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राहुल किंतु परंतु के साथ कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राज़ी!

राहुल किंतु परंतु के साथ कांग्रेस अध्यक्ष बनने को राज़ी!

राहुल गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष हो सकते हैं। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ पार्टी के पदाधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं की अहम बैठक के बाद इस आशय के पुख़्ता संकेत मिले हैं। 

राहुल गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष हो सकते हैं। जनवरी के आख़िर या फ़रवरी की शुरुआत में वह औपचारिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल सकते हैं। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ पार्टी के पदाधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं की अहम बैठक के बाद इस आशय के पुख़्ता संकेत मिले हैं। क़रीब पाँच घंटे चली इस बैठक के बाद कांग्रेस के कई नेताओं ने दावा किया कि राहुल गांधी किंतु-परंतु और अगर-मगर के साथ दोबारा अध्यक्ष पद संभालने को राज़ी हो गए हैं।

बैठक में शामिल एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि बैठक में अध्यक्ष पद के चुनाव का ज़िक्र होने पर सभी नेताओं ने एक सुर में राहुल गांधी से दोबारा अध्यक्ष पद संभालने की गुज़ारिश की। सभी नेताओं ने उनके नेतृत्व में विश्वास जताया। इस पर राहुल गांधी ने सीधे तौर पर न तो नेताओं की माँग स्वीकार करके अध्यक्ष पद संभालने का भरोसा दिया और न ही इस माँग को सिरे से ख़ारिज किया। लेकिन उन्होंने यह कह कर अपनी ज़िद छोड़ने का संकेत ज़रूर दिया कि पार्टी उन्हें जो भी ज़िम्मेदारी देगी वो उसे निभाएँगे

ग़ौरतलब है कि अभी तक राहुल गांधी इस ज़िद पर अड़े हुए थे कि वह किसी भी सूरत में पार्टी अध्यक्ष का पद दोबारा नहीं संभालेंगे। उनका कहना था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता उनकी माँ सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी को छोड़कर परिवार के बाहर के किसी भी नेता को पार्टी अध्यक्ष चुनें। यह पहली बार है कि राहुल गांधी ने पार्टी की तरफ़ से मिलने वाली हर ज़िम्मेदारी संभालने का भरोसा दिया है। राहुल का यह लचीला रुख़ सामने आने के बाद माना जा रहा है कि देर-सबेर वही दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी संभालेंगे।

ग़ौरतलब है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद दोबारा संभालने को राज़ी नहीं होने की स्थिति में कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने प्रियंका गांधी वाड्रा से अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी संभालने की गुज़ारिश का थी। लेकिन प्रियंका ने यह कहते हुए यह ज़िम्मेदारी लेने से साफ़ तौर पर मना कर दिया था कि वह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मज़बूत करके उसे प्रदेश की सत्ता में लाने की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं। यह ज़िम्मेदारी उन्हें राहुल गांधी ने दी है और वह उसे पूरा करेंगी। कई मौक़ों पर प्रियंका ने यह भी साफ़ किया है कि वह न पहले अध्यक्ष पद की दावेदार थीं और न ही अब दावेदार हैं।

प्रियंका के दो टूक मना करने के बाद पार्टी नेताओं का सारा ज़ोर राहुल को ही दोबारा अध्यक्ष पद संभालने के लिए राज़ी करने पर रहा। इस मक़सद में अब कामयाबी मिलती दिख रही है।

शनिवार को हुई एक अहम बैठक में उन 23 नेताओं में से कई नेता शामिल हुए जिन्होंने अगस्त में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर नेतृत्व में बदलाव की माँग की थी। अगस्त में लिखी गई उस चिट्ठी में यह कहकर नेतृत्व बदलने की माँग की गई थी कि पार्टी की बागडोर ऐसे हाथों में सौंपी जाए जो पूरे समय पार्टी के लिए सक्रिय रह कर काम करे।

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बैठक में इस पर चर्चा होनी थी। लेकिन सूत्रों के मुताबिक़ इस पर चर्चा की नौबत नहीं आई क्योंकि इन सभी नेताओं ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरा विश्वास जताते हुए राहुल गांधी से अध्यक्ष पद संभालने की गुज़ारिश की। बता दें कि अगस्त में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस पर काफ़ी बवाल मचा था। तब यह भी कहा गया था कि राहुल गांधी ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगाया था। इस पर ग़ुलाम नबी आज़ाद ने बीजेपी से सांठगांठ साबित होने पर राजनीति छोड़ने तक की धमकी दी थी।

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चिट्ठी पर बवाल मचने के बाद इस पर दस्तख़त करने वाले कई नेताओं ने ख़ुद को असंतुष्ट कहे जाने पर सख़्त एतराज़ जताया था। उनका कहना था कि वे पार्टी नेतृत्व से न तो नाराज़ हैं और न ही असंतुष्ट हैं। उन्होंने चिट्ठी के ज़रिए पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष तक सिर्फ़ अपनी बात पहुँचाई है। कई नेताओं ने यह सफ़ाई भी दी थी कि उन्हें सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व पर पूरा विश्वास है। वे तो सिर्फ़ यह चाहते हैं कि अध्यक्ष पद को और ज़्यादा समय तक खाली रखना पार्टी हित में नहीं है। लिहाज़ा राहुल गांधी अध्यक्ष पद संभाल कर पार्टी को नई दिशा दें।

ग़ुलाम नबी आज़ाद ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पार्टी संगठन में व्यापक फेरबदल की ज़रूरत जताई थी। उन्होंने और भी कई सख़्त बातें कही थीं।

लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि राहुल गांधी के दोबारा अध्यक्ष बनने पर न तो उन्हें कोई एतराज़ है और न ही चिट्ठी पर दस्तख़त करने वाले अन्य नेताओं को। वे तो सिर्फ़ यह चाहते हैं कि अध्यक्ष पद का सस्पेंस जल्दी ख़त्म हो। उन्हीं दिनों शशि थरूर ने भी कहा था कि राहुल गांधी का दोबारा पार्टी अध्यक्ष पद संभालना पार्टी के लिए सबसे अच्छा विकल्प है लेकिन अगर राहुल दोबारा अध्यक्ष नहीं बनना चाहते हैं तो फिर पार्टी को उनके फ़ैसले का सम्मान करते हुए आगे बढ़ जाना चाहिए।

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तमाम नेताओं के एक सुर में यही बात दोहराने का ही नतीजा है कि राहुल गांधी को अपनी ज़िद छोड़नी पड़ रही है। दोबारा अध्यक्ष नहीं बनने के अपने फ़ैसले पर उन्हें पुनर्विचार करना पड़ रहा है। फ़िलहाल पार्टी नेता इसे पार्टी के लिए अच्छा संकेत मान रहे हैं। बैठक के बाद पार्टी की तरफ़ से बताया गया है कि इस बैठक से ही पार्टी की अगला अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अगले दस दिनों तक सोनिया गांधी पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं से अध्यक्ष पद के मसले पर चर्चा करेंगी। चर्चा का दौर ख़त्म होने के बाद अध्यक्ष पद के लिए बाक़ायदा चुनाव होगा।

पार्टी की तरफ़ से दी जाने वाली ज़िम्मेदारी को संभालने का राहुल गांधी द्वारा भरोसा दिए जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद उनका निर्विरोध चुना जाना तय माना जा रहा है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ अलग-अलग राज्यों की प्रदेश इकाइयाँ राहुल गांधी को ही अपनी तरफ़ से अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाकर उनका पर्चा भरेंगी। यह कोशिश होगी कि चुनाव में कोई गड़बड़ी फैलाने की कोशिश न करे। सूत्रों के मुताबिक़ सोनिया गांधी तमाम नेताओं से चर्चा करके यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि अध्यक्ष पद पर राहुल का चुनाव निर्विरोध ही हो। अगर डेढ़ साल से किसी ने पार्टी की बागडोर संभालने की इच्छा नहीं जताई तो फिर राहुल को ही बग़ैर रोक-टोक यह ज़िम्मेदारी संभालने दी जाए।

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दरअसल, राहुल गांधी के ज़िद छोड़ने के संकेत पिछले काफ़ी दिनों से मिलने शुरू हो गए थे। इसके पुख़्ता संकेत राहुल गांधी के ख़ास सिपहसालार रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बैठक से एक दिन पहले ही दे दिए थे। उन्होंने कहा था कि उनके समेत पार्टी के 99.9 प्रतिशत नेता और कार्यकर्ता राहुल गांधी को ही दोबारा अध्यक्ष पद पर देखना चाहते हैं। 

इससे संकेत मिला था कि बैठक में राहुल अपनी ज़िद छोड़ देंगे। ऐसा ही हुआ भी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अध्यक्ष पद पर दोबारा बैठने में राहुल कितना समय और लेते हैं।

राहुल का दोबारा अध्यक्ष बनना वैसे तो महज औपचारिकता भर होगी। अभी भी राहुल ही पार्टी में सभी महत्वपूर्ण फ़ैसले कर रहे हैं। सोनिया गांधी की सहमति और संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की मुहर तो बस बहाना है। कुछ महीने पहले हुए फेरबदल में जिस तरह राहुल के भरोसेमंद लोगों को ख़ास ज़िम्मेदारी सौंपी गई उसे देखते हुए लगा था कि यह फ़ैसला राहुल गांधी का ही है। तभी से ऐसा लगने लगा था कि राहुल दोबारा अध्यक्ष पद संभालने से पहले पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर अपने वफादारों को बैठा देना चाहते हैं।

आज जब राहुल पार्टी की तरफ़ से दी गई ज़िम्मेदारी को संभालने का भरोसा दे रहे हैं तो लगता है कि सबकुछ पहले से लिखी गई स्क्रिप्ट के हिसाब से हो रहा है।

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