पहले घटिया बात करेंगे और फिर बताएँगे असली हिंदू कौन है?

05:38 pm Dec 16, 2018 | आशुतोष - सत्य हिन्दी

‘विदेशी स्त्री से उत्पन्न संतान कभी देशहित और राष्ट्र प्रेम का अनुगामी नहीं हो सकता।’- ये भयानक विचार हैं बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय के। विजयवर्गीय बीजेपी के महामंत्री हैं। मध्य प्रदेश में ख़ुद को मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार के तौर पर देखते हैं। लेकिन उनकी भाषा देखिए। भाषा का संस्कार देखिए। इस भाषा के पीछे का कुत्सित विचार देखिए। यह नफ़रत और घृणा से भरा हुआ है। उनके निशाने पर राहुल गाँधी हैं। सबको पता है कि उनकी माँ सोनिया गांधी है। वे विदेशी हैं। इटली की रहने वाली हैं। राहुल के पिता राजीव गाँधी से शादी के बाद वे भारत में ही बस गई। भारतीय परिधान में रहती है। बहुत ख़ूबसूरत साड़ी पहनती हैं। हिंदी बोलती हैं।

हिंदू संस्कारों को समझते हैं विजयवर्गीय

हालाँकि उनके हिंदी बोलने में इटैलियन ऐक्संट आता है। पर हिंदू संस्कारों की बात करने वाली बीजेपी और आरएसएस आज तक उनको स्वीकार नहीं कर पाए हैं। वे उनको विदेशी ही मानते हैं। विदेशी मानने में कोई बुराई नहींं है। वे विदेशी हैं, यह सच्चाई है। लेकिन जिस भाषा और तिरस्कार से संघ परिवार के लोग उनके बारे में बोलते हैं, क्या वह हिंदू संस्कार है क्या कैलाश विजयवर्गीय जैसे लोग हिंदू संस्कारों को समझते भी हैं

स्त्री-विरोधी है संघ की विचारधारा

मुझे कैलाश विजयवर्गीय से शिकायत नहींं है। मैं जानता हूँ कि ग़लती उनकी नहींं है। ग़लती उन विचारों की है जिसमें वे पले-बढ़े हैं। संघ की शाखा में शायद ऐसे ही विचार उन्हें घुट्टी में पिलाए गए। 

संघ अपनी विचारधारा में स्त्री-विरोधी है। उनके नेताओं को इसपर हमेशा आपत्ति रही है कि स्त्री क्यों खुले में साँस लेती है वह जीन्स क्यों पहनती है वह क्यों अँधेरा होने के पहले घर वापस नहीं लौटती है

आख़िर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने यही तो कहा था, मुख्यमंत्री बनने के बाद। खट्टर खाँटी संघी हैं। सौ प्रतिशत। यह सच नहींं है क्या कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सोनिया गांधी के संदर्भ में कहा था - “वह विधवा”।

विधवा को अपशकुनी मानता है समाज

हमारे समाज में विधवा को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता। शहरों और महानगरों को छोड़ दें तो गाँवों में आज भी पति की मौत के बाद स्त्री को सही नज़र से नहीं देखा जाता। उसे अपशकुनी माना जाता है। उसे अच्छे कपड़े पहनने की इजाज़त नहीं है। वह अच्छा खाना नहीं खा सकती। उसे घर के एक कोने में जगह दे दी जाती है। वह वहीं सफ़ेद धोती पहन कर पड़ी रहती है। अपनी क़िस्मत पर रोती है। पत्नी की मौत के बाद पति को दुबारा शादी की अनुमति है लेकिन औरत यह नहीं कर सकती। वह ज़िंदा होते हुए भी तिल-तिल मरने के लिए मजबूर होती है।

कैलाश विजयवर्गीय का भाषाई संस्कार इससे ही समझा जा सकता है।

मोदी जी को क्या ये नहीं पता कि राजा राजमोहन राय ने डेढ़ सौ साल पहले नारकीय जीवन से विधवा औरतों को निकालने के लिए एक बडा अभियान चलाया था पर उन्हें यह जानने की क्या ज़रूरत है, वे तो अमर शहीद भगत सिंह को अंडमान, काला पानी में भेज देते हैं। उनके इतिहास ज्ञान पर तो क़ुर्बान हुआ जा सकता है।

सोनिया को कहा था ‘जर्सी गाय’

कैलाश विजयवर्गीय उनकी ही टीम के सदस्य हैं। ज़ाहिर है कि जब वे सोनिया गाँधी के बारे में इस तरह का बयान दे रहे थे तो उनके दिमाग़ में मोदी का वह जुमला याद रहा होगा जो उन्होंने 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समय कहा था। मोदी जी ने सोनिया को ‘जर्सी गाय’ कहा था। उन्होने राहुल गांधी को ‘बछड़ा’ तक बोला था।

कैलाश विजयवर्गीय को शायद यह नहीं पता है कि हिंदू परंपरा में कहा जाता है - ‘यत्र नारयस्तू पूज्यंते। रमंते तत्र देवताः’। यानी जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता बसते हैं। यह बात भारत देश के संदर्भ में कही गई है। यह वही हिंदू परंपरा है जिसमें विष्णु भगवान हैं तो लक्ष्मी भी हैं। शिव हैं तो पार्वती भी हैं। राम हैं तो सीता भी हैं। कृष्ण हैं तो राधा हैं। ये हिंदू परंपरा है कि जिसमें दुर्गा शक्ति की प्रतीक है। दुर्गा पुरूष नहीं हैं। वो नारी हैं। सरस्वती हैं, जो विद्या की देवी हैं और लक्ष्मी धन की।

राजीव गाँधी से विवाह के बाद सोनिया भारत की ही हो कर रह गईं।

नक़ली देशभक्त उतरे बचाव में

वैसे दिलचस्प बात यह है कि नक़ली देशभक्तों ने यह प्रचार करना शुरू कर दिया है कि ये कैलाश विजयवर्गीय के विचार नहींं हैं। बल्कि आचार्य चाणक्य के हैं। वे ऐसा कहते थे। चाणक्य क्या कहते थे और क्यों कहते थे, यह इतिहास का विषय है। किस संदर्भ में यह बात चाणक्य ने कही थी, उसकी पड़ताल होनी चाहिए। चाणक्य आज से 2300 साल पहले थे। आज देश इक्कीसवीं शताब्दी में है। देश-काल और संदर्भ बदल चुके हैं। उनकी आड़ में सोनिया और राहुल गाँधी पर ऐसी टिप्पणी करना मानसिक दिवालियेपन का प्रतीक है। इसलिए उनकी आड़ में न छिपें।

कैलाश विजयवर्गीय को शायद यह नहीं पता है कि हिंदू परंपरा में कहा जाता है - ‘यत्र नारयस्तू पूज्यंते। रमंते तत्र देवताः’। यानी जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता बसते हैं। यह बात भारत देश के संदर्भ में कही गई है।

यह वही हिंदू परंपरा है जिसमें विष्णु भगवान हैं तो लक्ष्मी भी हैं। शिव हैं तो पार्वती भी हैं। राम हैं तो सीता भी हैं। कृष्ण हैं तो राधा हैं। ये हिंदू परंपरा है कि जिसमें दुर्गा शक्ति की प्रतीक है। दुर्गा पुरूष नहीं हैं। वो नारी हैं। सरस्वती हैं, जो विद्या की देवी हैं और लक्ष्मी धन की।

औरत जब क्रोधित होती है तो वो महाकाली बन जाती है और अपने अपमान का बदला ख़ुद लेती है। दुष्टों का संहार करती है। पर संघ की हिंदुत्ववादी विचारधारा औरत को एक खाँचे में बंद कर देती है। उसे आँचल में समेट देती है। वो घूँघट में रह जाती है। उसे घर की देवढ़ी लाँघने का अधिकार नहीं देती।

शादी के बाद ससुराल ही असली घर

कैलाश विजयवर्गीय जैसों को शायद यह पता नहीं है कि औरत का असली घर उसका ससुराल होता है। जहाँ वह ब्याह कर आती है। मायका पराया होता है। हिंदू परंपरा में लड़की माँ-बाप के लिए पराई होती है। उसे शादी के बाद अपने घर जाना होता है। अपने घर-परिवार में तो ये खूब सुना था पर इसका असली एहसास मुझे आज से बीस साल पहले विजयवाड़ा ज़िले में एक अनपढ़ औरत ने कराया था। मैंने अपने उत्साह में जब उससे पूछा कि सोनिया तो विदेशी हैं, उसे क्या वोट दोगी तो उसने मुझे धिक्कारते हुए कहा था कि वह विदेशी कैसे शादी के बाद उनका असली घर तो भारत हैं।

मैं तब उसकी बात सुन कर चमत्कृत रह गया था। मैं जिसे बेवकूफ़ समझ रहा था, वह दरअसल हम सबसे अधिक समझदार और हिंदू संस्कारों में सबसे ज़्यादा रची-बसी थी। वह औरत ही दरअसल इस देश का विवेक है। जो इस देश को चला रहा है। वरना कैलाश विजयवर्गीय जैसों ने इसका व्यापार करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।

ख़ैर, कैलाश विजयवर्गीय से क्या गिला! उनका हिसाब उनका संस्कार करेगा, हम तो बस उनको सद्बुद्धि की हिदायत ही दे सकते हैं। इस विश्वास के साथ कि वे जल्दी ही फिर ऐसी ही घटिया बात करेंगे और यह साबित करेंगे कि असली हिंदू कौन है