केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को आख़िरकार ज़मानत तो मिल गई लेकिन सिर्फ़ पाँच दिन के लिए। वह भी शर्तों के साथ। सुप्रीम कोर्ट ने यह ज़मानत इस शर्त पर दी है कि वह अपनी 90 वर्षीय माँ से मिलेंगे जो बहुत बीमार हैं और कहा जाता है कि वह अपने आख़िरी दिन गिन रही हैं। कप्पन को उत्तर प्रदेश के हाथरस में जाने के दौरान गिरफ़्तार किया गया था। तब कथित तौर पर गैंग रेप के बाद दलित युवकी की हत्या के मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था और इस मामले में यूपी सरकार की किरकिरी हुई थी। इसके बाद यूपी सरकार ने कार्रवाई की और कहा कि सरकार को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी। इसी साज़िश में शामिल होने का आरोप कप्पन पर भी लगा।
कप्पन को अब पाँच दिन की ज़मानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केरल में वह मीडिया से बात नहीं कर सकते हैं और वह न तो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर सकते हैं और न ही रिश्तेदारों, डॉक्टरों और किसी से भी मिल सकते हैं। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उन्हें उत्तर प्रदेश से केरल पुलिस द्वारा ले जाया जाएगा और यह यूपी पुलिस की ज़िम्मेदारी होगी कि वह उनकी यात्रा सुनिश्चित करे और वापस लाए। पीठ में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन भी थे।
अदालत ने पिछले महीने उन्हें एक वीडियो कॉल से अपनी माँ से बात करने की अनुमति दी थी, लेकिन केरल के मलप्पुरम में अपने गृहनगर के एक अस्पताल में बेहोश होने के कारण वह कथित तौर पर उनसे बात नहीं कर सकीं।
इससे पहले कई सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन को किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया था। हालाँकि, अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया था।
एक सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को एक बार फिर हाई कोर्ट में भेजने पर विचार कर रहा है।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल इस मामले में कप्पन की पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि कप्पन को ज़मानत मिल जानी चाहिए क्योंकि वह 5 अक्टूबर से ही जेल में हैं। उन पर साफ़ आरोप नहीं लगाए गए हैं और एफ़आईआर में उसका जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा था, 'यह पत्रकार का मामला है, इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट यह मामला ले आए हैं, वर्ना यहाँ नहीं आते।'
मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने पूछा था कि 'आप इलाहाबाद हाई कोर्ट क्यों नहीं जाते।' इस पर सिब्बल ने कहा था कि 'कप्पन को किसी से मिलने नहीं दिया जा रहा है, इस कारण उसकी याचिका में बदलाव नहीं किया जा सका है, ऐसे में हाई कोर्ट कैसे जाएँ।'
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला अनुच्छेद 32 का है और सुप्रीम कोर्ट इस तरह के मामलों को प्रोत्साहित नहीं कर सकता। सिब्बल ने कहा कि अदालत ने पहले भी इस तरह के मामले की सुनवाई की है। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर रहे हैं। पर इस मामले को वह एक बार फिर हाई कोर्ट भेज सकते हैं।
कप्पन को पिछले साल पाँच अक्टूबर को हाथरस जाते समय पहले हिरासत में लिया गया था। बाद में उन्हें जेल में डाल दिया गया और उन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट यानी यूएपीए लगा दिया गया था।
इसके अलावा धारा 153 ए, 295-ए, 124-ए और आईटी एक्ट की कई धाराओं में भी मामला दर्ज कर किया गया था।
हाथरस में एक दलित युवती से चार सवर्णों ने कथित तौर पर गैंग रेप किया था और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गयी थी। इस पर विवाद तब और बढ़ गया था जब प्रशासन ने कथित रूप से अभिभावकों की सहमति के बिना ही लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया था। इसको लेकर प्रशासन की काफ़ी आलोचना हुई थी। इस बीच पुलिस ने कहा था कि उसने चार लोगों को मथुरा में पीएफ़आई के साथ कथित जुड़ाव के आरोप में गिरफ्तार किया और चारों की पहचान केरल के मालप्पुरम के सिद्दीक कप्पन, उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के अतीक-उर-रहमान, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के आलम के तौर पर हुई।
कप्पन के मामले ने इसलिए तूल पकड़ा था कि कुछ दिन पहले पत्रकार अर्णब गोस्वामी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी। उनके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और अगले ही दिन उस पर सुनवाई हो गई। उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज चंद्रचूड़ ने कहा था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ख्याल रखा जाना चाहिए। उसके बाद से ही यह सवाल उठ रहा है कि अर्णब गोस्वामी की तरह ही दूसरे मामले भी हैं, जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हाई कोर्ट या दूसरी निचली अदालत भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कोर्ट के महासचिव को पत्र लिखकर गोस्वामी की रिहाई की याचिका पर तुरंत सुनवाई किए जाने को लेकर विरोध जताया था। दुष्यंत दवे ने पत्र में लिखा था कि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने कोरोना महामारी के दौरान भेदभावपूर्ण ढंग से मामलों को सुनवाई के लिए लिस्ट किया है। उन्होंने लिखा है, ‘एक ओर जहां हज़ारों लोग उनके मामलों की सुनवाई न होने के कारण जेलों में पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर एक प्रभावशाली व्यक्ति की याचिका को एक ही दिन में सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया गया।’