यूएपीए केस में चार साल से जेल में बंद एक आरोपी को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए को कड़ी फटकार लगाई। मुकदमे में 4 साल की देरी हुई और जब जमानत के लिए याचिका लगाई गई तो एनआईए ने इसका विरोध किया। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए पर बेहद सख्त लहजे में टिप्पणी की।
यह मामला गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत दर्ज किया गया था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने बिना किसी लाग-लपेट के एजेंसी से कहा कि वह 'न्याय का मजाक' न उड़ाए और कहा कि भले ही आरोपी पर गंभीर अपराध करने का आरोप है, लेकिन उसे त्वरित सुनवाई का अधिकार है।
दो जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस जे बी पारदीवाला ने आरोपी जावेद गुलाम नबी शेख को जमानत देते हुए कहा, 'न्याय का मजाक न उड़ाएँ। आप सरकार हैं; आप एनआईए हैं। उसे त्वरित सुनवाई का अधिकार है, चाहे उसने कोई भी अपराध किया हो। उसने गंभीर अपराध किया हो, लेकिन मुक़दमा शुरू करना आपका दायित्व है। वह पिछले चार सालों से जेल में है। आज तक, आरोप तय नहीं किए गए हैं।'
यह देखते हुए कि केंद्रीय एजेंसी ने 80 गवाहों की जांच करने का प्रस्ताव दिया था, अदालत ने पूछा, 'हमें बताएँ कि उन्हें कितने साल जेल में रहना चाहिए?' हालाँकि एनआईए के वकील ने अधिक समय के लिए प्रार्थना की, लेकिन अदालत ने सुनवाई स्थगित करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जैसा कि संविधान में निहित है, हर आरोपी को त्वरित सुनवाई का अधिकार है, चाहे अपराध कितना भी गंभीर क्यों न हो। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि इस मामले में उसे विश्वास है कि इस अधिकार का हनन किया गया है, जिससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि मामले में दो सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
मुंबई पुलिस ने एक गुप्त सूचना के आधार पर 9 फरवरी, 2020 को शेख को गिरफ्तार किया और उसके पास से कथित तौर पर पाकिस्तान से आए नकली नोट बरामद किए। इस साल फरवरी में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।