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सपा वाले गठबंधन में गड़बड़ी के संकेत! एक सहयोगी दल ने सीटें क्यों लौटाईं?

सपा वाले गठबंधन में गड़बड़ी के संकेत! एक सहयोगी दल ने सीटें क्यों लौटाईं?

समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन के सहयोगी दल अपना दल (के) चुनाव से ऐन पहले नाराज़ क्यों है? जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओ में असंतोष क्यों बढ़ रहा है?

समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में क्या अभी भी सबकुछ ठीक नहीं है? यूपी में चुनाव के ऐन पहले गठबंधन के एक सहयोगी दल ने अपने हिस्से की सभी सीटें समाजवादी पार्टी को क्यों लौटा दी हैं? ऐसा तब है जब चुनाव से पहले काफी लंबे समय तक सीटों के बंटवारे पर उन दलों को काफ़ी कसरत करनी पड़ी थी।

यूपी में पहले चरण के चुनाव के लिए क़रीब एक हफ़्ते का ही समय बचा है और इस बीच समाजवादी पार्टी और अपना दल (के) के बीच गठबंधन को लेकर संकेत अच्छे नहीं मिल रहे हैं। अपना दल (के) को सपा के साथ अपने गठबंधन के तहत 18 सीटों पर चुनाव लड़ना था। उसने 29 जनवरी को इसमें से सात सीटों की सूची की घोषणा भी कर दी थी। लेकिन अब लगता है कि इसमें नया मोड़ आ गया है।

अपना दल (के) ने अब सपा द्वारा उसे दी गई सीटों को लौटाने का फ़ैसला किया। अपना दल (के) ने जिन सात सीटों की घोषणा पहले की थी- रोहनिया और पिंडारा (वाराणसी), मरियाहू (जौनपुर), मरिहान (मिर्जापुर), घोरावल (सोनभद्र), प्रतापगढ़ सदर (प्रतागढ़) और इलाहाबाद पश्चिम (प्रयागराज) के अलावा सिराथू को भी छोड़ देने की बात कही। 

'द इंडियन एक्सप्रेस' से अपना दल (के) के राष्ट्रीय महासचिव पंकज निरंजन ने कहा, 'हम नहीं चाहते कि गठबंधन में कोई विवाद और भ्रम हो। इसलिए, हमने उन सभी सीटों को वापस कर दिया है जो सपा ने अपना दल को गठबंधन में लड़ने के लिए दी थी। पहले सपा उन्हें सीट दें, जिन्हें उनकी ज़रूरत है। अगर कोई सीट निर्विवाद रह जाती है, तो वे हमें दे दें।' हालाँकि उन्होंने कहा कि पार्टी सपा के साथ गठबंधन जारी रखेगी। निरंजन ने कहा, 'अगर अपना दल एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ता है, तो हम पिछड़े वर्गों के लिए अखिलेश यादव के लिए प्रचार करेंगे।'

अपना दल (के) के ये शब्द भले ही ऊपर से त्याग को दिखाने वाले लगें, लेकिन इसमें अपना दल (के) की नाराज़गी दिखती है। तो सवाल है कि इस नाराज़गी की वजह क्या है?

परेशानी तब शुरू हुई जब सपा ने बुधवार को अपने नेता अमरनाथ मौर्य को इलाहाबाद पश्चिम से उम्मीदवार के रूप में घोषित किया। इलाहाबाद पश्चिम गठबंधन द्वारा अपना दल (के) को आवंटित सीटों की सूची में है।

उसी दिन सपा ने अपना दल (के) नेता पल्लवी पटेल को कौशाम्बी जिले के सिराथू से उम्मीदवार के रूप में घोषित किया। यहाँ भी बिना यह स्पष्ट किए कि वह अपनी पार्टी के या सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगी। 

समझा जाता है कि इन दो सीटों पर समाजवादी पार्टी द्वारा नामों की घोषणा किए जाने से अपना दल (के) को धक्का पहुँचा। तो क्या पार्टी ने अपनी नाराज़गी गठबंधन को बताई है? 

अपना दल (के) के राष्ट्रीय महासचिव पंकज निरंजन ने कहा कि उन्होंने सभी सीटें छोड़ने के अपनी पार्टी के फ़ैसले से सपा नेता उदयवीर सिंह को अवगत करा दिया है। उदयवीर सिंह दोनों दलों के बीच समन्वय के लिए अधिकृत हैं। निरंजन ने कहा कि हम सपा की ओर से प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे हैं।

अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि उदयवीर सिंह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे, लेकिन सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि उन्हें अपना दल (के) के फ़ैसले के बारे में पता नहीं था। 

अब जानकारों का मानना है कि गठबंधन के दोनों दलों में ऐसे भ्रम की स्थिति से गठबंधन को नुक़सान हो सकता है। मतदाताओं के सामने एकदम साफ़ तसवीर होनी चाहिए।

माना जाता है कि अपना दल (के) का राज्य भर में कुर्मी मतदाताओं के बीच और पूर्वी और मध्य यूपी में मुसलमानों के बीच प्रभाव है। मतदाताओं में भ्रम की स्थिति में अपना दल (के) के प्रतिद्वंद्वी गुट अपना दल (सोनेलाल) को फायदा हो सकता है जो एनडीए का हिस्सा है।

कृष्णा पटेल अपना दल (के) की प्रमुख हैं, जबकि उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल अपना दल (सोनेलाल) गुट की अध्यक्ष हैं और केंद्र में एनडीए सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं।

बता दें कि सपा ने राष्ट्रीय लोक दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल और जनवादी सोशलिस्ट पार्टी के साथ भी साझेदारी की है। एक रिपोर्ट के अनुसार जनवादी सोशलिस्ट पार्टी यानी जेएसपी ने उन 12 सीटों की सूची दी थी जहां से उसके उम्मीदवारों को सपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ना था। लेकिन कहा जा रहा है कि इस पार्टी के किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है और इससे कार्यकर्ताओं में असंतोष पैदा हो रहा है। 

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि गठबंधन के सहयोगियों में पैदा हो रहे संदेहों को दूर करने के लिए और उनकी नाराज़गी दूर करने के लिए अखिलेश यादव को आगे आना होगा। तो सवाल है कि अखिलेश आगे आएँगे या फिर संभावित राजनीतिक नुक़सान को उठाएँगे?

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