान के करीबी रहे हैं। 

आज़म को झटका 

रामपुर सीट पर मतदान के बाद आज़म ख़ान सहित सपा के कई नेताओं ने पुलिस और प्रशासन पर मुसलिम वोटरों को धमकाने और उन्हें वोट देने से रोकने के आरोप लगाए थे। रामपुर सीट पर उम्मीदवार तय करने से लेकर उसे जिताने की जिम्मेदारी आज़म ख़ान पर ही थी और निश्चित रूप से 2 साल से ज्यादा वक्त जेल में बंद रहे आज़म ख़ान के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल था।

इन दोनों अहम सीटों के नतीजों का असर उत्तर प्रदेश 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी होगा। 

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