सोशल मीडिया को किसने बना दिया सबसे घातक हथियार?

07:16 am Aug 27, 2019 | महेंद्र पाण्डेय - सत्य हिन्दी

सोशल मीडिया ने लोगों को सशक्त बनाया है या शक्तिहीन इसने सूचनाओं को आम लोगों की पहुँच में लाया है या ‘भीड़तंत्र’ बनाने का काम किया ये सवाल इसलिए कि इस दौर में जब सूचनाओं के आदान-प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम सोशल मीडिया है तब यही सोशल मीडिया अब लोगों को गुमराह, प्रभावित और दिग्भ्रमित करने का एक 'कपटी' हथियार बन गया है। 

दुष्प्रचार तो केवल इसका पहला चरण है, जिसके प्रभाव से लोकतंत्र ध्वस्त हो रहा है, पड़ोसी देशों को चकमा दिया जा रहा है और लोगों की सोच का दायरा निर्धारित किया जा रहा है। सोशल मीडिया को बाजार तक लाने वाली कंपनियों ने शुरू में लोगों को व्यापक अनियंत्रित जानकारी और स्वच्छंद वातावरण से सशक्तीकरण का झाँसा दिया था, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, अलबत्ता यह दुष्प्रचार और ग़लत जानकारियों का ऐसा सशक्त माध्यम बन गया जिससे एक साथ करोड़ों लोगों को आसानी से गुमराह किया जा सकता है। हालत यहाँ तक पहुँच गए हैं कि सही जानकारियों पर लोगों ने भरोसा करना बंद कर दिया है और ग़लत समाचारों को दुनियाभर में पहुँचाया जा रहा है।

दुनिया भर की वे शक्तियाँ, जिनका अस्तित्व दुष्प्रचार और अफ़वाहों पर ही टिका है, उनके लिए तो यह एक अनमोल माध्यम बन गया है। इन शक्तियों ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि तेज़ी से वैश्विक होती दुनिया में अधिकतर लोग दुविधा में हैं और ऐसे में उनके विचारों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। दुनियाभर के देशों में पिछले कुछ वर्षों के भीतर ही एकाएक धुर दक्षिणपंथी दलों का सरकार पर काबिज होना महज एक इत्तिफाक नहीं है, यह सब सोशल मीडिया की ताक़त है। आज स्थिति यह है कि आप किसी घटना या फिर वक्तव्य की सत्यता को परखने का कितना भी प्रयास करें, दुष्प्रचार बढ़ता ही जाता है।

झूठी ख़बरें सरकारों का एजेंडा

पहले सरकारी स्तर पर झूठी और भ्रामक ख़बरें और सरकारी दुष्प्रचार के लिए रूस, उत्तर कोरिया और चीन जैसे देश बदनाम थे, पर सोशल मीडिया के इस युग में लगभग हरेक देश की सरकारें और राजनैतिक पार्टियाँ इसी के सहारे पनप रही हैं। चीन इस समय हांगकांग के आन्दोलनकारियों को सोशल मीडिया के सहारे पश्चिमी देशों का एजेंट और हिंसक बनाने में जुटा है और सफल भी हो रहा है। अमेरिका में ट्रंप के ट्वीट तो रोज़ तहलका मचाते हैं और वहाँ की मीडिया और जनता उसमें सच ढूँढती रह जाती है। हमारे देश में तो सरकार की लोकप्रियता और प्रचंड बहुमत का अस्तित्व ही झूठी ख़बरें, मनगढ़ंत आँकड़े और भ्रामक सफलताओं की कहानियों पर टिका है। 

अब तो लॉबी और पब्लिक रिलेशंस की बड़ी कम्पनियाँ भी अफ़वाह फैलाने का ठेका लेने लगी हैं और यह एक बड़ा, महंगा और प्रतिष्ठित कारोबार हो गया है। सही समाचार को रोकने का ही एक माध्यम सभी सरकारी सूचनाओं को सोशल मीडिया के सहारे जनता तक पहुँचाना है।

पिछले कुछ वर्षों से आपने ग़ौर किया होगा, प्रेस कॉन्फ्रेंस न के बराबर आयोजित की जाती हैं, इसका काम अब ट्विटर हैंडल करता है। ट्विटर पर डाला गया सरकारी मैसेज ही आगे, और आगे बढ़ाया जाता है। ज़ाहिर है, जब प्रधानमंत्री या मंत्री मैसेज करेंगे तो सरकार के वाहवाही वाले मैसेज ही करेंगे, और इसी से सरकार के प्रति धारणा बनती है। अमेरिका में ट्रम्प भी यही कर रहे हैं और ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री तो फ़ेसबुक से अपनी सरकार के कसीदे गढ़ रहे हैं। पहले जब, प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी तब प्रतिष्ठित और अनुभवी पत्रकार उसमें शिरकत करते थे, फिर अगले दिन के समाचार पत्रों में उस वक्तव्य या फिर नीति का पूरा विश्लेषण प्रकाशित होता था। इसके बाद जनता इसकी अच्छाई और बुराई से परिचित होती थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस बंद कर चुके नेता सोशल मीडिया में अपने चाटुकार फॉलोवर्स के लिए ज़रूर कॉन्फ्रेंस आयोजित कर लेते हैं। ऐसा करने वालों में प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प अग्रणी हैं। ट्रम्प ने अभी पिछले महीने व्हाइट हाउस में आयोजित एक ऐसी ही कॉन्फ्रेंस में एलान किया था कि बोलने का अधिकार केवल ट्रम्प समर्थकों को ही मिलना चाहिए।

सोशल मीडिया पर सरकार का एकछत्र राज!

सोशल मीडिया को हथियार की तरह उपयोग में लाने का दूसरा चरण है, इंटरनेट का सरकारी इस्तेमाल। सरकार अपनी मर्ज़ी से इंटरनेट का उपयोग हमें करने देती है और जब उसकी मर्ज़ी नहीं होती तब पूरे देश या किसी क्षेत्र विशेष की इंटरनेट सेवा ठप्प कर देती है। इंटरनेट नहीं होता तो सोशल मीडिया बंद हो जाता और फिर उस क्षेत्र को न तो कोई जानकारी बाहर से मिलती और न ही वहाँ की जानकारी बाहर आ पाती। कश्मीर में यही लम्बे समय से किया जा रहा है। सरकार हमेशा सबकुछ सामान्य बता रही है पर वहाँ की कोई ख़बर बाहर आ नहीं रही है। सरकारी दृष्टि से इसके दो फ़ायदे हैं, पहला तो यह है कि सरकारी दावे को परखने का कोई ज़रिया आपके पास नहीं है और दूसरा यह है कि सरकार नागरिकों के दमन के लिए पूरी तरह स्वच्छंद है।

इंटरनेट की सेवाएँ रोकने का कारण हमेशा अफ़वाह, दुष्प्रचार रोकना और समाज में अमन-चैन कायम रखना बताया जाता है, पर इसका असली मक़सद तो सरकारी नीतियों के विरोध को रोकना और सरकारी दुष्प्रचार और अफ़वाह को फैलाना है।

इससे लोगों की राय को सरकार के पक्ष में आसानी से मोड़ा जा सकता है। भारत के अलावा चीन और अनेक अफ़्रीकी देशों में यह बहुत सामान्य है। चीन में अधिकतर मामलों में पूरे क्षेत्र के नहीं बल्कि सरकार के विरुद्ध संदेश देने वालों का इंटरनेट या फिर सोशल मीडिया को ब्लॉक कर दिया जाता है। अफ़्रीका के अनेक देशों के नागरिक राजनैतिक दृष्टि से बहुत सक्रिय हैं, इसलिए वहाँ पहले से ही सरकारें इंटरनेट की सेवाओं को रोकने का काम करती रही हैं। अफ़्रीका में वर्ष 2016 से 2018 के बीच इंटरनेट के बाधित करने की घटनाएँ दोगुनी से अधिक हो गई हैं।

इस कारण है भयानक हथियार

सूचनाओं को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का तीसरा चरण बहुत भयानक, प्रभावी और आक्रामक है। इसमें हमारे ऊपर आक्रमण केवल दुष्प्रचार या अफ़वाहों से ही नहीं होगा बल्कि हमारे मानस पटल पर आक्रमण किया जाएगा। इसके लिए सोशल मीडिया पर हमारे अनुरूप एक दुनिया का निर्माण किया जाएगा और फिर धीरे-धीरे हमारे मस्तिष्क और हमारी सोच पर आक्रमण किया जाएगा। यह तब तक जारी रहेगा जबतक हमारी विचारधारा पूरी तरीक़े से आक्रमणकारी के अनुरूप नहीं हो जाए। इसके परिणाम बहुत ख़तरनाक होने वाले हैं। यह सब इतने व्यापक पैमाने पर किया जाएगा कि पूरे समाज की प्राथमिकताएँ, परम्पराएँ और नैतिक मान्यताएँ ही बदल जाएँगी।

सोशल मीडिया के ज़रिये समाज को लाभ पहुँचाने वाले आंदोलन तो दुनियाभर में एक्का-दुक्का ही रहे हैं, दूसरी तरफ़ इसी सोशल मीडिया पर फैलाते अफ़वाह और दुष्प्रचार के कारण दुनियाभर में इतिहास, भूगोल, राजनीति, अर्थव्यवस्था, विकास का पैमाना और पर्यावरण सब कुछ बदल चुका है। सोशल मीडिया का प्रसार तो अभी और बढ़ रहा है, ऐसे में समाज के पूरी तरीक़े से बदल जाने की संभावना है। उदाहरण हमारे सामने है, हिंसक समूहों की भरमार हो गयी है, यह समूह किसी को भी जान से मारकर चला जाता है। आगे यह हिंसा और अधिक उग्र और व्यवस्थित होगी और समाज इसे मान्यता भी देगा।