अगर आतंकवाद के पास कोई एमबीए है तो जैश-ए-मुहम्मद का चीफ़ मसूद अज़हर उसका सबसे बेहतरीन ब्रांड है और चीन उसका सबसे बड़ा सेल्स मैनेजर। सामूहिक नरसंहार करने वाले हथियार (शख़्स) के लिए पाकिस्तान के दोगले हमबिस्तर चीन को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। 50 साल का मसूद अज़हर भारतीय उपमहाद्वीप में आईएसआई का मौत का देवता है। लेकिन चीन उसे समृद्धि बढ़ाने वाले शख़्स के तौर पर देखता है जिसकी वजह से पाकिस्तान और उससे अलग उसके व्यावसायिक हितों की रक्षा करने में मदद मिलती है।
यह सच है कि चीन इस बात की अनदेखी करता है कि वह भारत से बेशुमार दौलत कमाता है। पर यह भी सच है कि वह पाकिस्तान में आतंकवाद को आर्थिक मदद भी करता है। यह दरअसल एक काला व्यवसाय है। इसके अलावा मसूद अज़हर के बचाव का और कोई कारण नहीं हो सकता। साम्यवादी चीन के पूँजीवादी खून का यह वैचारिक व्यवहारवाद है। इस व्यावहारिकता की वजह से ही मसूद अज़हर एक ख़तरनाक बैक्टीरिया के रूप में आज भी जिंदा है।
मसूद अज़हर एक तरह से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा यानी सीपीईसी, जो अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा तक फैला हुआ है, उसका केयरटेकर है।
सीपीईसी के बन जाने के बाद चीनी को अपने सामान को मध्य-पूर्व एशिया और यूरोप पहुँचाने में मदद मिलेगी और यह गलियारा एक वैकल्पिक रास्ते के तौर चीन के काम आएगा।
चीन के इस बड़े प्रोजेक्ट की शुरुआत शिंजियांग इलाक़े से होती है। सीपीईसी के माध्यम से चीन, शिंजियांग इलाक़े की कासगर जगह को बलूचिस्तान के ग्वादर हवाई अड्डे से जोड़ता है। इस कारण चीन को मध्य-पूर्व एशिया और अफ़्रीका के ऊर्जा बाज़ारों में अपनी पैठ बनाने में मदद मिलती है।
एक आँकड़े के हिसाब से सीपीईसी प्रोजेक्ट के पूरा हो जाने के बाद ग्वादर बंदरगाह में क़रीब 50 हज़ार चीनी नागरिक काम करेंगे। इस उद्यम में मसूद अज़हर इन चीनियों को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। मतलब साफ़ है कि चीन के आर्थिक हितों के मद्देनज़र मसूद अज़हर बड़े काम की चीज है।
चार बार कर चुका है विरोध
अगर यह कहा जाए कि चीन को यह मालूम है कि मसूद अज़हर एक ब्लैकमेलर है लेकिन वह जानता है कि वह उसका अपना ब्लैकमेलर है तो ग़लत नहीं होगा। इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में चीन मसूद अज़हर को आतंकवादी घोषित किए जाने का विरोध करता है। ऐसा वह चार बार कर चुका है।
पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई मसूद अज़हर को शह देती है। यह वही मसूद अज़हर है जो आतंकवाद फैलाता है और आत्मघाती दस्ते तैयार करता है।
कमजोर है चीन का बहाना
मसूद अज़हर को अगर अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया जाये तो उसके घूमने-फिरने में दिक़्क़त आयेगी, उसे जो वित्तीय सहायता मिलती है, वह कम हो जायेगी और साथ ही साथ भारत और भारत के बाहर से जैश-ए-मुहम्मद के लिए हथियार जुटाना मुश्किल हो जायेगा। लेकिन चीन ने भारत के मंसूबों पर पानी फेर दिया; और उसने जो बहाना बनाया, वह बहुत ही कमज़ोर है।
चीन का कहना है कि मसूद अज़हर पर कोई अंतिम फ़ैसला करने से पहले वह तमाम कागजातों का अध्ययन करना चाहता है। चीन के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘जो सारी बातचीत है वह संबंधित प्रक्रिया और नियम-क़ानून के दायरे में होनी चाहिए और जो भी निर्णय हो वह सबको स्वीकार्य हो, तभी कोई अच्छा हल निकल सकता है।
चीन का हाल का इतिहास बहुत बेहतर नहीं है। माओ त्से तुंग जब चीन के सर्वोच्च नेता थे तब साढ़े चार करोड़ लोगों को सरकार के इशारे पर मौत के घाट उतार दिया गया था। ऐसे में चीन को इस बात से क्या फ़र्क पड़ता है कि अज़हर मसूद आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देता है और आत्मघाती दस्ते भेजकर विस्फोट करवाता है।
ख़ौफ़नाक है चीन का इतिहास
चीन का अपना इतिहास सांस्कृतिक क्रांति की ख़ौफ़नाक कहानियों से भरा पड़ा है। चीन के थियानमेन चौक पर नरसंहार हुआ था और लोकंतत्र समर्थक लोगों को भयंकर यातनाएँ दी जा चुकी हैं। इस संदर्भ में पुलवामा की घटना चीन के लिए कोई ज़्यादा मायने नहीं रखती। हालाँकि, चीन के इस रुख से भारतीय जनता पार्टी के हौसलों पर पानी फिर जाता है।
- मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में चीन के द्वारा अड़ंगा लगाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने ट्वीट किया - “कमजोर मोदी चीन के राष्ट्रपति से डरते हैं। जब चीन भारत के ख़िलाफ़ काम करता है तो उनके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकलता। नोमो की चीनी नीति है - 1- चीन के राष्ट्रपति के साथ गुजरात में झूला झूलना; 2- दिल्ली में शी जिनपिंग के साथ गले मिलना; 3- चीन में शी के सामने नतमस्तक होना”।
बीजेपी ने बताया नेहरू को ज़िम्मेदार
राहुल गाँधी के इस ट्वीट के जवाब में बीजेपी ने फ़ौरन कांग्रेस का इतिहास खंगाल डाला और कहा कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में चीन को स्थायी सदस्यता नेहरू की वजह से मिली। बीजेपी ने ट्वीट किया - “चीन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में नहीं होता, अगर आपके परदादा ने भारत की क़ीमत पर उसे स्थायी सदस्यता का उपहार नहीं दिया होता। भारत आपके परिवार की ग़लतियों को ठीक कर रहा है। आप निश्चिंत रहें, आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई भारत अवश्य जीतेगा। आप इस मामले को प्रधानमंत्री मोदी के लिए छोड़ दीजिए और आप ख़ुद चीनी राजनयिकों के साथ गोपनीय तरीक़े से मिलते-जुलते रहिए।”
बीजेपी-कांग्रेस की जुबानी जंग से अलग मसूद अज़हर को बचाने की चीन की कोशिशें भारतीय विदेश नीति पर सवाल खड़े करती हैं।
पुलवामा में हुए नरसंहार के बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 13 सदस्यों को मसूद अज़हर के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाने के लिए मना लिया था। हालाँकि सबको यह पता था कि यह प्रस्ताव पारित नहीं होगा। ये सारे देश जिन्होंने प्रस्ताव रखा था, वे पिछले 10 सालों में इसलामी आतंकवाद का शिकार रहे हैं।
मुंबई में हुए 26/11 के आतंकवादी हमले के बाद भारत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दबाव बनाता रहा है कि मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जाए लेकिन क़िस्मत का धनी यह आतंकवादी हर बार बच निकला।
वाजपेयी सरकार को 1999 में भारतीय हवाई जहाज के अपहरण के बाद कश्मीर की जेल से मसूद अज़हर को छोड़ना पड़ा था। तब 180 जानें बचा ली गई थीं। लेकिन अज़हर मसूद के ख़ौफनाक इरादे और उसकी आतंकवादी घटनाओं के बावजूद, चीन का वरदहस्त उसे हासिल है।
यह बहुत दिलचस्प बात है कि एक तरफ़ चीन मसूद अज़हर को प्रश्रय देता है और दूसरी तरफ़ चीन के मुसलिम बहुल शिंजियांग प्रांत में पाकिस्तान की मदद से उईगुर इसलामी आतंकवादी फल-फूल रहे हैं।
लगभग 10 लाख उईगुर आतंकवादी चीन की जेलों में सड़ रहे हैं। वहाँ मुसलमानों के इबादत करने और क़ुरान शरीफ़ रखने पर पाबंदी है। साफ़ है कि भारत का विदेश मंत्रालय यह कहने में नाक़ाम रहा है कि चीन सरकार और पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों में किस तरह के कूटनीतिक और आर्थिक रिश्ते हैं।
भारत की विदेश नीति और यहाँ के औद्योगिक घरानों में चीनपरस्त लोग हावी हैं जो देश हित की अनदेखी करते हैं और चीनी व्यापार को बढ़ाने में मदद करते हैं। 2018 में भारत-चीनी व्यापार तक़रीबन 84.44 बिलियन डॉलर था, इसके पहले साल में यह आँकड़ा 71.18 बिलियन डॉलर था।
भारतीय उद्योग-धंधे नुक़सान में
भारत और चीन के व्यापार में तक़रीबन 50 बिलियन डॉलर का फर्क है। यानी चीन भारतीय बाज़ारों में अपना सामान बेचकर भारत की तुलना में 50 बिलियन डॉलर ज़्यादा कमा रहा है। भारतीय बाज़ार और यहाँ की कर व्यवस्था ऐसी है कि चीन अपने रद्दी और सस्ते सामान भारतीय बाज़ारों में झोंकता रहता है, जिसकी वजह से भारतीय उद्योग धंधों को गहरी चोट लग रही है।
स्मार्टफ़ोन बाज़ार पर चीन का क़ब्जा
2018 में भारतीय उपभोक्ताओं ने चीन के चार सबसे बड़े ब्रांड के स्मार्टफ़ोन ख़रीदने में क़रीब 50 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए। एक साल पहले यह आँकड़ा तकरीबन 25 हज़ार करोड़ का था। भारत के स्मार्टफ़ोन बाज़ार में चीनी कंपनियों का क़ब्जा 50 फ़ीसदी से ज़्यादा है। भारत में चीनी ब्रांड ऑनर, श्याओमी, वीवो, ओप्पो, इनफ़िनिक्स, लेनोवो, मोटोरोला और वन प्लस जैसे ब्रांड की भरमार है।
चीन ने सस्ते स्मार्टफ़ोन को भारतीय बाज़ारों में लाकर भारतीयों को अपना मुरीद बना लिया है। भारतीय स्वभावत: सस्ते सामान को देखकर आकर्षित होते हैं, ऐसे में खिलौनों से लेकर घर के सारे सामान चीनी उत्पादों से भरे पड़े हैं।
कई बार मिले भारत और चीन
2014 के बाद से चीन ने एक लंबा रास्ता तय किया है। उस वक़्त भारत और चीन के आर्थिक और राजनयिक संबंध बहुत अच्छे नहीं थे लेकिन परंपरा की अनदेखी कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2014 में अहमदाबाद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को निमंत्रित किया। इसके बाद 2015 में 2 बार, 2016 में 3 बार, 2017 में 3 बार, 2018 में एक बार, अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दोनों नेता मिल चुके हैं।मोदी इस तरह से तक़रीबन 10 बार चीनी नेताओं से मिल चुके हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि उनका 56 इंच का सीना जिनपिंग के कठोर हृदय को पिघलाने में नाक़ाम रहा है और मसूद अज़हर अभी भी चीन का प्रिय बना हुआ है। इस वजह से मोदी जी की काफ़ी किरकिरी हुई है क्योंकि यह माना जाता है कि एक समय शी जिनपिंग और मोदी में काफ़ी गहरी दोस्ती थी।
चीन पैसा और बाज़ार, दोनों की क़ीमत समझता है और भारत में दोनों की बहुतायत है। युद्ध में चीन को हराना मुश्किल है लेकिन आर्थिक मामले की एक अलग पटकथा लिखी जा सकती है, जिसका बिलकुल अलग अंत हो सकता है।
चीन के इस दृढ़ निश्चय को तोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए जिसकी वजह से वह आतंकवाद को शह तो देता ही है साथ ही अपने बाज़ार को आकर्षक बनाकर बेचता भी है।
चीन परस्त लोगों को निकालें
2019 में इस दिशा में भी कोशिश की जानी चाहिए कि भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान में जो चीन परस्त लोग बैठे हुए हैं, उनको भी निकाल बाहर फेंका जाये। इसके अलावा चीन को यह भी समझाना होगा कि भारत से व्यापार करने में उसका ही लाभ है जबकि पाकिस्तान की मदद करने में उसका नुक़सान। हिंदी-चीनी तभी भाई-भाई हो सकते हैं जब खून चूसने वाले भाई (पाकिस्तान) को चीन उठाकर फेंक दे।
(संडे स्टैंडर्ड से साभार )