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अडानी के बचाव में आए पवार, जेपीसी की
मांग को बताया गैर जरूरी

अडानी के बचाव में आए पवार, जेपीसी की मांग को बताया गैर जरूरी

संसद में काम न होने को लेकर पवार ने केवल कांग्रेस को दोषी ठहराने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह संयुक्त विपक्ष की मांग थी। लेकिन इसका समाधान खोजा जाना चाहिए था, और यह विपक्ष के साथ सरकार की भी जिम्मेदारी है।

संसद का सत्र समाप्त होने के ठीक एक दिन बाद देश के बड़े नेताओं में से एक शरद पवार ने एक इंटरव्यू दिया। एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में शरद पवार ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट की आलोचना की और कहा कि इस रिपोर्ट में जानबूझकर अडानी समूह को निशाना बनाया गया।

बजट सत्र के एक हफ्ते पहले आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह सहित भारतीय बाजार को हिलाकर रख दिया था। इसका नतीजा यह हुआ कि संसद का पूरा बजट सत्र में अड़ानी की भेट चढ़ गया और न के बराबर काम हुआ। सरकार को बजट भी बिना वोटिंग और चर्चा के पास कराना पड़ा। संसद में हुए इतने कम काम के लिए सरकार और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं। विपक्ष की मांग थी कि सरकार अडानी समूह पर लग रहे आरोपों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन करे। जबकि सरकार पूरे सत्र के दौरान इस मांग से भागती रही।

एनडीटीवी को दिये इंटरव्यू में पवार ने कहा कि इस तरह की चीजें पहले भी होती थीं, उनकी वजहों से हंगामा भी होता था लेकिन इस बार तो अडानी समूह के मुद्दे को इतना बढ़ा चढ़ाकर रखा गया कि पूरा संसद सत्र बर्बाद हो गया, हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा। जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया उन्होंने देश भर में हंगामा करा दिया। इसकी कीमत देश की अर्थव्यवस्था को वहन करनी पडेगी।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर कांग्रेस की जेपीसी जांच की मांग का जिक्र करते हुए पवार ने स्पष्ट रूप से कहा कि भले ही वे सहयोगी हैं लेकिन इस मसले पर हमारा(एनसीपी) नजरिया बिल्कुल अलग है।

एनडीटीवी को दिये इस इंटरव्यू में पवार ने ये भी कहा कि अडानी समूह पर जांच की मांग उठाए जाने के बाद उच्चतम न्यायालय ने जांच समिति का गठन किया जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। पवार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच के आदेश दिए जाने के बाद जेपीसी द्वारा जांच की मांग का कोई मतलब नहीं था।

पवार ने इंटरव्यू में यह भी साफ किया कि वे अडानी-अंबानी पर हमले की शैली से सहमत नहीं हैं। इस हमले पर उन्होंने पहले के टाटा-बिड़ला के दौर को याद किया और कहा कि, 'यह देश में कई वर्षों से हो रहा है। वे कहते हैं जब हम राजनीति में आए थे तब, अगर हमें सरकार के खिलाफ बोलना होता था, तो हम टाटा-बिड़ला के खिलाफ बोलते थे। निशाना कौन था? टाटा-बिड़ला। जब हम टाटा के योगदान को समझते थे, तो हम आश्चर्यचकित होते थे कि हम टाटा बिड़ला क्यों कहते रहे। लेकिन किसी को निशाना बनाना होता था इसलिए हम टाटा-बिड़ला को निशाना बनाते थे। आज सरकार के सामने नए अंबानी-अडानी के रूप में नए टाटा-बिड़ला आ गये हैं।

इन दिनों अगर सरकार पर हमला करना है तो अंबानी और अडानी का नाम लिया जाता है। सवाल यह है कि जिन लोगों को आप निशाना बना रहे हैं, अगर उन्होंने कुछ गलत किया है, अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है, तो लोकतंत्र में आपको उनके खिलाफ बोलने का शत-प्रतिशत अधिकार है। लेकिन बिना किसी सार्थक चीज के हमला करना, यह समझ नहीं आता। 

कांग्रेस और जेपीसी जांच पर केंद्रित उसके विरोध प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए पवार ने कहा, “अलग-अलग दृष्टिकोण से आलोचना हो सकती है, सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने का अधिकार भी सबको है लेकिन अंत में चर्चा होनी चाहिए। लोकतंत्र में चर्चा और संवाद बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप चर्चा और संवाद की अनदेखी करते हैं तो सिस्टम खतरे में पड़ जाएगा, नष्ट हो जाएगा।”

पवार ने आगे कहा कि आम लोगों के मुद्दों को नियमित रूप से नजरअंदाज करना भी ठीक नहीं है। जब ऐसा होता है तो हम गलत रास्ते पर चल रहे होते हैं, हमें यह समझने की जरूरत है।

संसद में काम न होने को लेकर पवार ने केवल कांग्रेस को दोषी ठहराने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह संयुक्त विपक्ष की मांग थी। लेकिन इसका समाधान खोजा जाना चाहिए था, और यह विपक्ष के साथ सरकार की भी जिम्मेदारी है। संसद चले, इसके लिए संवाद जरूरी है। जो इन दिनों कम है। पवार के इस बयान से विपक्षी एकता की मुहिम को करारा धक्का लगेगा। विपक्ष ने अड़ानी के मुद्दे को काफ़ी ज़ोरदार ढंग से उठा रखा है । ऐसे में पवार का बयान विपक्ष की मुहिम को कमजोर कर सकता है। 

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