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छावला दुष्कर्म व हत्याकांड मामले में क्या न्याय मिला?

छावला दुष्कर्म व हत्याकांड मामले में क्या न्याय मिला?

छावला में हुए सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड मामले की तुलना कुछ लोग निर्भया गैंग रेप से कर रहे हैं। क्या इस मामले में पीड़िता के परिजनों को न्याय मिला? जानिए लगातार क्यों उठ रहा है सवाल।

दिल्ली के छावला में 2012 में हुए सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड मामले का दिल्ली महिला आयोग यानी डीसीडब्ल्यू ने संज्ञान लिया है। इसने बुधवार को डीसीपी को पत्र लिखकर मृतक के परिवार की सुरक्षा के लिए उठाए गए उपायों के बारे में जानकारी मांगी है। मीडिया में पीड़िता की मां का बयान आया है कि 'मैं हार गई हूँ...'। लोग अब इस मामले की निर्भया मामले से तुलना करने लगे हैं। आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है और यह मामला चर्चा में क्यों है?

दरअसल, यह मामला सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की वजह से सुर्खियों में आया है। 19 साल की लड़की का गैंगरेप और फिर उनकी हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाए गए तीन लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रिहा कर दिया। 2012 के इस बहुचर्चित मामले में तीन अभियुक्तों को निचली अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत की सज़ा को बरक़रार रखा था।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस पर जाँच को ठीक से नहीं करने और निचली अदालत में सुनवाई के दौरान कई अनियमितताएँ बरते जाने का आरोप लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तों के डीएनए सैंपल के रख-रखाव को लेकर दिल्ली पुलिस को आड़े हाथों लिया। इसने कहा कि डीएनए सैंपल बिना किसी सुरक्षा के 11 दिनों तक पुलिस के मालखाने में पड़े रहे। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जाँच को लेकर सवाल उठाए कि उसने 49 गवाहों में से 10 का क्रॉस एग्ज़ैमिनेशन भी नहीं करवाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने इस बात की जाँच नहीं की कि डीएनए रिपोर्ट का आधार क्या था। शीर्ष अदालत ने सवाल उठाया कि इसके लिए सही तकनीक का इस्तेमाल किया गया था या नहीं, यह भी जाँच नहीं की गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसके सामने रखे गए सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि अभियोजन पक्ष अभियुक्तों के ख़िलाफ़ ज़ुर्म साबित करने में नाकाम रहा है।

बता दें कि पीड़िता उत्तराखंड की थीं। वह दिल्ली के छावला में रह रही थीं। नौ फ़रवरी, 2012 को नौकरी से लौटते वक़्त उन्हें तीन लोगों ने अग़वा कर लिया था। उनके साथ दरिंदगी की गई थी। दरिंदों ने उसके जिस्म को नोंचा, सिगरेट से जलाया, गाड़ी के साइलेंसर से जलाया। प्राइवेट पार्ट को भी जलाया था। इस तरह की बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई थी।

पुलिस ने इस मामले में राहुल, रवि और विनोद नाम के तीन लोगों को गिरफ़्तार किया था। इनकी पूछताछ के बाद पुलिस ने रेवाड़ी के एक खेत से पीड़िता की लाश बरामद की थी। पुलिस के अनुसार उनके साथ गैंगरेप किया गया था और फिर बड़ी बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई थी। उनके चेहरे और आँखों में तेज़ाब डाला गया था।

इसी मामले में अदालत ने इस बात को स्वीकार किया है कि यह बहुत ही घृणित अपराध है, लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत के पास उन्हें रिहा करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह सच है कि अगर अभियुक्त बरी हो जाते हैं तो इससे समाज में और ख़ासकर पीड़ित के परिवार में पीड़ा और बेचैनी बढ़ेगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क़ानून इस बात की इजाज़त नहीं देता है कि सिर्फ़ शक और नैतिकता की बुनियाद पर अदालत किसी को दोषी क़रार दे।

सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद पीड़िता के परिवार वालों ने निराशा जताई है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता की माँ ने कहा कि 'मैं हार गई। इस फ़ैसले के इंतज़ार में हम ज़िंदा थे। लेकिन अब हार गए। हमें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा। इस फैसले के बाद अब जीने का कोई मकसद नहीं बचा।'

पीड़िता के पिता ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उन्होंने तो सोचा भी नहीं था कि सुप्रीम कोर्ट से इस तरह का फ़ैसला आएगा। उन्होंने कहा, 'कलयुग आ गया है, लेकिन इतना कलयुग भी नहीं होना चाहिए। उनके हौसले बुलंद हो जाएंगे, मुजरिम खुलेआम अपराध करेंगे। अब न्याय के लिए किसके पास जाएंगे।'

छावला सामूहिक दुष्कर्म व हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर निर्भया की मां का कहना है कि वे इस मामले में पीड़ित परिवार के साथ हैं।

निर्भया मामला भी 2012 में हुआ था। दिल्ली के मुनिरका में 6 लोगों ने चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया था। इस मामले में दरिंदगी की वो सारी हदें पार की गईं, जिसे देखकर-सुनकर कोई भी दहशत में आ जाए। वारदात के वक्त पीड़िता का दोस्त भी बस में था। दोषियों ने उसके साथ भी मारपीट की थी। इसके बाद युवती और दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया था। इनके दोषियों को 7 साल 3 महीने और 3 दिन बाद फांसी दी गई थी।

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