कांग्रेस में ‘रिसाव’ का आपातकाल: सामना
कांग्रेस पार्टी की अवस्था बादल फटने जैसी हो गई है। पैबंद भी कहां लगाएं? पंजाब में कांग्रेस के नेता सुनील जाखड़ और गुजरात से हार्दिक पटेल ने पार्टी त्याग दी है। राजस्थान में कांग्रेस का चिंतन शिविर संपन्न हुआ। उस चिंतन शिविर का समापन शुरू रहने के दौरान ही कांग्रेस में ऐसा रिसाव शुरू हुआ।
बीते कुछ समय से ‘भगदड़’ का मामला कांग्रेस के लिए कुछ नया नहीं रहा है। परंतु सोनिया गांधी से राहुल गांधी तक सभी ने ही कांग्रेस को फिर से खड़ी करने के लिए ‘आवाज’ लगाई। उसी दौरान नए सिरे से रिसाव का शुरू होना चिंताजनक है।
पंजाब के सुनील जाखड़ व हार्दिक पटेल बाहर क्यों निकले, इस पर चिंतन करने का वक्त आ गया है। बलराम जाखड़ कांग्रेस पार्टी के एक समय के दिग्गज नेता, गांधी परिवार के बेहद वफादार थे। बलराम लोकसभा के अध्यक्ष भी बने। सुनील जाखड़ उन्हीं बलराम जाखड़ के सुपुत्र हैं।
पंजाब कांग्रेस का उन्होंने कई वर्षों तक नेतृत्व किया। परंतु नवजोत सिंह सिद्धू को व्यर्थ महत्व मिलने से जाखड़ हाशिए पर फेंक दिए गए। उन्हीं जाखड़ ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी की राह पकड़ ली।
जाखड़ ने पार्टी छोड़ते समय कांग्रेस नेतृत्व से सवाल पूछा। ‘मैं पंजाब और राष्ट्रहित ही बोल रहा था, परंतु उस पर कांग्रेस ने मुझे ‘नोटिस’ देकर क्या साध्य किया?’ यह उनका मुख्य सवाल है। कांग्रेस ने मेरी राष्ट्रवादी आवाज को दबाने का प्रयास किया, ऐसा आरोप जाखड़ लगाते हैं।
माधवराव सिंधिया, जितिन प्रसाद व बलराम जाखड़ इन तीनों नेताओं को कांग्रेस ने भरपूर दिया। उनके बच्चों का कल्याण करने में भी कांग्रेस ने कभी हाथ पीछे नहीं खींचे। ज्योतिरादित्य, जितिन प्रसाद व सुनील जाखड़ इन तीनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पिता से बड़ी निकली। उसकी तुलना में कांग्रेस पार्टी छोटी साबित हुई इसलिए उन तीनों ने कांग्रेस को त्याग दिया।
संकट के समय तीनों की आवश्यकता होने के बावजूद तीनों ने कांग्रेस को छोड़ दिया। इसे नेतृत्व की ही नाकामी कहना होगा। युवकों को कांग्रेस पार्टी में अपना भविष्य नजर नहीं आता होगा तो क्या होगा?
आज कांग्रेस का पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है व उदयपुर के चिंतन शिविर में भी इस पर चर्चा हुई। परंतु नेतृत्व के सवाल को अंधेरे में रखकर ही चिंतन शिविर समाप्त कर दिया गया। चिंतन शिविर में कुछ निर्णय लिए गए। ‘एक व्यक्ति एक पद’ आदि की घोषणा की गई।
परिवारवाद का विरोध हुआ, परंतु जाखड़ के पीछे-पीछे गुजरात के हार्दिक पटेल ने भी कांग्रेस छोड़ दी। जिन राज्यों में अब चुनाव होने हैं, उन राज्यों में जनसंपर्क रखनेवाले नेताओं को तो कांग्रेस को संभालना चाहिए। एक सिद्धू के लिए कांग्रेस ने पंजाब राज्य हाथ से गंवा दिया और सिद्धू को व्यर्थ महत्व मिला इसलिए पुराने नेता जाखड़ भी चले गए। हार्दिक पटेल नामक युवा नेता कांग्रेस में आया तब गुजरात में कांग्रेस में बहार आएगी, ऐसा लगा था। परंतु हार्दिक को राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष की हैसियत से काम ही नहीं करने दिया जाता था। हाथ-पांव बांधकर रेस में उतारा गया, ऐसा हार्दिक पटेल का कहना है।
हार्दिक ने जाते-जाते राहुल गांधी पर हमला किया। देश और पार्टी को सर्वाधिक जरूरत होती है तब कांग्रेस का नेतृत्व हमेशा देश के बाहर होता है, ऐसा हार्दिक पटेल कहते हैं।
कांग्रेस जातिवाद वाली पार्टी है, ऐसा साक्षात्कार हार्दिक को हुआ है। दूसरा मतलब आए दिन अंबानी, अडानी को गाली देकर कुछ हासिल नहीं होगा। गुजरात में हर युवक को लगता है कि हम भी अडानी, अंबानी बनें। अडानी, अंबानी उनके आदर्श हैं। उनके आदर्श पर ही हमला करके गुजरात विधानसभा का चुनाव कैसे लड़ेंगे? ऐसा तीखा सवाल हार्दिक पटेल ने पूछा है।
कांग्रेस दिशाहीन पार्टी है। कांग्रेस के पास दूरदृष्टि का अभाव है, ऐसा हार्दिक पटेल का कहना है। कांग्रेस ने देशभर में 6,500 पूर्ण कालीन कार्यकर्ताओं को नियुक्त करने का निर्णय लिया है, परंतु उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे राज्यों में प्रदेशाध्यक्ष नहीं हैं। इन दो बड़े राज्यों में नेतृत्व के बिना उदयपुर का चिंतन शिविर संपन्न हुआ।
सोनिया गांधी की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर कई लोगों को फिक्र होती है। अर्थात कांग्रेस का नेतृत्व वे ही करती हैं और उन्हीं की बातों को आदर्श माना जाता है। राहुल गांधी ने कांग्रेस के उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में कई सवालों को बीच में ही छोड़ दिया। इसी वजह से राज्य-राज्यों में कई नेता कांग्रेस छोड़ते नजर आ रहे हैं।
2024 की तैयारी मोदी व उनकी पार्टी द्वारा अलग ढंग से किए जाने के दौरान कांग्रेस में ‘रिसाव’ का आपातकाल ही चल रहा है और उस पार्टी की अवस्था बादल फटने जैसी हो गई है। संसदीय लोकतंत्र के लिए यह दृश्य अच्छे नहीं हैं। जाखड़, हार्दिक के बाद भी ढेर बढ़ता ही जाने की आशंका है। इन सुरागों को सिओगे कैसे?
शिवसेना के मुखपत्र सामना से साभार।