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सोनिया : मोदी जी! मनरेगा को बीजेपी बनाम कांग्रेस न बनाएँ, इससे ग़रीबों की मदद करें

सोनिया : मोदी जी! मनरेगा को बीजेपी बनाम कांग्रेस न बनाएँ, इससे ग़रीबों की मदद करें

सोनिया गाँधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मनरेगा को और मजबूत करें और इसमें यह न सोचें कि यह मामला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच का है। 

कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने मनरेगा के बहाने नरेंद्र मोदी सरकार पर तीखा हमला किया है और नसीहत भी दी है। उन्होंने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि वह जिस मनरेगा के ख़िलाफ़ थे, धीरे- धीरे उसके पैसे में कटौती करते रहे, संकट के समय वही ग़रीबों तक पहुँचने का सबसे कारगर हथियार बन कर उभरा है।

उन्होंने सलाह देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मनरेगा को और मजबूत करें और इसमें यह न सोचें कि यह मामला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच का है। 

बुनियादी बदलाव

सोनिया गाँधी ने इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में विस्तार से बताया है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम व्यवस्था में बुनियादी बदलाव का एक औज़ार है और यह तर्कसंगत भी है। इसके माध्यम से समाज के सबसे ज़्यादा ग़रीब लोगों के हाथ में सत्ता दे दी गई और इसके ज़रिए ही उनकी जेब में पैसे भी दिए गए। 

सोनिया गाँधी ने कहा कि किस तरह सरकार ने इस योजना को कमज़ोर और बदनाम करने की कोशिशें की। 

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि मनरेगा समाज के सबसे ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों को कोरोना जैसे संकट के समय भुखमरी और बदहाली से बचाने में सबसे ज़्यादा कारगर साबित हुआ है।

मनरेगा क्यों

उन्होंने मनरेगा की शुरुआत कैसे हुई, इसकी याद दिलाते हुए कहा कि सिविल सोसाइटी और जनता के बड़े हिस्से की माँग के आधार पर ही कांग्रेस पार्टी ने 2004 के चुनाव घोषणा पत्र में इसे शामिल किया और सितंबर 2005 में संसद में इस अधिनियम को पारित करवाया। 

कांग्रेस सुप्रीमो ने मनरेगा के पीछे के तर्क को साफ़ करते हुए कहा कि बुनियादी तौर पर यह माना गया कि गाँवों में रहने वाले हर आदमी को यह हक़ है कि वह रोज़गार की माँग करे, इसे मान लिया गया और यह तय किया गया कि हर आदमी को साल में कम से कम 100 दिन का रोज़गार दिया जाए और उसे न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान किया जाए।

मनरेगा काम के अधिकार की पुष्टि करता है, इसने ग़रीबी उन्मूलन पर फ़ोकस किया और 15 साल में इसके ज़रिए करोड़ों लोगों को भुखमरी और बदहाली से निजात दिलाई गई।

'मनरेगा का मजाक'

सोनिया ने महात्मा गाँधी को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘जब किसी आन्दोलन का मज़ाक उड़ा कर उसे नष्ट नहीं किया जा सकता है तो उसके प्रति सम्मान का भाव जगाता है।’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनरेगा का मजाक उड़ाया, इसे कांग्रेस पार्टी की नाकामी का जीता जागता सबूत बता कर उस पर हमला किया और इसे कमज़ोर करने की कोशिशें कीं। 

कांग्रेस नेता ने कहा कि मनरेगा कार्यकर्ताओं के दबाव, कोर्ट के हस्तक्षेप और संसद में विपक्षी दलों के मुखर विरोध के कारण सरकार को पीछे हटना पड़ा। उसने मनरेगा को स्वच्छ भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी स्कीमों के साथ जोड़ लिया और ऐसे पेश किया मानो कोई बहुत बड़ा सुधार किया जा रहा हो। पर दरअसल कांग्रेस की नीतियों को ही आगे बढ़ाया गया।

विपक्षी की इस सबसे बड़ी नेता ने कहा कि पहले से सुस्त चल रही अर्थव्यवस्था जब एकदम चौपट होने को आई और लोगों को अभूतपूर्व दिक्क़तों का सामना करना पड़ा तो सरकार ने ग्रामीण रोज़गार की इस बड़ी योजना का सहारा लिया।

सरकार पर हमला

सोनिया गाँधी ने कुछ तंज के साथ कहा कि करनी कथनी से बड़ी होती है, यह इससे साफ़ है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस योजना के तहत दिए जाने वाले पैसे में एक लाख करोड़ रुपए की वृद्धि कर दी है। मई महीने में 2.19 करोड़ लोगों ने इस अधिनियम के तहत काम माँगा है, जो 8  महीने का रिकार्ड है। 

सोनिया गाँधी ने व्यंग्य के साथ कहा कि सरकार अभी भी कांग्रेस के प्रति विद्वेष की वजह से इस योजना में ख़ामियाँ ढूंढ सकती है, पर सच यह है कि इस मनरेगा ने पंचायती राज को बदल दिया, जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों को कम करने में मदद की और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बहुत ही मजबूत सहारा दिया। सोनिया गाँधी ने अपने लेख में लिखा, 

मनरेगा ने सबको बराबर की मज़दूरी देकर समानता के भाव को मजबूत किया। इसके साथ ही महिलाओं, अनुसूचित जाति-जनजाति और समाज के दूसरे कमज़ोर तबके के लोगों के सशक्तीकरण का काम किया। इस वजह से समाज के इन लोगों को सम्मान से जीने का मौका भी मिला।


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क्यों आई मनरेगा की याद

सोनिया गाँधी ने ज़ोर देकर कहा कि जब अभूतपूर्व आपदा आई और लोग बड़ी तादाद में अपने गाँवों को लौट आए, जिनके पास पहले वाला रोज़गार नहीं है और अनिश्चित  भविष्य है, मनरेगा की ज़रूरत पहले से अधिक साफ़ बन कर उभरी। 

सोनिया गाँधी ने पंचायती राज को मजबूत करने के लिए राजीव गाँधी की कोशिशों को याद करते हुए कहा कि मनरेगा केंद्रीय योजना नहीं है। यह पंचायत के स्तर पर है, इसके ज़रिए सत्ता का विकेंद्रीकरण कर उसे पंचायत स्तर पर लाया गया। ग्राम सभा के निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी ज़रूरतों को समझते हैं, पैसे कहां और कैसे खर्च किया जाए और उसकी क्या प्राथमिकता होनी चाहिए, यह जानते हैं।

वे ज़मीनी हकीक़त समझते हैं और बाहर से आए लोगों के बारे में जानते हैं। ऐसे में लोगों की कार्यकुशलता का इस्तेमाल कर स्थायी विकास के काम इस योजना के ज़रिए किए जाने चाहिए और पर्यावरण को बचाने की कोशिशें की जानी चाहिए। 

क्या करे सरकार

कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह संकट की इस घड़ी में सीधे लोगों के हाथ में पैसे डाले, उनके सभी बकायों का भुगतान करे और उन्हें बेरोज़गारी भत्ता दे। इसके साथ ही सरकार को चाहिए कि वह भुगतान के तरीके को सरल बनाए और जिसे जिस तरह से सुविधा हो, मज़दूरी दे। 

सोनिया गाँधी ने यह कह कर सरकार की आलोचना की कि सरकार ने अभी भी मनरेगा के तहत न्यूनतम 200 दिन काम देने की माँग नहीं मानी है। इसके साथ ही मनरेगा में लगातार पैसे देते रहना चाहिए। 

सोनिया गाँधी ने केंद्र सरकार को सलाह दी कि यह संकट का समय है, इसे समय इस पर राजनीति न की जाए, इस कांग्रेस बनाम बीजेपी का मामला न बनाया जाए और इसे पूरी तरह लागू किया जाए क्योंकि अभी देश को इसकी ज़रूरत है।

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