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अवमानना मामला: प्रशांत भूषण ने कहा- मैं दया की भीख नहीं मांगता

अवमानना मामला: प्रशांत भूषण ने कहा- मैं दया की भीख नहीं मांगता

सुप्रीम कोर्ट की आपराधिक अवमानना के लिए दोषी ठहराये गये वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने एक बार फिर कहा कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है, वह बेहद सोच-समझकर और विचार करने के बाद ही कहा है। 

अदालत की आपराधिक अवमानना के लिए दोषी ठहराए गये वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरूवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को भूषण को आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था और सजा के लिए 20 अगस्त की तारीख़ तय की थी। 

सुनवाई के दौरान अपनी दलील में प्रशांत भूषण ने कहा, 'मेरे द्वारा किए गए ट्वीट देश के एक नागरिक के रूप में सच को सामने रखने की कोशिश है। अगर मैं इस मौके पर नहीं बोलूंगा तो मैं अपनी जिम्मेदारी को निभा पाने में फेल साबित होऊंगा। मैं यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक बात को रखना चाहूंगा। महात्मा गांधी ने कहा था, 'मैं दया करने के लिए नहीं कहूंगा, मैं उदारता दिखाने के लिए नहीं कहूगा, मैं अदालत द्वारा दी गई किसी भी सजा को स्वीकार करूंगा और यही एक नागरिक का पहला कर्तव्य भी है।' 

इससे पहले प्रशांत भूषण ने एक बार फिर कहा कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है, वह बेहद सोच-समझकर और विचार करने के बाद ही कहा है। उन्होंने कहा, ‘अगर अदालत मुझे समय देना चाहती है तो मैं इसका स्वागत करता हूं लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसका कोई फ़ायदा होगा और इससे अदालत का समय बर्बाद होगा। इसकी बहुत संभावना नहीं है कि मैं अपना बयान बदलूंगा।’ 

भूषण बुधवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने अर्जी दाखिल कर मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त के आदेश के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दाख़िल करने का उन्हें वक़्त दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को भूषण को आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था और सजा के लिए 20 अगस्त की तारीख़ तय की थी। 

भूषण ने कहा, ‘मेरे लिए यह भरोसा कर पाना मुश्किल है कि मेरे दो ट्वीट्स ने भारत के लोकतंत्र के इस बेहद अहम अंग को अस्थिर कर दिया है। मैं इसी बात को दुहराना चाहता हूं कि मेरे दोनों ट्वीट्स मेरे विचारों को व्यक्त करते हैं और किसी भी लोकतंत्र में विचारों को व्यक्त करना बेहद आवश्यक है। मैं मानता हूं कि लोकतंत्र में किसी भी संस्थान की खुली आलोचना संवैधानिक स्थिति को बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी है।’ 

प्रशांत भूषण ने कहा, ‘नहीं बोलना अपने कर्तव्य का त्याग करने जैसा होगा और वह भी मेरे जैसे अदालत से जुड़े किसी व्यक्ति के लिए।’ प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्हें अदालत के आदेश से दुख पहुंचा है। 

इससे पहले भी प्रशांत भूषण ने अपने दोनों ट्वीट्स का समर्थन किया था। अवमानना का दोषी ठहराए जाने के बाद अदालत में जमा किए गए अपने 132 पेज के जवाबी एफ़िडेविट में प्रशांत भूषण ने कई केसों का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि पिछले चार सीजेआई के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक मूल्यों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कानून के शासन की रक्षा के अपने कर्तव्य का पालन करने में विफल रहा है।

प्रशांत भूषण ने लिखा था कि उनके ये विचार पिछले छह सालों में हुई घटनाओं की अभिव्यक्ति हैं। उन्होंने कहा था, ‘यह अवमानना नहीं हो सकती। अगर सुप्रीम कोर्ट मेरे ट्वीट्स को अवमानना मानता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर बिना कारण का प्रतिबंध होगा और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को भी रोकने की तरह होगा।’ भूषण ने यह भी कहा था कि सीजेआई सुप्रीम कोर्ट नहीं हैं। 

21 नेताओं ने दिया समर्थन

अलग-अलग राजनीतिक दलों के 21 नेताओं ने प्रशांत भूषण के प्रति समर्थन जताया है। उन्होंने बयान जारी कर इस पर निराशा जताई है कि न्याय मिलने में आ रही दिक्कतों और लोकतांत्रिक संस्थाओं में गिरावट को लेकर उनके दो ट्वीट पर अवमानना की कार्रवाई की गई। 

बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और शशि थरूर, लोकतांत्रिक जनता दल के प्रमुख शरद यादव, नेशनल कॉन्फ़्रेंस के फ़ारूक़ अब्दुल्ला, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, सीपीआई नेता डी राजा सहित जनता दल यूनाइटेड, समाजवादी पार्टी आदि दलों के कई नेता शामिल हैं। 

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