अजित की बगावत व्यक्तिगत है, जल्द सच सामने आएगा: शरद
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार में अजित पवार के शामिल होने के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार की पहली बार टिप्पणी आई है। अजित पवार के पूरी एनसीपी के साथ होने के दावे को ख़ारिज करते हुए शरद पवार ने कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत बगावत है और जल्द ही सचाई सामने आ जाएगी। उन्होंने यह भी कहा है कि सोमवार को वह इस मामले में बैठक करेंगे।
अजित ने क्यों बगावत की, इस पर शरद पवार ने इशारों में कहा, 'दो दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने एनसीपी के बारे में कहा था... उन्होंने अपने बयान में दो बातें कही थीं कि एनसीपी ख़त्म हो चुकी पार्टी है। उन्होंने सिंचाई की शिकायत और भ्रष्टाचार के आरोपों का जिक्र किया था। मुझे खुशी है कि मेरे कुछ साथियों ने शपथ ली। इससे यह स्पष्ट है कि सभी आरोप मुक्त हो गए हैं। मैं उनका आभारी हूं।'
पवार ने यह भी कहा, 'मुझे बहुत से लोगों से फोन आ रहे हैं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य लोगों ने मुझे फोन किया है। आज जो कुछ भी हुआ मुझे उसकी चिंता नहीं है। कल, मैं वाईबी चव्हाण का आशीर्वाद लूंगा और एक सार्वजनिक बैठक करूंगा।'
अपने भतीजे के इस दावे से बेहद अपमानित हुए कि जिस पार्टी की उन्होंने स्थापना की और जिसका उन्होंने 24 साल तक नेतृत्व किया, वह 'पूरी पार्टी' अजित पवार के साथ है। उन्होंने कहा, 'मैंने कल पार्टी नेताओं की एक बैठक बुलाई है और वहां हम इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे।'
उन्होंने यह भी कहा कि अगले कुछ दिनों में लोगों को पता चल जाएगा कि इन एनसीपी नेताओं ने हाथ क्यों मिलाया है। पवार ने कहा कि जो लोग शामिल हुए हैं उन्होंने मुझसे संपर्क किया है और कहा है कि उन्हें बीजेपी ने आमंत्रित किया है। लेकिन उन्होंने कहा कि उनका रुख अलग है।
अजित पवार समेत एनसीपी के 9 विधायकों ने महाराष्ट्र सरकार को समर्थन दे दिया है। अजित पवार के साथ मंत्री बनने वालों में छगन भुजबल, हसन मुश्रीफ, धनंजय मुंडे, दिलीप वलसे पाटिल, धर्मराव बाबा अत्राम, अदिति तटकरे, अनिल पाटिल और संजय बंसोड शामिल हैं।
अजित पवार का यह कदम सार्वजनिक रूप से महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में पद छोड़ने की इच्छा व्यक्त करने के कुछ ही दिनों बाद आया है। इससे पहले आज, एनसीपी विधायकों के एक समूह ने अजीत पवार के मुंबई आवास पर मुलाकात की थी, जहां वरिष्ठ नेता छगन भुजबल भी उपस्थित थे। बैठक में प्रदेश पार्टी अध्यक्ष जयंत पाटिल मौजूद नहीं थे। इस बीच शरद पवार ने पुणे में पत्रकारों से कहा कि उन्हें मुंबई की बैठक की जानकारी नहीं थी।
बता दें कि शरद पवार ने पिछले महीने एनसीपी की कमान नये नेतृत्व को सौंपने की घोषणा की थी। समझा जाता है कि अजित पवार की नाराज़गी की सबसे ताज़ा और प्रमुख वजह यही रही।
एनसीपी की कमान सौंपने को लेकर लंबे समय से चली आ रही खींचतान के बीच शरद पवार ने 10 जून को पार्टी के स्थापना दिवस पर सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। सुले को महाराष्ट्र का प्रभारी भी बनाया गया, जिसे अजित पवार संभाल रहे थे। तो सवाल उठा कि इस फ़ैसले को अजित पवार ने क्या स्वीकार किया?
इस फ़ैसले के बाद ख़बर आई थी कि अजित नाखुश थे। हालाँकि, सुप्रिया सुले ने अपने चचेरे भाई अजित पवार के उनकी पदोन्नति के बाद 'नाखुश' होने के दावों का खंडन किया था। उन्होंने कहा था कि यह सिर्फ़ कयासबाजी है। सुप्रिया सुले के आए बयान से एक दिन पहले अजित पवार ने भी अपने असंतोष की खबरों को खारिज करते हुए कहा था कि वह पार्टी के फैसले से खुश हैं।
तब अजित पवार ने मीडिया कर्मियों से कहा था, 'कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि मैं नाखुश हूँ कि पार्टी ने मुझे कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी, यह ग़लत है। हमारी समिति उस समय बनाई गई थी जब शरद पवार ने इस्तीफा दे दिया था। उस समय दो फ़ैसले लिए जाने थे। पहला शरद पवार से अनुरोध करना था अपना इस्तीफा वापस लेने के लिए और दूसरा सुप्रिया सुले को एक कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करना था और जब समिति का गठन किया गया था तब यह सुझाव दिया गया था।' उन्होंने कहा था, 'लोकतंत्र और बहुमत का सम्मान करने के कारण, मैंने इस्तीफे के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया क्योंकि नए नेतृत्व को मजबूत करना और आगे बढ़ाना है।'
सुप्रिया सुले की पदोन्नति के इस घटनाक्रम के क़रीब दो हफ़्ते बाद अजित पवार ने विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद छोड़ने की इच्छा जताई थी। राजनैतिक हलकों में माना गया कि पिछले दिनों उनकी बहन और सांसद सुप्रिया सुले और वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाना उन्हें पसंद नहीं आया है। वे पार्टी संगठन पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं। उन्हें लगने लगा है कि सुप्रिया सुले कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद अब ज्यादा मजबूत होंगी जबकि नेता विपक्ष रहते हुए वह पार्टी संगठन से दूर हो रहे हैं।