लंबी जिद्दोजहद और अगर-मगर के बाद आखिरकार उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिल कर चुनाव लड़ने का फ़ैसला कर लिया है। दोनों के बीच मोटे तौर पर सीटों का बंटवारा भी हो गया है। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के लिए 17 लोकसभा सीटें छोड़ने पर सहमति जता दी है। मंगलवार देर रात तक कांग्रेस के बड़े नेताओं और सपा मुखिया अखिलेश यादव के बाद हुई कई दौर की बातचीत के बात बुधवार सुबह सीट शेयरिंग को लेकर मोटे तौर पर सहमति बन गयी। दो सीटों को लेकर सपा और कांग्रेस में बातचीत चल रही है और माना जा रहा है कि इनमें से भी एक-एक सीट पर दोनों पार्टियाँ तैयार हो जाएंगी।
आज ही शाम तक इस संबंध में औपचारिक एलान भी हो सकता है। राहुल गांधी की न्याय यात्रा के उत्तर प्रदेश से मध्यप्रदेश की सीमा में प्रवेश करने के पहले ही दोनों दलों में सभी सीटों पर अंतिम सहमति बन जाने के आसार हैं। उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन की पहली रैली मार्च के पहले सप्ताह में वाराणसी में की जा सकती है।
लगातार नेताओं के पार्टी छोड़ने से बढ़ा सपा पर दबाव
इंडिया गठबंधन में सीटों के बँटवारे को लेकर अखिलेश यादव के अड़ियल रवैये से उनकी ही पार्टी के नेताओं में नाराजगी बढ़ रही थी। पहले राष्ट्रीय लोकदल के अलग होने और उसके बाद कांग्रेस से तनातनी की ख़बरों के बीच सपा के तमाम नेता असहज हो रहे थे। बिना सहयोगी दलों को विश्वास में लिए जिस तरह से अखिलेश यादव लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी घोषित करते जा रहे उससे भी उनकी ही पार्टी के नेताओं में नाराजगी बढ़ रही थी। हाल के दिनों में सपा के दो राष्ट्रीय महासचिवों स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम शेरवानी ने पार्टी छोड़ी तो सहयोगी दल व सपा के ही सिंबल पर विधायक अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल ने नाराजगी जताते हुए राहुल गांधी की न्याय यात्रा में हिस्सा लिया। एक और राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज के भी सपा छोड़ने की जोरो सें चर्चा चल रही है।
अल्पसंख्यक मतों को लेकर भी बैकफुट पर अखिलेश
बीते दस दिनों से सपा मुखिया अखिलेश यादव को प्रदेश के अलग-अलग फिरकों के उलेमा, धर्मगुरु व मौलाना चिट्ठी लिख कर कांग्रेस के साथ गठबंधन पर उनके रवैये पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। मुस्लिम उलेमाओं के कई प्रतिनिधिमंडल सपा मुखिया से मिल कर साफ़ कर चुके हैं कि कांग्रेस का साथ छोड़ने की दशा में अल्पसंख्यक मतों का बड़ा हिस्सा नहीं मिलेगा।
प्रदेश के लगभग सभी लोकसभा सीटों पर सपा के संभावित प्रत्याशी भी अखिलेश यादव से यह आशंका जता चुके हैं कि कांग्रेस से अलग लड़ने पर मुस्लिम मतों से पूरी तरह से हाथ धोना पड़ सकता है। खुद सपा से अलग होने वाले उसके पदाधिकारी भी यही कह रहे हैं।
मुस्लिम मतों को लेकर लगातार मिल रहे फीडबैक के बाद अखिलेश यादव ने खुद ही कांग्रेस के आला नेताओं से बातचीत शुरू की और सीटों पर सहमति बनी।
पश्चिम की लोकसभा सीटों को लेकर फँसा था पेंच
कांग्रेस और सपा के बीच पश्चिमी यूपी की कई लोकसभा सीटों को लेकर पेंच फँसा हुआ था और अभी भी उनमें फेरबदल की गुंजाइश बची हुई है। सपा मुखिया ने रालोद के कोटे में पहले दी जा चुकी मथुरा, बुंलदशहर व हाथरस लोकसभा सीटें कांग्रेस को देने की बात कही है जबकि कांग्रेस इनकी जगह पर अमरोहा, बिजनौर और मुरादाबाद जैसी मुस्लिम बहुल सीटें मांग रही थी। अब इस बात पर सहमति बनी है कि कांग्रेस सपा की सिटिंग सीट मुरादाबाद पर दावा नहीं करेगी पर बिजनौर या अमरोहा में से एक सीट लेगी। वहीं मथुरा, बुलंदशहर और हाथरस में से एक सीट सपा लेगी।
लखीमपुर और श्रावस्ती की सीट तय होना बाकी
लखीमपुर सीट पर कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए सपा के राष्ट्रीय महासचिव रविप्रकाश वर्मा को लेकर दोनों दलों में जोर-अजमाइश चल रही है। दरअसल कांग्रेस इस सीट पर रविप्रकाश वर्मा की बेटी पूर्वी वर्मा को लड़ाना चाहती है जबकि अखिलेश यादव यहाँ से अपने खास उत्कर्ष वर्मा का नाम बहुत पहले घोषित कर चुके हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्वी वर्मा को पार्टी में लेते समय प्रियंका गांधी ने उन्हें लखीमपुर से चुनाव लड़ाने का वादा किया था। इसी तरह श्रावस्ती सीट पर 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के रामशिरोमणि वर्मा जीते थे जो अब भाजपा में जाने की तैयारी में हैं। कुर्मी, मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर सपा अपना प्रत्याशी लड़ाना चाहती है तो कांग्रेस भी दावा कर रही है। एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक़ आखिर में श्रावस्ती कांग्रेस को और लखीमपुर सपा को मिलने पर बात बन जाएगी।