कहा जाता है कि दुनिया दो वयस्क आदमियों को बन्दूक पकड़े देख सकती है परन्तु एक-दूसरे का हाथ पकड़े नहीं। क्योंकि हिंसा और नफ़रत का भाव उनके लिए लगाव और मोहब्बत से कहीं ज़्यादा सामान्य है। यही बात हमें संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान देखने को मिली। राहुल गाँधी द्वारा दिए गए फ्लाइंग किस पर भाजपा नेत्रियों ने बवाल मचा दिया। लेकिन इस बवाल का एक प्रतिशत अंश भी हमें मणिपुर में हो रही गोलीबारी या नूंह में देसी तमंचों से उड़ती गोलियों के खिलाफ नहीं दिखाई दिया।
अगर राहुल ने भरी संसद में महिलाओं के खिलाफ अभद्र व्यवहार किया है तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए। संसद टीवी को चाहिए कि वे पूरे प्रकरण की सभी कोणों से लिए गए वीडियो को आवाज के साथ जनता से साझा करे। आखिर इतने कैमरे कब काम आयेंगे?
कैमरे पर तो मणिपुर की औरतों को नग्न कर सैकड़ों आदमियों द्वारा सड़क पर चलाने के साक्ष्य भी हैं। पर आदमियों से बलात्कार, यौन हिंसा और सरेआम मारपीट की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए, तभी इस मुद्दे पर एक शब्द सरकारी महिला मंत्रियों ने नहीं कहा। लेकिन आदमी से प्यार या अपनेपन अथवा दूसरे के अट्टहास को क्षमा कर प्रेम सन्देश भेजने की उम्मीद क़तई नहीं की जानी चाहिए। इस पर पूरे सदन और टीवी मीडिया को रातों रात बहस करनी चाहिए।
21 भाजपाई महिला सांसदों ने सभापति से इस मसले पर शिकायत की है। अब संसद तो महिलाओं की इज्जत करने के लिए प्रख्यात है ही। तभी इसमें 19 ऐसे सांसद हैं जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुकदमे दर्ज हैं। इनमें 3 बलात्कार और 6 अपहरण के घोषित मुकदमे हैं। तभी बृजभूषण शरण सिंह संसद में रहकर स्त्री अधिकारों का परचम लहराते हैं। वे दबंग नेता हैं। बृजभूषण अगर ख़बरिया चैनलों पर एक क़त्ल करना या महिला खिलाड़ी के कंधे पर हाथ रख उसे असहज महसूस करवाने को भी स्वीकार कर लेते हैं, तब भी उन पर संसद में हंगामा थोड़ी होगा। ये तो उनकी दबंगई के लिए अतिरिक्त खुराक है।
राहुल क्यों मर्द जाति के सामान्य स्वरूप के साथ दगा कर रहे हैं। वे भी ‘दीदी ओ दीदी’ या ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड’ जैसे शब्दों का उपयोग करते तो अपनी धाकड़ और मज़बूत छवि में चार चाँद लगाते। एक पुरुष अपनी बहन, बेटी या पत्नी से प्राकट्य स्नेह करे तो हमारे प्रथम प्रधानमंत्री की तरह उसे व्यभिचार और अनाचार की श्रेणी में डाल दिया जाता है। क्योंकि प्रेम तो उसका स्वभाव हो ही नहीं सकता।
राहुल ने कहा कि वे दिल से बात करेंगे। उन्होंने भारत माँ की हत्या की बात की लेकिन "गोली मारो ... को" जैसे नारे नहीं लगाए। फ्लाइंग बुलेट्स के ये नारे समाज में उत्साह और उल्लास का सृजन करते अपितु फ्लाइंग किस पाश्चात्य संस्कृति का ऐसा प्रतीक है जो हमारे मर्दाना पराक्रम को चकनाचूर कर देगा।
गोलियाँ तो जयपुर से मुंबई जा रही ट्रेन में भी काफी चली थीं, परन्तु यहाँ भी एक फौजी का शौर्य चित्रित था इसलिए इस पर संसद में बहस बेमानी है। कुछ लोगों का गोलियों से भून दिया जाना तो आम बात है लेकिन संसद की गरिमा का ह्रास फ्लाइंग किस के कारण ही होगा।
मणिपुर या भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से उठे सारे मुद्दे निरर्थक हैं जबतक फ्लाइंग किस के लिए दोषी को सूली पर नहीं चढ़ा दिया जाता। मीडिया को फ्लाइंग ड्रोन की तरह ही चीन या पकिस्तान द्वारा फैलाई जा रही इस साजिश का प्राइम-टाइम पर पर्दाफाश कर देना चाहिए। जनता को भी चाहिए कि सीमा और अंजू की भांति इस पर भी हफ़्तों पीएचडी की जाये। या कहीं ऐसा तो नहीं कि 'लव जिहाद' का कोई नया रूपांतरण' फ्लाइंग किस जिहाद' की शक्ल में हिन्दुस्तान में प्रवेश कर चुका है। टमाटर के बढ़ते दामों के पीछे भी ज़रूर ऐसी ही किसी शक्ति का हाथ होगा तभी हमारे नियंताओं ने इस पर सवाल करना अहम समझा।
आज के समाज में रावण द्वारा हर एक से एक साथ युद्ध करना मान्य होगा, लेकिन अयोध्या आगमन पर प्रभु श्रीराम द्वारा हर-एक व्यक्ति से एक साथ गले मिलना स्वीकार्य नहीं होगा। आखिर हिंसा, मर्दवादी पराक्रम, झुके हुए लोगों को और दबाने की चाह तथा बढ़ती नफ़रत के ग्राहक इस समाज में अनगिनत हैं, लेकिन मोहब्बत की दुकान का लाइसेंस कब तक वैध रहेगा यह आनेवाला वक्त ही बताएगा।