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वाराणसी से नामांकन भरना कितना मुश्किल है? श्याम रंगीला के गंभीर आरोप

वाराणसी से नामांकन भरना कितना मुश्किल है? श्याम रंगीला के गंभीर आरोप

प्रधानमंत्री मोदी जिस वाराणसी सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं, क्या वहाँ से उम्मीदवार के रूप में नामांकन करना बेहद कठिन काम है? आख़िर निर्दलीय चुनाव लड़ने के इच्छुक कॉमेडियन श्याम रंगीला व अन्य लोग क्यों गंभीर आरोप लगा रहे हैं?

वाराणसी सीट पर चुनाव दिलचस्प कितना होगा, यह तो पता नहीं है, लेकिन नामांकन बेहद दिलचस्प ज़रूर हो गया है। श्याम रंगीला पिछले कई दिनों से नामांकन के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन उनका आरोप है कि उनको नामांकन नहीं करने दिया जा रहा है। उन्होंने तो दावा यहाँ तक किया है कि उनके जैसे कई और इच्छुक लोगों को नामांकन करने के लिए कार्यालय के अंदर घुसने तक नहीं दिया जा रहा है। 

श्याम रंगीला ने सोमवार को आरोप लगाया था कि वह सुबह से लेकर शाम तक वाराणसी से नामांकन के लिए चुनाव कार्यालय के बाहर खड़े रहे, लेकिन उनको अंदर नहीं जाने दिया गया। कुछ ऐसा ही आरोप उन्होंने मंगलवार सुबह भी लगाया। उन्होंने चुनाव आयोग को टैग करते हुए एक वीडिया ट्वीट किया है जिसमें उन्हें पुलिस अधिकारी 12 बजे के बाद अंदर जाने देने की बात कहते हैं। उन्होंने ट्वीट में कहा, 'वाराणसी चुनाव आयोग कार्यालय। 14 मई, सुबह क़रीब 9:15 बजे पहुँच गये हैं। कहीं से कोई जवाब नहीं आ रहा, लेकिन नामांकन की उम्मीद अभी भी नहीं छोड़ी है हमने।'

उन्होंने एक अन्य ट्वीट में कुछ फोन नंबरों के स्क्रीनशॉट को ट्वीट किया है और दावा किया है कि उन्होंने इतने नंबरों को फोन किया, लेकिन उनको कहीं से जवाब नहीं मिला। 

श्याम रंगीला के साथ ही कई और हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। ऐसे लोग देश भर से नामांकन स्थल पर पहुंचे हैं। वे शुरू से ही ऐसा आरोप भी लगा रहे हैं कि चुनाव अधिकारी ट्रेजरी चालान और नामांकन फॉर्म जारी करने में आनाकानी कर रहे हैं, जिससे वे इस क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने से वंचित हो रहे हैं।

7 मई को नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत से ही बड़ी संख्या में नामांकन के संकेत मिलने लगे थे। कई लोगों ने आरोप लगाया कि उन्हें नामांकन पत्र लेने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ी। श्याम रंगीला ने तो आरोप लगाया था कि नामांकन पत्र देने के लिए नियमों को बेहद कड़ा कर दिया गया। 

उन्होंने 10 मई को कहा था, 'वाराणसी में नामांकन फॉर्म प्राप्त करने की प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है कि फॉर्म लेना बहुत ज़्यादा मुश्किल हो गया है, घंटों लाइन में लगने के बाद चुनाव कार्यालय से कहा गया कि आप दस प्रस्तावकों के आधार कार्ड की कॉपी (हस्ताक्षर समेत) और उनके फ़ोन नंबर पहले दीजिए तभी फॉर्म के लिये ट्रेज़री चालान फ़ॉर्म मिलेगा। जबकि ऐसा कोई प्रावधान चुनाव आयोग के नियमों में नहीं है। मैं माननीय चुनाव आयोग से प्रार्थना करता हूँ कि वो वाराणसी ज़िला प्रशासन को उचित दिशानिर्देश देकर, इस देश के लोकतंत्र में हमारे विश्वास को मज़बूती दें।'

उन्होंने मंगलवार को एक अख़बार का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए कहा है, 'अगर चुनाव आयोग वाराणसी में आये सभी प्रत्याशियों के नामांकन लेकर कुछ रद्द भी कर दें तो भी यहाँ 500 लोग चुनाव में खड़े दिखाई दे सकते हैं, ये मेरी गारंटी है! लेकिन यहाँ उन्हीं का नामांकन लिया जा रहा है जिनका वो लेना चाहते हैं, इतनी शिकायतों के बाद भी अगर हमारा नामांकन नहीं होता है तो ये चिंता की बात है।'

श्याम रंगीला ने जो स्क्रीनशॉट ट्वीट किया है उसमें उन कुछ लोगों के बयान हैं जो वाराणसी से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार, एमपी के सतना से आए त्रिभुवन प्रसाद ने कहा कि वह बीजेपी सरकार की किसानों की अनदेखी की वजह से पीएम के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसे ही गुजरात से पहुँचे चंद्रशेखर रघुवंशी नामांकन करने पहुँचे हैं। रिपोर्ट के अनुसार मुंबई से राकेश राउल भी पीएम मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने पहुँचे। दिल्ली के अवधेश कुमार सिंह भी पीएम मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने के लिए नामांकन करने पहुँचे। 

कई लोगों का नामांकन नहीं लिए जाने का आरोप लगाते हुए श्याम रंगीला ने सोमवार को कहा था, 'आज लोकतंत्र का गला घुटते अपनी आँखों से देखा है, मैं नेता नहीं कॉमेडियन हूँ, फिर भी नामांकन दाखिल करने निकला, सोचा- जो होगा देखा जाएगा, लेकिन ये जो हो रहा है न तो सोचा था और न देखा जा रहा है। प्रस्तावक भी थे, फॉर्म भी भरा हुआ था, बस कोई लेने को तैयार नहीं था, कल (मंगलवार को) फिर कोशिश करेंगे।'

2019 में भी हुआ था वाराणसी में विवाद 

2019 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी में नामांकन प्रक्रिया को लेकर विवाद हुआ था। तब चुनाव आयोग ने बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव को लोकसभा की दौड़ से बाहर कर दिया था। तेज बहादुर ने वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी। बाद में समाजवादी पार्टी ने उन्हें अपना आधिकारिक उम्मीदवार बनाकर अपना समर्थन दिया था।

लेकिन तत्कालीन रिटर्निंग ऑफिसर ने तेज बहादुर का नामांकन खारिज कर दिया था, क्योंकि उन्होंने चुनाव आयोग से यह कहते हुए प्रमाण पत्र जमा नहीं किया था कि उन्हें "भ्रष्टाचार या गड़बड़ी" के कारण सेवा से बर्खास्त नहीं किया गया।

 - Satya Hindi

बता दें कि तेज बहादुर यादव चुनाव लड़ने के योग्य थे क्योंकि उन्हें अनुशासनात्मक आधार पर बीएसएफ से बर्खास्त किया गया था। लेकिन अंतिम समय में उन्हें बताया गया कि उन्हें चुनाव आयोग से 'मंजूरी' प्रमाणपत्र लेने की ज़रूरत है। जिस दिन स्पष्टीकरण मांगा गया था उसी दिन उस प्रमाणपत्र को जमा करने को कहा गया था। आख़िरकार उनको चुनाव की दौड़ से बाहर कर दिया गया था। 

2019 के लोकसभा चुनाव में सौ से अधिक उम्मीदवारों ने वाराणसी से निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था, लेकिन इनकी संख्या घटकर लगभग 26 हो गई थी। जैसे ही कई नामांकन रद्द किए गए, कई उम्मीदवारों ने चुनाव आयोग पर मोदी के प्रति पूर्वाग्रह रखने का आरोप लगाया था। अब इस साल भी नामांकन को लेकर ही कुछ इसी तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। 

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