पीएम यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता करते हैं, महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद पर नहीं: राउत
शिवसेना के उद्धव खेमे के नेता संजय राउत ने रविवार को कहा कि एक तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता करते हैं, तो दूसरी तरफ वह महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद पर आँखें मूंद लेते हैं। उन्होंने सीमा विवाद का समाधान नहीं निकालने के लिए बीजेपी की कड़ी आलोचना की। उन्होंने पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने साप्ताहिक कॉलम 'रोखठोक' में बीजेपी नेतृत्व के प्रयास पर सवाल उठाए।
राउत की यह टिप्पणी तब आई है जब महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद सुर्खियों में है। कुछ दिन पहले महाराष्ट्र से कर्नाटक आ रहे ट्रक को बेलगावी में रोक लिया गया था और उस पर पत्थर फेंके गए थे। इसके बाद से विवाद ने तूल पकड़ा। दोनों राज्यों के नेताओं और मंत्रियों ने भी इसे तूल दिया। मामला देश के गृहमंत्री अमित शाह तक पहुँचा। उन्होंने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की लेकिन, उन्होंने कहा कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने दशकों पुराने सीमा विवाद में अपने दावों पर तब तक जोर नहीं देने की सहमति जताई है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर फ़ैसला नहीं करता। यानी मुद्दे का समाधान नहीं निकल पाया, मुद्दे को दबा दिया गया।
इस पर राउत ने लिखा है, "70 साल से लंबित इस समस्या पर दोनों मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय गृहमंत्री के बीच 15 मिनट तक चर्चा हुई। उन पंद्रह मिनटों के बाद अंतत: तय क्या हुआ? तो स्थिति ‘जैसी थी’ बरकरार रखनी है। 70 वर्षों से स्थिति ‘जैसी थी’ ही है। उस ‘जैसी थी’ स्थिति को बार-बार बदलने का प्रयास कर्नाटक ने किया। मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद कर्नाटक ने बेलगांव को उपराजधानी घोषित करके वहां विधानसभा की नई इमारत बना डाली। बेलगांव का नाम बदलकर बेलगावी कर दिया। बेलगांव महानगरपालिका से भगवा ध्वज उतार दिया। ये सब तरीका बेहद गंभीर ही था। ‘जैसी थी’ के निर्णय को चुनौती देने वाला और अदालत की परवाह न करने वाला था।"
राउत ने कहा है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद मानवता के लिए संघर्ष था, न कि दोनों राज्यों के लोगों और सरकारों के बीच की लड़ाई। महाराष्ट्र लंबे समय से उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी और आसपास के सीमावर्ती क्षेत्रों पर दावा करता रहा है क्योंकि उनके पास मराठी भाषी आबादी का एक बड़ा हिस्सा है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई द्वारा हाल ही में दावा किए जाने के बाद दशकों पुराना सीमा विवाद फिर से खड़ा हो गया है कि महाराष्ट्र में सांगली जिले के कुछ गाँवों ने वहाँ बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण कर्नाटक का हिस्सा बनने का प्रस्ताव पारित किया है। राउत ने कहा, 'बेलगावी और आस-पास के क्षेत्रों में मराठी भाषी आबादी के संघर्ष, जिन्हें राज्यों के पुनर्गठन के दौरान उनकी इच्छा के विरुद्ध कर्नाटक में शामिल किया गया था, को क्रूरता से कुचला नहीं जा सकता है।'
राउत ने कॉलम में लिखा है, 'महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे कर्नाटक के मुख्यमंत्री के हमले के आगे कमजोर पड़ गए, यह अब साफ हो गया है। यह मसला संघर्ष से नहीं, बल्कि चर्चा से हल होगा और इसके लिए पहले राजनीति बंद करनी चाहिए।'
उन्होंने आगे कहा,
“
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं। इसलिए मुख्यमंत्री बोम्मई ने सीमावाद पर हमला किया और महाराष्ट्र के गांवों पर दावा ठोका। इसके बजाय उन्हें सीमावर्ती क्षेत्रों के मराठी संगठनों और नेताओं से चर्चा करके समाधान निकालना चाहिए था।
संजय राउत
राउत ने आगे कहा, 'मुंबई समेत महाराष्ट्र में ‘कानडी’ लोगों के बड़े आर्थिक हित संबंध समाहित हैं, ये उन्हें नहीं भूलना चाहिए। यह झगड़ा दो राज्यों के लोगों के बीच का नहीं। यह सरकारों का नहीं है। 70 साल पहले एक भाषाई लोगों पर हुए अन्याय पर रोक लगे, इसके लिए यह मानवता का झगड़ा चल रहा है। उसे इतनी क्रूरता से कोई कुचल नहीं सकेगा।'
राउत ने यह भी लिखा है, 'सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र सरकार से यह समस्या हल नहीं होती होगी तो न्याय के लिए किसका दरवाजा खटखटाया जाए? प्रधानमंत्री मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता करते हैं, लेकिन महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद की तरफ मुड़कर देखने के लिए तैयार नहीं हैं। यह अच्छे राजनेता के लक्षण नहीं हैं!' उन्होंने पूछा कि गृहमंत्री अमित शाह ने पहल की ये ठीक, लेकिन क्या वाक़ई इस मुद्दे पर वे तटस्थ रहेंगे?