सिखों के मामलों में दखल ना दें बीजेपी और संघ: एसजीपीसी
सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने कहा है कि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिखों के मामलों में बेवजह दखल ना दें। इस संबंध में मंगलवार को एसजीपीसी की ओर से संघ प्रमुख मोहन भागवत को एक पत्र लिखा गया है।
अकाल तख्त की ही तरह एसजीपीसी सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था है और यह कई राज्यों के गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है। हाल ही में एसजीपीसी का चुनाव हुआ था। इस चुनाव के दौरान भी अकाली दल (बादल) ने आरोप लगाया था कि बीजेपी नेता इस चुनाव में अकाली दल (बादल) की बागी नेता बीबी जगीर कौर का समर्थन कर रहे थे।
अकाली दल की ओर से आरोप लगाया था कि बीजेपी नेता और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा और कुछ महीने पहले बीजेपी में शामिल हुए सरचंद सिंह एसजीपीसी के सदस्यों से जगीर कौर के पक्ष में वोट डालने के लिए कह रहे थे। चुनाव में अकाली दल को जीत मिली थी।
एसजीपीसी के महासचिव गुरचरण सिंह ग्रेवाल ने चिट्ठी में एसजीपीसी के चुनाव में दखल दिए जाने का जिक्र किया है। पत्र में लिखा गया है कि 9 नवंबर को हुए एसजीपीसी के वार्षिक चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का दखल साफ दिखाई दिया।
ग्रेवाल ने चिट्ठी में लिखा है कि संवैधानिक पदों पर बैठे बीजेपी के नेताओं ने एसजीपीसी के चुनाव में सीधी दखलंदाजी की। उन्होंने लिखा है कि एसजीपीसी ने कभी भी किसी भी अन्य धर्म और मत के मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया है और हमेशा सभी के कल्याण के लिए काम किया है।
एसजीपीसी महासचिव ने संघ प्रमुख को संबोधित करते हुए लिखा है कि जो कुछ हो रहा है अगर आपको उसकी जानकारी नहीं है तो आपको तुरंत इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और अगर आपको इसकी जानकारी है तो यह संघ के लिए अपनी विचारधारा के बारे में सोचने का सही समय है क्योंकि इससे बहु सांस्कृतिक और बहु धार्मिक समाज के आपसी धार्मिक संबंधों में दरार पैदा हो रही है और इस बात का डर है कि यह भविष्य में और गहरी हो सकती है।
पत्र में उम्मीद जताई गई है कि संघ प्रमुख इस बारे में विचार करेंगे।
एसजीपीसी में लंबे वक्त से अकाली दल का कब्जा है। पंजाब में अकाली दल और बीजेपी लंबे वक्त तक सत्ता में साथ रहे हैं लेकिन कृषि कानूनों के मुद्दे पर हुए आंदोलन के बाद अकाली दल ने बीजेपी से अपना रास्ता अलग कर लिया था।
आरएसएस पर प्रतिबंध की मांग
अक्टूबर, 2019 में अकाल तख़्त ने आरएसएस पर जोरदार हमला बोला था। जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा था कि संघ पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘मेरा मानना है कि संघ जो कर रहा है उससे देश में विभाजन पैदा होगा। संघ के नेताओं की ओर से जो बयान दिये जा रहे हैं, वे देश के हित में नहीं हैं।’ उनका यह बयान उन दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भारत के ‘हिंदू राष्ट्र’ होने के बयान को लेकर आया था।
अप्रैल 2021 में एसजीपीसी की ओर से एक प्रस्ताव पास किया गया था जिसमें कहा गया था कि आरएसएस भारत में दूसरे धर्मों के लोगों और अल्पसंख्यकों की आवाज को दबा रहा है और यह भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश है।
राष्ट्रीय सिख संगत
संघ जिस तरह मुसलमानों के बीच राष्ट्रीय मुसलिम मंच की शाखा के बैनर पर काम करता है, उसी तरह सिखों को संघ से जोड़ने के लिए उसके राष्ट्रीय सिख संगत नामक संगठन बनाया हुआ है और इसके जरिए पंजाब में संघ की विचारधारा का प्रचार किया जा रहा है लेकिन कट्टरपंथी सिख संगठन इसे सिख विरोधी बताते हैं और इसका पुरजोर विरोध करते हैं।
आरएसएस के नेता सिख धर्म को हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा बताते हैं जबकि सिख संगठन इससे पूरी तरह इनकार करते हैं।
संघ के नेताओं की हत्या
राष्ट्रीय सिख संगत और खालिस्तानी संगठनों के बीच कई बार टकराव भी हो चुका है। राष्ट्रीय सिख संगत से जुड़े कई नेताओं की पिछले कुछ सालों में हत्या हो चुकी है और कई हिंदू और सिख नेताओं पर हमले हुए हैं।
रुलदा सिंह मानसा की हत्या
आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा ने 2009 में राष्ट्रीय सिख संगत के तत्कालीन अध्यक्ष रुलदा सिंह मानसा की पटियाला में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद भी पंजाब में संघ के कई नेताओं की हत्या हुई और इसके लिए खालिस्तानी उग्रवादियों को जिम्मेदार माना गया। हाल ही में हिंदू नेता सुधीर सूरी की दिन दहाड़े हत्या कर दी गई थी।
अगस्त, 2016 में आरएसएस की पंजाब इकाई के उप प्रमुख जगदीश गगनेजा की जालंधर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई थी। अक्टूबर, 2017 में संघ की शाखा से लौट रहे रवींद्र गोसाईं की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा भी संघ के कई नेताओं पर हमले हो चुके हैं।