जानिए, संजय गांधी को क्यों किया गया था गिरफ़्तार
जाँच एजेंसी ईडी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मंगलवार को पूछताछ कर रही है। सोनिया गांधी से पूछताछ की भी तैयारी है। इसका बड़े पैमाने पर कांग्रेस कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं। बड़ी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता कांग्रेस मुख्यालय के बाहर जुटे और उन्होंने जांच एजेंसी के दफ्तर तक पहुंचने की कोशिश की। प्रदर्शन कर रहे कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं को पुलिस ने मंगलवार को भी हिरासत में ले लिया। इन हालातों में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या इनकी गिरफ़्तारी होगी?
यदि ऐसा होता है तो वे नेहरू-गांधी परिवार के ऐसे सदस्यों में जुड़ जाएँगे जिनकी किसी न किसी मामले में गिरफ़्तारी हुई है। आज़ादी के बाद इस परिवार से गिरफ़्तार होने वाली पहली नेता इंदिरा गांधी थीं। इसके बाद संजय गांधी को भी गिरफ़्तार किया गया था।
इंदिरा गांधी को दो बार गिरफ़्तार किया गया था और पहली बार उनकी गिरफ़्तारी 1977 में आम चुनाव हारने व सत्ता जाने के बाद हुई थी। तब कांग्रेस पार्टी फिर से विभाजित हो गई थी और इंदिरा गांधी ने अपना खुद का कांग्रेस (आई) गुट बना लिया। उसी दौरान जनता सरकार के गृह मंत्री चरण सिंह ने इंदिरा गांधी और संजय गांधी को कई आरोपों में गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। गिरफ़्तारी के लिए जो आरोप लगाए गए थे उनमें यह भी शामिल था कि उन्होंने 'आपातकाल के दौरान जेल में सभी विपक्षी नेताओं को मारने की साज़िश रची थी या ऐसा सोचा था'।
ये ऐसे आरोप थे जिसको अदालत में साबित करना बेहद मुश्किल था। समझा जाता है कि इंदिरा गांधी को संसद से बाहर करने के लिए ऐसा किया गया था। गिरफ्तारी का मतलब था कि इंदिरा गांधी को संसद से स्वतः ही निष्कासित कर दिया गया।
'किस्सा कुर्सी का' मामला
किस्सा कुर्सी का अमृत नाहटा द्वारा निर्देशित एक व्यंग्य फिल्म थी जिसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी से जुड़े मामलों का ज़िक्र था। फिल्म को अप्रैल 1975 में प्रमाणन के लिए सेंसर बोर्ड को सौंप दिया गया था। फिल्म ने संजय गांधी की कार निर्माण योजनाओं का ज़िक्र किया था। बोर्ड ने फ़िल्म को सात सदस्यीय पुनरीक्षण समिति को भेजा, जिसने इसे आगे सरकार को भेज दिया। इसके बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा 51 आपत्तियां उठाते हुए फिल्म निर्माता को कारण बताओ नोटिस भेजा गया था। एक रिपोर्ट के अनुसार जुलाई 1975 को भेजे अपने उत्तर में नाहटा ने कहा था कि फ़िल्म के पात्र 'काल्पनिक थे और किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्तियों को वे संदर्भित नहीं करते'। उस समय तक आपातकाल की घोषणा हो चुकी थी।
1977 में जनता पार्टी की सरकार आ गई थी। संजय गांधी और वीसी शुक्ला पर आरोप लगा कि उन्होंने फिल्म के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर गुड़गांव स्थित मारूति कारखाने में जलवा दिए।
संजय गांधी को फिल्म के प्रिंट नष्ट करने का दोषी माना गया। मुकदमा दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चला। संजय पर गवाहों पर दबाव बनाने का भी आरोप लगा। कोर्ट ने 1979 को अपना फ़ैसला सुनाया। संजय गांधी और शुक्ला दोनों को दो साल और एक महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत रद्द करते हुए एक महीने के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया था।
बता दें कि 1977 में ही इंदिरा गांधी की सरकार गिरने और मोरारजी देसाई की सरकार सत्ता में आने के बाद इंदिरा को भी जेल जाना पड़ा था। इस दौरान इंदिरा गांधी की दो बार गिरफ़्तारी हुई। दोनों बार कारण अलग-अलग रहे, लेकिन राजनीतिक हालात क़रीब-क़रीब एक जैसे थे।
इन घटनाक्रमों के तार आपातकाल से जुड़ते हैं। 25 जून 1975 में लगाए गए आपातकाल को 21 मार्च 1977 के दिन ख़त्म किया गया था। इसी दौरान ही इंदिरा ने जनवरी 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा कर दी थी। जब चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी की सत्ता चली गई। जनता दल के नेता मोरारजी देसाई ने सरकार बनाई। नयी सरकार बनते हुई इंदिरा गांधी को जेल भेजने की तैयारी शुरू हो गई थी।
मोरारजी सरकार बनने के बाद इंदिरा के ऊपर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए गए और इसे साबित करने के लिए एक कमीशन का गठन किया गया। सरकार गठन के क़रीब छह महीने में ही 3 अक्टूबर 1977 को सीबीआई के अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंचे। रात भर हिरासत में रखने के बाद उन्हें दूसरे दिन कोर्ट में पेश किया गया। हालाँकि इस मामले में उन्हें दूसरे ही दिन रिहा कर दिया गया।
भ्रष्टाचार के कथित मामले में 1977 में तो सिर्फ़ एक दिन की गिरफ़्तारी हुई थी, लेकिन उसके अगले साल यानी 1978 में इंदिरा गांधी को फिर से गिरफ़्तार किया गया। संसद में 19 दिसंबर 1978 को इंदिरा को सदन से निलंबित कर गिरफ्तार करने का प्रस्ताव पारित हुआ था। उन्हें क़रीब हफ्ते भर जेल में रहना पड़ा था।